विवेकानंद के विचार भारत की प्रगति व विकास के लिए आज भी प्रासंगिक

स्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण भारत के साथ साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए वर्तमन में भी प्रासंगिक है तथा सदैव रहेगा भी। उनके इसी दृष्टिकोण पर विचार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1984 को अन्तर्रराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया था तथा भारत सरकार ने तभी से 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रुप में मनाने का संकल्प लिया था। विवेकानंद का दृष्टिकोण अथवा विचार था कि ‘नरसेवा – नारायण सेवा‘ । यह विचार ही विश्व व्यापी बन गया तथा इस विचार को ही विश्व के युवा वर्ग ने भी स्वीकार किया। विवेकानंद का जीवन बहुत कम रहा उन्होने मात्र 39 वर्ष पांच माह 12 दिन का जीवन जिया।

भारत के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व भी उनके विचारों से प्रेरणा ग्रहण कर रहा है। विवेकानंद ने भारतीय आत्मा को  सार्वभौकिता के स्तर तक पंहुचाया। भारत की सनातनी संस्कृति को विश्व में स्वीकार करने के स्तर तक पंहुचाया। उनका पक्का विश्वास था कि भारत पुनः विश्व गुरु बनेगा, जो सम्पूर्ण संसार का पथ प्रदर्शन करने में समर्थ होगा। उनकी भविष्य वाणी सत्य होगी।

वर्तमान में भी भारत में विवेकानंद के विचारों की सर्वग्राह्यता है जिस कारण भारत अखंड बना हुआ है। उनके ही विचारों से प्रेरणा प्राप्त कर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की उन्नति व विकास के लिए पांच सकंल्प लिये है जिसकी घोषणा लाल किले की प्राचीर  से 15 अगस्त 2022 को की गई थी। देश के अमृत काल में विवेकानंद को इससे अच्छी श्रद्धांजलि और क्या हो सकती है कि उनके विचारों से बनाये पांच संकल्प राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकर किये जायें। पांच संकल्पों में – विकसित भारत, गुलामी से मुक्ति, विरासत पर गर्व, एकता और एकजुटता, नागरिकों का कर्तव्य शामिल है।
 

विकसित भारत , एक नया भारत जो निकल पड़े मोची की दुकान से, भड़भूजे के भाड़ से, कारखाने से, हाट से, बाजार से, निकल पड़े झोपड़ियों से, जंगलों से, पहाड़ो व पर्वतों और खेत खलिहानों से और पुनः भारत को विश्व गुरु के पद पर आसीन कर दे। विकसित भारत के महान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबका साथ सबका विकास ही एक मात्र मंत्र है।

भारत पहले मुग़लों का तथा बाद में दो सौ वर्ष तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। एक बार किसी ने 1897 में विवेकानंद से पूछा कि स्वामी जी मेरा धर्म क्या है।? स्वामी जी ने कहा कि गुलाम का कोई धर्म नहीं होता है। आगामी 50 वर्षों तक सिर्फ भारत को गुलामी से आजाद कराना ही तुम्हारा धर्म है। अपने मन मस्तिष्क में गुलामी का कोई भी विचार न रहने दें। हमारें मन के किसी भी कोने में गुलामी का भाव नहीं रहना चाहिए क्योंकि हम वह है, जो हमें हमारी सोच ने बनया है।

स्वामी जी ने भारत के गुलामी के काल में 11 सितम्बर 1893 को अमेरिका के शहर शिकागो में  भारत की प्राचीन सभ्यता, संस्कृति, विरासत, अध्यात्म और वैभवशाली इतिहास के विषय में विश्व को बताया। भारत की विरासत के कारण ही भारत को स्वर्णकाल प्राप्त हुआ था और भारत सोने की चिड़िया कहलाया। हमें अपने देश की समृद्ध विरासत पर गर्व करना चाहिए। भारत फिर से परम वैभव को प्राप्त करने की दिशा में अग्रसर हुआ है। गुलामी के कारण भारतीयों में जो हीनता का भाव आया वह खत्म हुआ।

स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि जल्दी ही प्रत्येक धर्म की पताका पर लिखा हो – विवाद नहीं, सहायता, विनाश नहीं, संवाद, मत विरोध नहीं, समन्वय और शांति। स्वामी जी ने कहा था कि इस बात पर गर्व  करो कि तुम एक भारतीय हो और अभिमान के साथ यह घोषणा करो कि हम भारतीय है और प्रत्येक भारतीय हमारा भाई है। नरेन्द्र मोदी ने भी आतंकववाद के विरुद्ध विश्व को यह संदेश दिया है। किसी देश की सबसे ताकत उस देश की एकता और एकजुटता में ही निहित होती है।

स्वामी जी के अनुसार हमारा प्रथम कर्तव्य है कि हम अपने प्रति व अपने भाईयों के प्रति घृणा न करें । यह मूलभूत प्राण शक्ति है। नरेन्द्र मोदी ने कहा कि है कि नागरिकों का कर्तव्य ही देश और समाज की प्रगति का रास्ता तैयार करता है।

भारत ने वर्ष 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की परन्तु गुलामी की मानसिकता से मुक्ति नहीं पायी। एक कहावत ही बन गई कि अंग्रेज चले गये और अग्रेजी व काले अग्रेजों को छोड़ गये। भारत में अभी भी एक परिवार विशेष के प्रति लोगों की गुलामी की मानसिकता दृष्टिगोचर होती है। देश में मात्र एक ही परिवार दिखाई देता है जिसने भारत को स्वतंत्रता दिलाई। नरेन्द्र मोदी स्वामी विवेकानंद के बताये मार्ग पर चलते हुए गुलामी की इसी मानसिकता को तोड़ने में जुटे हुए है। प्रत्येक भारतीय स्वयं को पहचानें, स्वयं का निर्माण करे, स्वयं का विकास करें, विश्व पटल पर स्वयं को प्रतिस्थापित करें, तभी भारत आगे बढ़ पायेगा। भारत में स्वतंन्त्रता प्राप्ति के अमृत काल में प्रधानमंत्री मोदी के द्वरा अपनाये गये पांच संकल्पों का अपना अति महत्वपूर्ण स्थान है तथा इन्हीं संकल्पों के सार्थक होने पर ही भारतीय आध्यात्मिक शक्ति, गौरवपूर्ण संस्कृति व संस्कार अभिभूत होंगे तथा भारत का सामर्थ्य दृष्टिगोचर होगा। भारत का सर्वश्रेष्ठ ध्येय वाक्य वसुधैव कुटुंबकम विश्व के किसी भी धर्म से कहीं ऊंचा स्थान रखता है।

प्रधानमंत्री मोदी भी इसी ध्येय वाक्य को अपनाने में लगे हुए है। तभी भारत ने कोविड़ से जुझते विश्व के 150 देशों को वैक्सीन पंहुचायी। तालिबानी मानसिकता से ग्रस्त अफगानिस्तान को भी रसद भेजी, भारत का कभी साथ न देने वाले फिलीस्तीन को टनों राहत समाग्री वर्ष 2023 में भेजी तथा आतंकवादी हमास की 7 अक्टूबर 2023 के कृत्य की घोर निन्दा मानवता के दृष्टिकोण को अपनाते हुए कीं। विश्व स्तर पर नरेन्द्र मोदी स्वामी विवेकानंद के द्वारा दिखाई गई व अपनी बनायी गई राह पर ही अग्रसित होते है। स्वंय पर विश्वास ही उनका एक मात्र सहारा है। मोदी चाहते है कि भारत देश में व्याप्त विविधता को उल्लास के साथ अपनाना चाहिए। यही विविधिता ही देश की बहुत बड़ी ताकत साबित होगी। भारत का प्रत्येक नागरिक लोकतंत्र में अपने मात्र अधिकार की ही मांग न करें अपितु राष्ट्र के प्रति उसके स्वंय के कर्तव्य का भी प्रदर्शन करे। प्रत्येक नागरिक को यह भी आभास होना चाहिए कि वे राष्ट्र को दे क्या रहा है? वह राष्ट्र से मात्र कुछ न कुछ लेने के लिए ही उत्सुक नहीं रहे।

स्वामी विवेकानंद भारतीय धर्म, अध्यात्म एवम् दर्शन के सच्चे ध्वज वाहक थे। विवेकानंद का जीवन दर्शन सम्पूर्ण विश्व के लिए शांति, प्रेम, सद्भाव, सहिष्णुता तथा शक्ति से ओत प्रोत था। वे सदैव लक्ष्मीनारायण भगवान से पहले दरिद्र नारायण की सेवा के प्रबल पक्षधर थे। स्वामी जी का अमेरिका के शिकागों में धर्म संसद में दिया गया उनका भाषण आज भी सारगर्भित व प्रासंगिक है तथा पूर्ण श्रद्धा व आदर से याद किया जाता है। वर्तमान में विवेकानंद युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए है। उन्होंने भारतीय संस्कृति को पुरजोर तरीके से अपनाया व स्थापित करते हुए कहा था कि विश्व के सभी धर्मों का समान आदर व सत्कार करना चाहिए। उनका मानना था कि आप जैसा सोचोगे वैसा ही बन जाओगे। अतः भारतीय युवा वर्ग को देश के प्रति सदैव निर्माण की सोच कायम करनी ही होगी। तभी भारत की प्रगति व विकास सम्भव हो सकेगा।