नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए फलस्तीन को बतौर देश मान्यता दी

तेल अवीव, 22 मई (एपी) नॉर्वे, आयरलैंड और स्पेन ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए बुधवार को फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता देने का फैसला किया। उसके इस कदम से गाजा में हमास के खिलाफ सात महीने से चल रहे युद्ध में इजराइल अलग-थलग पड़ सकता है।

यह घोषणा तब की गयी है जब अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत (आईसीसी) के मुख्य अभियोजक इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और उनके रक्षा मंत्री के लिए गिरफ्तारी वारंट की मांग कर रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) नरसंहार के आरोपों पर विचार कर रही है जिसे इजराइल ने सख्ती से खारिज किया है।

फलस्तीन ने इस घोषणा का स्वागत किया है।

इसके जवाब में इजराइल ने तीनों देशों से अपने राजदूतों को वापस बुलाया है और इन देशों के राजदूतों को तलब किया है। उसने यूरोपीय देशों पर आतंकवादी समूह हमास को सात अक्टूबर को किए उसके हमले के लिए इनाम देने का आरोप लगाया है।

फलस्तीन को देश का दर्जा देने का विरोध कर रही नेतन्याहू सरकार का कहना है कि यह संघर्ष सीधे बातचीत से ही हल किया जा सकता है।

इस बीच, यरुशलम में घोर दक्षिणपंथी सरकार के एक मंत्री ने यहूदी और मुस्लिमों के लिए पवित्र माने जाने वाले स्थल का दौरा किया। यह स्थल यहूदियों और मुस्लिमों के बीच विवाद की जड़ है।

राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामर बेन-गिर ने अल-अक्सा मस्जिद परिसर का दौरा किया जिसे यहूदी टेम्पल माउंट कहते हैं। इससे क्षेत्र में तनाव बढ़ने की आशंका है।

बेन-गिर ने कहा कि यह दौरा तीनों यूरोपीय देशों द्वारा उठाए कदम का जवाब है। उन्होंने कहा, ‘‘हम फलस्तीनी देश के बारे में कोई बयान भी जारी करने की अनुमति नहीं देंगे।’’

फलस्तीन को औपचारिक तौर पर देश के रूप में मान्यता 28 मई को दी जाएगी। यह कदम फलस्तीन की लंबे समय से की जा रही मांग के अनुरूप है।

सबसे पहले नॉर्वे ने फलस्तीन देश को मान्यता देने के फैसले की घोषणा की। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनस गार स्तूर ने कहा, ‘‘अगर मान्यता नहीं दी गयी तो पश्चिम एशिया में शांति स्थापित नहीं हो सकती।’’

उन्होंने कहा कि नॉर्वे 28 मई तक फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दे देगा। उन्होंने कहा, ‘‘फलस्तीन देश को मान्यता देकर नॉर्वे अरब शांति योजना का समर्थन करता है।’’

यूरोपीय संघ के कई देशों ने पिछले सप्ताहों में संकेत दिया है कि वे मान्यता देने की योजना बना रहे हैं, उनकी दलील है कि क्षेत्र में शांति के लिए द्वि-राष्ट्र समाधान आवश्यक है।

नॉर्वे इजराइल और फलस्तीन के बीच द्वि-राष्ट्र समाधान का कट्टर समर्थक रहा है। वह यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है लेकिन इस मुद्दे पर उसका रुख भी यूरोपीय संघ के अन्य सदस्यों के समान है।

नॉर्वे सरकार कहा, ‘‘हमास और आतंकवादी समूहों ने आतंक फैलाया है जो द्वि-राष्ट्र समाधान और इजराइल सरकार के समर्थक नहीं हैं।’’

यह कदम तब उठाया गया है जब इजराइली सेना ने मई में गाजा पट्टी के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में हमले किए जिससे हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ा। साथ ही उसने मानवीय सहायता की आपूर्ति भी बाधित कर दी जिससे भुखमरी का खतरा बढ़ गया है।

वर्ष 1993 में प्रथम ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर के 30 साल से अधिक समय बाद नॉर्वे ने फलस्तीनी देश को मान्यता दी है। नॉर्वे सरकार ने कहा, ‘‘तब से फलस्तीनियों ने द्वि-राष्ट्र समाधान की ओर महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।’’

उसने कहा कि विश्व बैंक ने कहा है कि फलस्तीन ने 2011 में देश के तौर पर काम करने का अहम मानदंड पूरा कर लिया था जिसके तहत उसने लोगों को महत्वपूर्ण सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए राष्ट्रीय संस्थान बनाए।

आयरलैंड के प्रधानमंत्री साइमन हैरिस ने भी बुधवार को फलस्तीन देश को मान्यता देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह स्पेन और नॉर्वे के साथ उठाया गया समन्वित कदम है, ‘‘आयरलैंड और फलस्तीन के लिए एक ऐतिहासिक तथा महत्वपूर्ण दिन है।’’

उन्होंने कहा कि इस कदम का उद्देश्य इजराइल-फलस्तीन संघर्ष को द्वि-राष्ट्र समाधान के जरिए हल करने में मदद करना है।

हैरिस ने कहा कि उन्हें लगता है कि ‘‘आने वाले सप्ताहों’’ में फलस्तीन देश को मान्यता देने में अन्य देश भी नॉर्वे, स्पेन और आयरलैंड के साथ शामिल होंगे।

स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज ने कहा कि उनका देश 28 मई को फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता देगा। स्पेन के समाजवादी नेता सांचेज ने बुधवार को देश की संसद में यह घोषणा की।

सांचेज ने गाजा में संभावित संघर्ष विराम के साथ ही फलस्तीन की मान्यता के लिए समर्थन जुटाने के वास्ते महीनों तक यूरोप और पश्चिम एशियाई देशों की यात्रा की है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम जानते हैं कि इस कदम से अतीत में नहीं जाया जा सकता और फलस्तीन में गंवाई जान को वापस नहीं पाया जा सकता लेकिन हमें लगता है कि यह फलस्तीन को दो चीजें, प्रतिष्ठा और उम्मीद देगा जो उनके वर्तमान और भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है ।’’

सांचेज ने कहा, ‘‘यह मान्यता किसी के खिलाफ नहीं है, यह इजराइली लोगों के खिलाफ नहीं है।’’ हालांकि, उन्होंने माना कि इससे इजराइल के साथ राजनयिक तनाव पैदा होने की आशंका है।

इस महीने की शुरुआत में, स्पेन के विदेश मंत्री जोस अल्बारिज ने कहा था कि उन्होंने फलस्तीन को मान्यता देने के उनकी सरकार के इरादे के बारे में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन को बता दिया है।

इजराइल के विदेश मंत्री इजराइल कैट्ज ने तीनों देशों द्वारा लिए फैसले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने इजराइल में तीनों देशों के राजदूतों को तलब किया और इन देशों से इजराइल के राजदूतों को वापस बुला लिया है।

कैट्ज ने कहा, ‘‘इतिहास याद रखेगा कि स्पेन, नॉर्वे और आयरलैंड ने हमास के हत्यारों और बलात्कारियों को स्वर्ण पदक देने का फैसला किया है।’’

उन्होंने कहा कि इस मान्यता से गाजा में बंधक इजराइल के बंधकों को घर वापस लाने के प्रयास बाधित हो सकते हैं।

वहीं, फलस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने नॉर्वे के कदम का स्वागत किया और अन्य देशों से भी ऐसा ही करने का अनुरोध किया।

हमास ने भी इस फैसले का स्वागत किया और अन्य देशों से भी ‘‘हमारे वैध अधिकारों को पहचानने और मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए हमारे लोगों के संघर्ष का समर्थन करने और हमारी भूमि पर यहूदी कब्जे को समाप्त करने का आह्वान किया।”

पश्चिम देश और इजराइल हमास को आतंकवादी समूह मानते हैं। हमास इजराइल के अस्तित्व को मान्यता नहीं देता है लेकिन उसने संकेत दिया है कि वह 1967 की तर्ज पर कम से कम अंतरिम आधार पर देश का दर्जा देने पर सहमत हो सकता है।

करीब 140 देशों ने पहले ही फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता दे रखी है जो संयुक्त राष्ट्र के दो तिहाई सदस्यों से भी अधिक संख्या है लेकिन किसी प्रमुख पश्चिमी देश ने ऐसा नहीं किया है। यह कदम फ्रांस और जर्मनी पर अपने रुख पर पुनर्विचार करने के लिए दबाव डाल सकता है।

अरब लीग के प्रमुख ने तीन यूरोपीय देशों के इस कदम को ‘‘साहसी’’ बताया है।

अरब लीग के महासचिव अहमद अबु अल-गैत ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘मैं इस कदम के लिए तीनों देशों को सलाम करता हूं और उन्हें धन्यवाद देता हूं। यह कदम इस संघर्ष के इतिहास में उन्हें सही की तरफ रखता है।’’

तुर्किये ने भी इस फैसले की तारीफ करते हुए इसे ‘‘फलस्तीनियों के हड़पे गए अधिकारों’’ की बहाली की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया।

तुर्किये के विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि इस कदम से ‘‘फलस्तीन को वह दर्जा मिलने में मदद मिलेगी जिसका वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय में हकदार है।’’