पांचवीं पीढ़ी के जेट इंजन भारत में बनाने की दिशा में भारत का एक और कदम
Focus News 4 December 2023भारत के राष्ट्रपति भारतीय वायु सेना के कमांडर इन चीफ के रूप में कार्य करते है। भारतीय वायुसेना का गठन ब्रिटिशकालीन भारत में रॉयल एयरफोर्स के एक सहायक हवाई दल के रूप में किया गया था। भारतीय वायु सेना अधिनियम 1932 को उसी वर्ष 8 अक्टूबर से लागू किया गया। 1 अप्रैल 1933 को वायुसेना के पहले स्कवॉड्रनए स्कवॉड्रन क्रण् 1 का चार वेस्टलैंड वापिटी विमान व पांच पाइलटों के साथ गठन किया गया। शुरूआत में वायुसेना की केवल दो शाखाएं थीए ग्राउंड ड्यूटी व रसद शाखा।
यह सच है कि रक्षा के क्षेत्र में अमेरिकाए रूस और चीन जैसे देशों के मुकाबले में कहीं टिकना है तो भारत को स्वयं को मजबूत बनाना होगा। आज के समय में जिस तरह से लगातार तकनीक उन्नत हुई हैए ऐसे में युद्ध के हथियार भी अत्याधुनिक हो रहे हैं। आज की तारीख में दुनिया में जितने भी प्रोन्नत लड़ाकू विमान हैंए वे पांचवी पीढ़ी के हैं। यह सही है कि अमेरिकाए चीन और रूस समेत चुनिंदा देशों के पास ही 5वीं पीढ़ी के लडाकू विमान हैं। इनमें डिजिटल इंजन कंट्रोल इलेक्ट्रिक मैनेज पावर प्लांटए एक्टिव इलेक्ट्रोनिकली स्कैन्ड ऐरे रडारए के साथ स्टील्थ टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया गया है। इन विमानों को बनाने में खास तरह की सामग्रीए जैसे बॉन्डेड एल्युमिनियमए हनीकॉम्ब स्ट्रक्चर और ग्रेफाइट इपोक्सी लैमिनेट का प्रयोग किया गया है। इससे विमान का वजन कम रखने में सहूलियत होती है। आइये एक नजर दुनिया में पांचवी पीढ़ी के फाइटर प्लेन के इतिहास पर डाल लेते हैं। साथ ही दुनिया के मुकाबले भारत की पांचवीं पीढ़ी के फाइटर प्लेन की आवश्यकता भारत के लिए क्यों जरूरी है। इस पर भी विचार कर लें।
अमेरिका ने सबसे पहले 2005 में ही पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को अपनी सेना में शामिल कर लिया था। लॉकहीड मार्टिन और बोइंग ने मिलकर अमेरिकी एयरफोर्स के लिए एफ.22 रैप्टर को डिजाइन किया था। पांचवी पीढ़ी के फाइटर प्लेन में एडवांस एवियोनिक्स सुविधाओंए अत्यधिक एकीकृत कंप्यूटर सिस्टमए स्टील्थ तकनीकए लो प्रोबेबिलिटी ऑफ इंटरसेप्ट राडार ;एलपीआईआरद्ध और हाई परफॉर्मेंस एयरफ्रेम जैसे सभीए सबसे आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसकी अधिकतम गति 2ए574 किलोमीटर प्रति घंटे है। इसके अलावा अमेरिका के पास लॉकहीड मार्टिन एफ.35 लाइटनिंग को 2015 में शामिल किया गया था। अक्टूबर 2022 तकए अमेरिका 850 फाइटर प्लेन का विनिर्मित कर चुका था। अमेरिका अब बोइंग टी.7 रेड हॉक ;टी.एक्सद्ध के निर्माण में लगा हुआ है।
रूस ने अब तक सिर्फ 10 ही एसयू.57 फाइटर प्लेन बनाए हैं। रूस ने इसे अमेरिका के एफ.22 रैप्टर से मुकाबले के लिए तैयार किया है। साल 2021 में रूस ने अपनी इन्हें सेना में शामिल किया था। सबसे पहले इसके शुरुआती मॉडल का प्रयोग सीरिया के युद्ध में किया गया था। रूस इसके अलावा सुखोई एसयू.75 पर भी काम कर रहा है। यह सिंगल इंजनए स्टील्थ और हल्के सामरिक विमान है। इसकी पहली उड़ान साल 2024 में होगी। चीन ने 2017 में जे.20 श्माइटी ड्रैगनश् को सेवा में शामिल किया। अनुमानतरू अब तक लगभग 150 जे.20 का निर्माण किया जा चुका है। जे.20 में स्टील्थ फीचर्स अमेरिकी लॉकहीड एफ.22 रैप्टर के मुकाबले थोड़े कमतर हैं। पहली जे.20 फाइटर यूनिट का गठन फरवरी 2018 में किया गया था। चीन की दूसरी पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू शेनयांग एफसी.31 गिरफाल्कन ने अक्टूबर 2012 में अपनी पहली उड़ान भरी थी हालांकिए अभी भी इस पर काम चल रहा है।
भारत भी पांचवी पीढ़ी के फाइटर प्लेन पर काम कर रहा है। भारत ने एयरो इंडिया 2013 में 5वीं पीढ़ी के फाइटर प्लेन बनाने के लिए रूस के साथ साझेदारी की थी। 2017 में इसका एक स्टेज पूरा हो गया था। देश में इस फाइटर प्लेन के डिजाइन को अंतिम रूप दिया जा चुका है। पांचवी पीढ़ी के फाइटर प्लेन को एडवांस मीडियम कॉम्बेट एयरक्राफ्ट ;एएमसीएद्ध नाम दिया गया है। यह दो इंजन वाला फाइटर जेट है। यह विमान बेहद अत्याधुनिक और खतरनाक है। डीआरडीओ और एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी इस विमान पर मिलकर काम कर रहे हैं। इस फाइटर प्लेन को बीवीआर मिसाइल के साथ क्लोज कॉम्बेट फाइट की क्षमता से भी लैस किया जाएगा। इसे स्टेल्थ एयर फ्रेम के साथ ही नेटसेंटरिक वारफेयरए सेंसर डेटा फ्यूजन और एडवांस इंटीग्रेटेड सेंसर से भी लैस किया जाएगा। इस फाइटर जेट के 2025 तक बनकर तैयार हो जाने की उम्मीद है। भारत के अलावा कोरिया और तुर्की भी फाइटर प्लेन पर काम कर रहे हैं।
देश में बनने वाला एएमसीए अमेरिका के सबसे खतरनाक फाइटर जेट एफ.35 को स्पीड के मामले में पीछे छोड़ देगा। एएमसीए की अधिकतम स्पीड 2633 किलोमीटर प्रतिघंटा होगी। जबकि अमेरिकी फाइटर जेट की अधिकतम स्पीड 2575 किलोमीटर प्रतिघंटा है। भारतीय फाइटर प्लेन की कॉम्बैट रेंज 1620 किलोमीटर होगी। वहींए एफ.35 की कॉम्बैट रेंज 1239 किलोमीटर है।
बहुत जल्दी ही भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमान अमरीकी सहयोग से स्वदेशी इंजनों से लैस होंगे। इसका संकेत डीआरडीओ प्रमुख डॉ समीर ने दिया हैण् उन्होंने शनिवार को एक प्रेस मीट में कहा कि एलसीए मार्क.2 और स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कंबाइंड एयरक्राफ्ट एमसीए के पहले दो स्क्वाड्रनों के इंजनों का घरेलू स्तर पर उत्पादन किया जाएगा। डॉक्टर समीर ने बताया अमेरिका से हर प्रकार की मंजूरी मिल चुकी है। एलसीए मार्क. 2 और स्वदेशी एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के पहले दो स्क्वाड्रन के इंजनों का उत्पादन भारत स्थित संयंत्र में किया जाएगा। अमेरिका की कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक जीई और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा संयुक्त रूप से इन इंजनों का उत्पादन किया जाएगा। 30 अगस्त को सुरक्षा पर कैबिनेट समिति द्वारा एलसीए मार्क.2 लड़ाकू विमान के विकास को मंजूरी दी जा चुकी है।
अब भारतीय वायु सेवा में मिराज 2000ए जगुआर और एमआईजी 29 लड़ाकू विमानों की जगह एलसीए मार्क.2 लड़ाकू विमान तैनात किये जाएंगे। इससे इंजीनियरों के लिए उन्नत 17ण्5 टन का सिंगल इंजन विमान विकसित करने का मार्ग प्रशस्त होगा। सरकार ने प्रोटोटाइप के विकास को मंजूरी दे दी हैण् पहला मॉडल एक साल में बन जाने की संभावना है। व्यापक उड़ान परीक्षणों और अन्य संबंधित कार्यों के बाद यह परियोजना वर्ष 2027 तक पूरी की जाने वाली है। डीआरडीओ का मानना है कि इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली और क्षमता के मामले में यह विमान राफेल श्रेणी के विमान की तरह होगा लेकिन वजन में उससे हल्का होगा। डीआरडीओ 414 इंजन वाला विमान विकसित करेगा जोकि 404 का उन्नत संस्करण है। वर्तमान में 30 एलसीए भारतीय वायु सेवा में शामिल हो चुके हैं।
राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने शनिवार को एयरोनॉटिकल सोसायटी आफ इंडिया द्वारा संस्थान की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष में आयोजितए ष्2047 में एयरोस्पेस और एविएशनष् विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन एवं प्रदर्शनी के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा किए चाहे वह मंगल मिशन हो या फिर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सुरक्षित लैंडिंगए भारत ने हर क्षेत्र में साबित कर दिया है कि उसके पास निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि देश ने प्रगति के आयाम स्थापित किये हैं किन्तु कई चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। एयरोस्पेस क्षेत्र बदलाव के दौर से गुजर रहा है। रक्षा उद्देश्यों के साथ.साथ हवाई यातायात और परिवहन के क्षेत्र में तेजी से नई प्रौद्योगिकियों को अपनाया जा रहा है। भविष्य में ऐरोस्पेस क्षेत्र में मानव संसाधनों के कौशल को और बढ़ाने की आवश्यकता है। उन्होंने इस दौर में सराहनीय योगदान के लिए पूरे ऐरो स्पेस और एविएशन सेंटर की सराहना भी की।