आरोपी पर जबरन नार्को-विश्लेषण परीक्षण कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है : न्यायालय

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नयी दिल्ली, नौ जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी आरोपी पर जबरन नार्को-विश्लेषण परीक्षण कराना कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है और ऐसा परीक्षण उसके मौलिक अधिकारों पर गंभीर सवाल उठाता है।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति पी.बी. वराले की पीठ ने कहा कि आधुनिक जांच तकनीकों की आवश्यकता सच हो सकती है, लेकिन ऐसी जांच तकनीकों को अनुच्छेद 20(3) और 21 के तहत प्राप्त संवैधानिक गारंटी की कीमत पर नहीं किया जा सकता।

पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट है कि किसी भी परिस्थिति में कानून के तहत अनैच्छिक या जबरन नार्को-विश्लेषण परीक्षण की अनुमति नहीं है। नतीजतन, इस तरह के अनैच्छिक परीक्षण की रिपोर्ट या बाद में मिली ऐसी जानकारी भी आपराधिक या अन्य कार्यवाही में सबूत के तौर पर स्वीकार्य नहीं है।”

शीर्ष अदालत ने यह फैसला पटना उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज करते हुए सुनाया, जिसमें आरोपियों की सहमति के बिना उन पर नार्को-विश्लेषण परीक्षण की अनुमति दी गई थी।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने पति और उसके परिवार पर लगे दहेज हत्या के आरोपों से संबंधित मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी आरोपियों पर नार्को-विश्लेषण परीक्षण कराने के जांच अधिकारी के प्रस्ताव को स्वीकार करने में गलती की है।

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