त्बिलिसी, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य बीमा के मामले में भारत एशिया-प्रशांत देशों में सबसे निचली कतार में है और उसे तेजी से बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने और वृद्धि की रफ्तार को कायम रखने के लिए सबको स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने की जरूरत है। एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बृहस्पतिवार को ‘एजिंग वेल इन एशिया’ शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में कहा कि दक्षिण कोरिया और थाइलैंड ने सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) स्वास्थ्य कवरेज हासिल कर लिया है, जबकि भारत समेत कई देश पीछे हैं। इन देशों में वृद्ध लोगों के बीच स्वास्थ्य बीमा की पहुंच सबसे कम 21 प्रतिशत है।
हालांकि, एडीबी की वरिष्ठ अर्थशास्त्री एइको किकावा ने कहा कि गरीब लोगों को नकदी रहित (कैशलेस) स्वास्थ्य बीमा देने वाली आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं आने के बाद से बुजुर्गों का स्वास्थ्य कवरेज बेहतर हुआ है।
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़ाने से स्थिति में सुधार होगा और 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग अर्थव्यवस्था के लिए अधिक उत्पादक बन पाएंगे। उन्होंने कहा कि ऐसे देशों को अधिक उम्र वाले लोगों की मौजूदगी से मिलने वाला ‘लाभांश’ अधिक हो सकता है।
किकावा ने कहा कि सबको स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने के अलावा बुजुर्गों की शारीरिक और कार्यात्मक क्षमता को अनुकूलित करने वाली आवश्यक सेवाओं और गतिविधियों का विस्तार करना भी महत्वपूर्ण है।
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और भारत में स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच से वंचित आधे से अधिक लोग निचली 40 प्रतिशत आबादी का हिस्सा हैं।
हालांकि, रिपोर्ट कहती है कि 2031-40 के दशक में उम्रदराज़ आबादी के कारण आर्थिक वृद्धि पर प्रभाव भारत के मामले में कम पड़ेगा क्योंकि यहां उस समय भी युवा आबादी का अनुपात अधिक होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, विकासशील एशिया और प्रशांत देशों में 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की संख्या वर्ष 2050 तक लगभग दोगुनी होकर 1.2 अरब हो जाएगी जो कुल आबादी का लगभग एक चौथाई होगा। ऐसी स्थिति में पेंशन और कल्याण कार्यक्रमों के अलावा स्वास्थ्य बीमा की जरूरत भी बढ़ जाएगी।
एडीबी के मुख्य अर्थशास्त्री अल्बर्ट पार्क ने कहा कि इन अर्थव्यवस्थाओं के पास बुजुर्गों से अतिरिक्त उत्पादकता के रूप में ‘लाभांश’ हासिल करने का मौका होगा जो क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद को औसतन 0.9 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।