हम भोजन तो खाते हैं मगर लक्ष्य केवल पेट भरना नहीं होना चाहिए। इस से प्राप्त ऊर्जा हमारे शरीर को क्रियाशील व पूर्ण स्वस्थ रखती है। भोजन खुराक तो है ही, दवा भी है जो अनेक रोगों को शरीर से दूर रख सकती है।
प्रतिरोधक शक्ति भी भोजन से ही मिलती है। भोजन शरीर के तंत्रा को पोषित करने का साधन मात्रा है, साध्य कभी नहीं। सच कहें तो साध्य तो पौष्टिक भोजन द्वारा शरीर का पोषण है।
कभी बासी भोजन न खाएं। कई कई दिनों तक फ्रिज में संभाला भोजन हमारे योग्य नहीं। यह अपनी गुणवत्ता खो देता है।
भोजन बार-बार गर्म करते रहने से भी उपयोगिता से वंचित हो जाता है।
भोजन सस्ता, सादा, पौष्टिकता लिए हो तो यह उस महंगे भोजन से अधिक उपयोगी है जो आसानी से चबाया, खाया या पचाया न जा सके।
हमारे भोजन में कम से कम मिर्च, नमक, घी, तेल, मसाले हों।
साग सब्जियां उबली हुई, साधारण तरीके से पकाई हुई हों तो बेहतर है। तली, फ्राई, बार-बार आग पर चढ़ाई गई सब्जियां ठीक नहीं।
भोजन से पहले, भोजन के साथ तथा शीघ्र बाद में फल, फलों व सब्जियों के रस न लें। कुछ अंतर जरूर हो कम से कम एक घण्टे का।
भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी न हो। वह संतुलित भी हो।
मांसाहारी भोजन मानव के लिए नहीं, पशुओं के लिए बना है। मानव का शाकाहारी होना ही उसे अच्छा स्वास्थ्य प्रदान कर सकता है। पशुओं में हाथी, घोड़ा, गाय आदि भी शाकाहारी हैं। ये मांस नहीं खाते फिर भी शक्ति व गुणों की इन में कमी नहीं। फिर भला मांस न खाने वाला आदमी निर्बल कैसे हो सकता है।
बाजारू पके और रेहड़ियों पर बिकने वाले पदार्थ न खाएं। इनसे संक्रमण होने का भय बना रहता है। गोलगप्पे, पकौड़े, टिक्की, फास्ट फूड, चाऊमिन, छोले, भठूरे, समोसे, पापड़ी, भल्ले आदि ठीक से ढंके नहीं होते। स्वच्छता नहीं रखी जाती। बनाने या परोसने वालों का पसीना, गंदे हाथ लगना आम बात है। सफाई रखना उनसे संभव नहीं। अतः इस दूषित भोजन से अवश्य बचें।
अशुद्ध भोज्य पदार्थ ही नहीं, दूषित जल भी कभी न पिएं। यह और भी हानिकारक होता है तथा अनेक रोग देने वाला भी।
अपनी शारीरिक अवस्था, कार्य, आयु, पाचन शक्ति आदि का ध्यान रखकर ही भोजन का चुनाव व सेवन करें।
प्रकृति के विरूद्ध कभी आहार न लें। जितना पच सके, उससे कम ही खाएं, अधिक तो कभी नहीं।
जो व्यक्ति इन बातों का ध्यान रखता है, वह सदैव स्वस्थ रहता है।