उपहार : कब दें, कब न दें?

सदियों से उपहार मानव समाज में अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। राजा महाराजाओं के काल में किसी भी स्थिति में प्रसन्न होकर सम्राट द्वारा उपहार प्रदान किए जाने की गाथाएं प्रचलित हैं। आजकल भी उपहार विविध उत्सवों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तथा उपहारों का चलन यथावत है।


सवाल यह उठता है कि उपहार कब दिए जाएं और कब नहीं। आज के वैज्ञानिक युग में हर प्रश्न औचित्य के आधार पर ही हल चाहता है। यही स्थिति उपहार के संबंध में भी है क्योंकि किसी को बिना किसी औचित्य के उपहार प्रदान करना भी उपहार के औचित्य पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।


विवाह उत्सव हो अथवा अन्य कोई उत्सव, उपहार कब दें और कब न दें, इसका विचार स्पष्ट होने पर यदि आप किसी उत्सव में सम्मिलित होते हैं, तभी आप एक सफल अतिथि सिद्ध हो सकते हैं अन्यथा उपहारों की चकाचौंध में अस्पष्ट स्थिति आपके कदम किसी भी उत्सव में जाने से अवरूद्ध कर सकती है, सो यदि आप किसी भी उत्सव में सम्मिलित होते हैं तथा उपहार देने अथवा न देने के संबंध में कोई उहापोह की स्थिति है तो आप निम्न प्रकार स्वयं को संतुष्ट करके कोई कदम उठा सकते हैं।


यदि आपको विवाह उत्सव में वर पक्ष की ओर से सम्मिलित होना है, तब आप बाराती हैं तथा बाराती के रूप में आप विवाह उत्सव का आनन्द लीजिए। उपहार देने का कोई प्रश्न वधू पक्ष के यहां आपके लिए नहीं होना चाहिए।


यदि आप किसी गृहप्रवेश में जा रहे हैं तो गृहप्रवेश के आयोजकों अथवा भवन स्वामी को शुभकामनाएं दें। यदि कोई उपहार दें तो ऐसा दें जो घर में आपकी क्षणिक उपस्थिति का स्मरण कराता रहे।


किसी बालक की वर्षगांठ पर महंगे चाकलेट या खाद्य पदार्थ का उपहार कदापि उपयुक्त नहीं है क्योंकि खाना-पीना तो उत्सव से जुड़ा ही हुआ है। ऐसी स्थिति में आप बालक को ऐसा उपहार दें जो उसके उपयोग का हो। प्रेरणादायी साहित्य अथवा शिक्षण को प्रोत्साहन देने वाली वस्तुएं बालक के लिए उपहार में दी जानी चाहिए।


सेवाकाल में प्रोन्नति, किसी विशिष्ट उपलब्धि पर आयोजित उत्सव में मात्रा शाब्दिक शुभकामनाएं ही उत्तम हैं। किसी उपहार के चक्कर में न पड़ें।


उपरोक्तानुसार यदि आप उपहार देने का चयन करते हैं तब आप निस्संदेह करेंगे, उस पक्ष के साथ भी न्याय करेंगे जिसने आपको उत्सव में सम्मिलित होने का न्यौता दिया है।