सुजाता गर्भवती है। आज दोपहर उसे चक्कर आ गया और वह अचानक ही गिर पड़ी। घर के बाकी सभी लोगों ने उसे दौड़कर संभाला। जब उससे सारी बात हुई तो पता चला कि उसने पिछले तीन दिनों से कुछ भी नहीं खाया था क्योंकि कई व्रत लगातार पड़ गये थे। व्रत रखने के चक्कर में उसे इतनी कमजोरी आ गई कि उसे आखिरकार भूख के मारे चक्कर आ गया। वह तो उसका देवर पास में ही था जिसने उसे तुरंत संभाल लिया वरना कोई अनहोनी भी हो सकती थी।
यह समस्या सिर्फ सुजाता की ही नहीं है बल्कि हमारे समाज में कितने ही ऐसे परिवार हैं जहां गर्भवती महिलाएं व्रत रखती हैं। कुछ महिलाएं अपनी इच्छा से व्रत रखती हैं तो कुछ सास-ननद की उल्टी-सीधी बातें सुनने से बचने के लिए और कुछ समाज के डर से व्रत रखती हैं जिसका कुप्रभाव गर्भस्थ शिशु एवं मां दोनों के स्वास्थ्य पर पड़ता है।
गर्भावस्था में महिलाओं को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है। इसके विपरीत यदि वह भूखी रहेगी तो उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ेगा ही। इसलिए जब गर्भ में नन्हीं-सी जान पल रही हो तो व्रत आदि बेहद सोच-समझकर रखने चाहिए।
गर्भावस्था में भूखा रहना उचित नहीं है। वैसे भी हमारे देश में अधिकतर महिलाएं कुपोषण की शिकार रहती हैं। गर्भावस्था में यह स्थिति और ज्यादा भयावह हो जाती है। ऐसे में यदि व्रत वगैरह रखे जायें तो आप समझ सकते हैं कि क्या होगा? रक्तचाप या मधुमेह का रोगी होने पर डाक्टर से सलाह लेकर ही व्रत आदि रखें नहीं तो व्रत नहीं होगा, आपके जी का जंजाल हो जायेगा।
गर्भावस्था में व्रत न ही रखें तो अच्छा है भले ही वह कितना जरूरी क्यों न हो? ऐसे में व्रत से आपका भला तो क्या होगा पर नुक्सान कितना होगा, यह तो प्रभु ही जानते हैं चाहे फिर वह पति की दीर्घायु के लिए रखा जाने वाला व्रत करवाचौथ ही क्यों न हो? व्रत को इस तरह न रखें कि वह अंधविश्वास बनकर रह जाये। हां, पति की दीर्घायु के लिए मंगल कामना जरूर करें किंतु ऐसी हालत में भूखा रहना उचित नहीं।
एक सामान्य महिला और एक गर्भवती महिला के भोजन में काफी अंतर होता है। एक सामान्य महिला जो भी खाती है, वह उसके शरीर को पोषण देता है इसलिए उसे व्रत उपवास रखने में इतनी परेशानी नहीं आती जबकि एक गर्भवती जो भी खाती है, वह उसे ही नहीं बल्कि उसके नन्हे शिशु को भी पोषण देता है। इसलिए उसे अतिरिक्त खुराक की आवश्यकता होती है क्योंकि उसके गर्भ के नन्हे शिशु को अतिरिक्त पोषण की आवश्यकता होती है।
हमारे देश में व्रत-उपवास आदि की सूची बहुत लम्बी है। ये सभी व्रत खासकर महिलाओं के ही लिए हैं । इनमें कुछ व्रत तो ऐसे हैं जिनमें दिन में फलाहार हो जाता है किंतु कुछ व्रत तो ऐसे हैं जिनमें सुबह से उठकर देर रात तक पानी भी नहीं पिया जाता। फलाहार तो होता ही नहीं।
इस तरह के व्रत यदि गर्भावस्था में रखे जाते हैं तो शिशु को उचित आहार नहीं मिल पाता। इससे शिशु के स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ता है। उसका संपूर्ण विकास नहीं हो पाता। उसमें बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं। आपकी जरा सी भूल आपके अपने शिशु में कोई भी विकार उत्पन्न कर सकती है। बाद में पछताने से फिर कुछ नहीं हो सकता। इसलिए व्रत-वगैरह सोच-समझकर ही रखें तो ज्यादा बेहतर है।
हालांकि हर व्यक्ति के अपने विचार एवं श्रद्धा हैं जिसमें कोई दूसरा दखल नहीं दे सकता। न ही किसी को भगवान में भक्ति न रखने के लिए बाध्य किया जा सकता है। यदि उसे व्रत-उपवास में ही अपनी भक्ति और श्रद्धा लगती है तो उसे हम इसे न करने के लिए भी जोर नहीं दे सकते लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चे के समुचित विकास के लिए तो आपको ध्यान देना ही होगा।
आप आहार नहीं लेंगी तो आपका शिशु भी आहार नहीं लेगा। आपके व्रत रखने से भला उसे कहां से आहार मिलेगा? मुफ्त में वह निर्दोष भूखा मारा जायेगा। आप तो भूखी रहेंगी ही, वह भी आपकी सजा भुगतेगा। ध्यान दें।
