एलर्जी एक लाइलाज बीमारी है। एलर्जी शरीर द्वारा कुछ विशेष तत्वों, जिन्हें एलर्जन कहते हैं, के प्रति अति संवेदनशील प्रतिक्रिया है। जो लोग एलर्जी से पीड़ित हैं उनके लिए सबसे बेहतर उपाय यही है कि वे उन कारकों(एलर्जन) से बचें जिनसे एलर्जी है। एलर्जन अपने आप में हानिकारक नहीं होते हैं। कई लोगों को इन एलर्जन से कोई समस्या नहीं होती लेकिन अति संवेदनशील लोगों में इन एलर्जन से कई लक्षण नजर आते हैं जिनमें से कई तो जानलेवा भी हो सकते हैं।
अगर आपको एक चीज से एलर्जी है तो जरूरी नहीं है कि किसी अन्य को भी उसी चीज से एलर्जी हो। एलर्जी के कई कारक हैं। एलर्जी से पीड़ित व्यक्ति को अपने अनुभव के आधार पर यह खोजने की कोशिश करनी चाहिए कि उसे किस विशेष वस्तु का उपयोग करने से एलर्जी होती है।
एलर्जी होने का खतरा सिर्फ छोटे बच्चों या फिर किशोरावस्था में ही होने का नहीं होता बल्कि वृद्धावस्था, खासकर 70 वर्ष से ऊपर की अवस्था में भी पहली बार एलर्जी की शिकायत हो सकती है। अमेरिकन कॉलेज ऑफ एलर्जी, अस्थमा ऐंड इम्यूनोलॉजी के एक अध्ययन में कहा गया है कि करीब 30 प्रतिशत वयस्कों, विशेषकर वृद्धों में पहली बार नाक की एलर्जी होने का खतरा रहता
है।
कुछ लोग एलर्जी के आसान शिकार होते हैं क्योंकि उनमें एलर्जन के प्रति संवेदनशीलता जन्मजात होती है। लड़कों में लड़कियों के मुकाबले आनुवंशिक रूप से एलर्जी होने की आशंका अधिक होती है। जन्म के समय जिन बच्चों का भार कम होता है उन्हें भी एलर्जी होने का खतरा बढ़ जाता है।
अगर माता-पिता दोनों में से एक को या दोनों को एलर्जी होती है तो उनके बच्चे एलर्जी के आसान शिकार होते हैं। वैसे, आनुवंशिक कारण ही एलर्जी होने का एकमात्रा कारण नहीं है। एलर्जी होने के कई और कारण भी हो सकते हैं। वे बच्चे, जिनके माता-पिता या परिवार में किसी को एलर्जी नहीं है, भी एलर्जी के शिकार हो सकते हैं।
एलर्जी एक चिकित्सा अवस्था है जो आपको बीमार अनुभव कराती है। जब आप किसी चीज को खाते हैं या उसके संपर्क में आते हैं। एलर्जी तब होती है जब रोगप्रतिरोधक तंत्रा यह विश्वास कर लेता है कि किसी व्यक्ति ने जो चीज खाई है या उसके संपर्क में आया है, वह शरीर के लिए हानिकारक है। शरीर की रक्षा के लिए रोग प्रतिरोधक तंत्रा एंटीबॉडीज उत्पन्न करता है। एंटीबॉडीज मास्ट सेल(शरीर के एलर्जी सेल्स) को ट्रिगर करते हैं कि वे रक्त में रसायनों को रिलीज करें।
इन रसायनों में से एक है हिस्टामिन। हिस्टामिन आंखों, नाक, गले, फेफड़ों, त्वचा या पाचन मार्ग पर कार्य करता है और एलर्जिक रिएक्शन के लक्षण उत्पन्न करता है। एक बार जब शरीर किसी निश्चित एलर्जन के विरूद्ध एंटीबॉडीज का निर्माण कर लेता है तो ये एंटीबॉडीज आसानी से उन एलर्जन को पहचान लेते हैं, शरीर फिर से हिस्टामिन को रक्त में रिलीज कर देता है, जिससे एलर्जी के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
एलर्जी विकसित होने की प्रवृत्ति अक्सर आनुवंशिक होती है जिसका अर्थ है कि यह आपके जींस द्वारा आपकी अगली पीढ़ी में पास हो सकती है। हालांकि ऐसा नहीं है कि आपके जीवन साथी या आपको एलर्जी है तो आपके सभी बच्चां को निश्चित ही एलर्जी हो। अगर माता-पिता दोनों में से किसी एक को एलर्जी है तो बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने का खतरा 50 प्रतिशत होता है लेकिन अगर माता-पिता दोनों एलर्जी है तो बच्चों के एलर्जी की चपेट में आने की आशंका 75 प्रतिशत तक रहती है।
यह जरूरी नहीं है कि माता-पिता को जो एलर्जी है वही बच्चों को भी हो। उन्हें किसी दूसरे प्रकार की एलर्जी भी हो सकती है। एलर्जी न केवल आनुवंशिकता से संबंधित होती है बल्कि माता-पिता और बच्चों के लिंग से भी संबंधित होती है।
एक नए अध्ययन के अनुसार, बच्चे को विरासत में एलर्जी मिलने की आशंका बढ़ जाती है अगर माता-पिता में से समान लिंग वाला एलर्जी से पीड़ित है, जैसे अगर पिता को एलर्जी है तो बेटे को विरासत में एलर्जी मिलने की आशंका अधिक होगी। ऐसे ही अगर मां को एलर्जी है तो बेटी के लिए खतरा बढ़ जाएगा।