ममता के ‘बंगाली अस्मिता’ के विमर्श को कुंद करने के लिए भाजपा ने सीएए सहायता डेस्क शुरू किए

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कोलकाता, दो अगस्त (भाषा) तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी के ‘बंगाली अस्मिता’ विमर्श को कुंद करने और मतुआ मतों को दोबारा अपने पाले में करने के लिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में सीएए सहायता डेस्क शुरू किए हैं, जो ‘‘दस्तावेज के बिना नागरिकता आवेदन’’ की सुविधा प्रदान करते हैं।

भाजपा के इस कदम को 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले शरणार्थी मतदाताओं को लुभाने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।

‘सीएए सहयोगिता शिविर’ के नाम से ये सहायता डेस्क सबसे पहले बागदा में शुरू हुए और अब ये तेजी से बोनगांव दक्षिण और उत्तर 24 परगना के अन्य मतुआ बहुल इलाकों में प्रारंभ किए जा रहे हैं।

सहायता डेस्क का संदेश स्पष्ट है, ‘‘पहले आवेदन करें, बाद में सत्यापन।’’

एक भाजपा नेता ने कहा कि धार्मिक उत्पीड़न के कारण पड़ोसी देशों से आए शरणार्थी, जिनमें से अधिकांश के पास कोई दस्तावेज नहीं है, अभी भी संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के तहत भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं।

पार्टी पदाधिकारी ने कहा कि भाजपा ने इन डेस्क की स्थापना बांग्लादेश से सताए गए हिंदुओं के लिए संजीवनी के रूप में और ममता बनर्जी की पहचान आधारित राजनीति का मुकाबला करने के लिए कर रही है।

भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने कहा, ‘‘सीएए, भाजपा शासन में पारित एक कानून है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों से आए प्रताड़ित अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिंदुओं की मदद करना है। इसका सुचारू क्रियान्वयन हमारी जिम्मेदारी है। दस्तावेज से जुड़ी कुछ समस्याएं रही हैं। उनका समाधान किया जाएगा। भाजपा कार्यकर्ता हर जगह शरणार्थी समाज के साथ खड़े रहेंगे।’’

स्थानीय भाजपा कार्यकर्ता और मतुआ स्वयंसेवक ऑनलाइन फॉर्म भरने, हलफनामे हासिल करने और आवेदन के प्रमाण के रूप में रसीदें देने में सहायता कर रहे हैं।

पिछले महीने ही, पश्चिम बंगाल के एक मतुआ परिवार, जो अब महाराष्ट्र में रह रहा है, को पुणे पुलिस ने बांग्लादेशी होने के संदेह में हिरासत में लिया था, जबकि उनके पास पहचान संबंधी दस्तावेज और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर द्वारा हस्ताक्षरित अखिल भारतीय मतुआ महासंघ का पहचान पत्र भी था।

सीएए नियमों को 2024 में अधिसूचित किया गया था, जिसके तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति मिली।

महासंघ के महासचिव महितोष बैद्य ने कहा, ‘‘ये सहायता शिविर सिर्फ शरणार्थी क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल में लगाए जाएंगे। यह सिर्फ मतुआ समुदाय की बात नहीं है, हर प्रताड़ित हिंदू की इसमें भागीदारी है। अगले कुछ महीनों में हमारा लक्ष्य 1.5 करोड़ लोगों तक पहुंचना है।’’