भगवान शिव की गणेश पूजा का साक्षी कुमाऊँ का गण पर्वत

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 सनातन धर्म में  प्रत्येक देवी देवता के पूजन एवं किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है । यहाँ तक कि स्वयं भगवान शिव ने अपने विवाह से पूर्व गणेश जी का पूजन किया था। ऐसा भी वर्णन आता है कि भगवान शिव के माता सती से विवाह से पूर्व गणेश पूजा ना होने के कारण माता सती को योगाग्नि में भस्म होना पड़ा था।  हालांकि भगवान गणेश माता पार्वती व शिवजी के ही पुत्र है फिर शिव विवाह के समय इनका पूजन कैसे हुआ यह प्रश्न भी अनेक भक्तों के हृदय में रहता है। इस प्रश्न का विस्तृत उत्तर आदि गणेश की गाथा में विस्तार से दिया गया हैं। 
         कुमाऊँ के गण पर्वत की महिमा का बखान स्वयं भगवान शिव ने किया है। देवताओं में प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की वन्दना के बिना सारी वन्दनायें, पूजा, स्तुति सब व्यर्थ हैं। किसी भी प्रकार के मनोरथ की सिद्धि  के लिए इनकी उपासना जरूरी है। इस महान रहस्य का उद्घाटन व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 68 वें अध्याय में किया है। अपनी विराट व अनन्त लीला को प्रकट करने वाले श्री गणेश पूजा के महात्म्य को अनेक ऋषिगणों ने महर्षि व्यास जी से जानने की इच्छा प्रकट करते हुए  पूछा, हे! महर्षि ब्रह्मदेव सहित समस्त देवों से सेवित जागेश्वर को छोड़ भगवान शंकर ने गण पर्वत पर गणेश जी का पूजन किस प्रयोजन से किया और  विवाह संस्कार के लिए भी भगवान शिवजी अपने विशेष स्थान को छोड़कर अन्यत्र किस लिए गये। भगवान शिव के इस महान रहस्य को बतलाकर हमें धन्य करें। 
             ऋषियों द्वारा पूछे जाने पर परम ज्ञानी ऋषि वेद व्यास जी ने कहना आरंभ किया कि सती के दूसरा जन्म लेने पर अनेक देवताओं व महानुभावों के कहने पर भी शिवजी  दूसरा विवाह करने के लिए राजी नहीं हुए। समय के उसी चरण में तारकासुर का घोर आतंक छाया हुआ था। सभी चिंतित देवगण ब्रह्मा जी की शरण में गये। ब्रह्मा जी व इन्द्रादि देवता कामदेव के साथ ध्यानस्थ शिव का ध्यान तोड़ने उनके समीप पहुंचे। कामदेव ने उन्हें ध्यान से जगाया। ध्यान भंग होने के कोपभाजन में कामदेव को शिव लीला की चपेट में आकर भस्म होना पड़ा। देवी रति की  प्रार्थना पर भगवान शिव ने उसे वरदान देते हुए कहा कि कामदेव द्वापर युग में योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेकर अनेक राक्षसों सहित समरासुर का वध करेंगे, तभी तुम्हारा मिलन होगा। 
          आगे देवताओं ने अपनी विनती शिवजी के सम्मुख रखते हुए कहा, हम सभी देवगण तारकासुर से त्रस्त हैं। हमें उसके आतंक से मुक्ति दिलाएं। देवताओं की विनती पर उन्होंने देवी गिरिजा के साथ विवाह करने की हामी भर दी ताकि उनसे उत्पन्न पुत्र तारकासुर का वध करके सुख शांति स्थापित करा सके। तत्पश्चात शिवजी तथास्तु कहकर हिमाचल के घर को चल दिये। रास्ते में उनके प्रमुख गण स्कन्द ने भगवान शिव से विघ्न हरण के लिए गण पर्वत पर गणेश जी का पूजन करने को कहा। शिवजी को यह बात बहुत भायी। ऋषियों ने आगे पूछा तपोधन गणाध्यक्ष एवं उनके पूजन की महिमा भी बतायें।
      इस महिमा का बखान करते हुए व्यास जी ने ऋषियों से कहा, इस लोक में मानवों के समक्ष अनेक विघ्न-बाधायें आती हैं जिस कारण मनुष्य के कार्य बिगड़ते रहते हैं। इन विघ्नों को दूर करने के लिए विश्वकर्मा ने गणेश जी की प्रतिमा पर्वत के अग्रभाग में गढ़ी है। महादेव जी ने उस पर्वत को प्रणाम कर निर्विघ्न हेतु श्री गणेश जी का पूजन किया। जो लोग इस पवित्र प्रतिमा का  पूजन करते हैं उनके सब विघ्न दूर हो जाते हैं। तत्पश्चात ही आगे शिवजी की पूजा का विधान है। इनकी पूजा के बिना शंकर भगवान की पूजा अर्चना व्यर्थ है। पूजा कर्मों में भी श्री गणेश जी का पूजन सर्वप्रथम होता है। गन्ध, पुष्प, अक्षत, दूर्वा और धूप आदि से गणेश जी का पूजन कर मानव समस्त दुःखों से मुक्त रहता है। यहीं गणिकेश के रूप में शिवजी का भी पूजन किया जाता है। यहां गिरिजा देवी का पूजन करने से मनुष्य को सत्यलोक की प्राप्ति होती है। कुमाऊँ की धरती में गणनाथ का मंदिर जनपद अल्मोड़ा के ताकुला क्षेत्र में पड़ता है। इस देव दरबार को सनातन काल से लोग पूजते आये हैं

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