शादी जीवन की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। इस आवश्यकता की पूर्ति लगभग प्रत्येक व्यक्ति करना चाहता है। मानव जीवन में तीन महत्वपूर्ण घटनाएं आती हैं। पहली जन्म के समय, दूसरी विवाह के समय तथा अंतिम समय मृत्यु होने पर। पति-पत्नी एक दूसरे के जीवन का आधार होते हैं। इनमेें आपसी तालमेल, प्रेमभाव से ही जीवन रूपी नाव चलती है। एक दूसरे की आदतों, रूचियों, अभिवृत्तियों और गुणों से ही विवाह संबंध सुखदायी होता है। अत: विवाह से पूर्व एक-दूसरे की रूचियों, व्यवहार को जानना तथा जीवन साथी अपने अनुकूल चुनना आवश्यक है।
वर्तमान समय में भी हमारे देश में पुराने रीति-रिवाजों के आधार पर शादियां हो रही हैं। वर-वधू का संक्रामक रोग से पीडि़त न होने का प्रमाण प्राप्त करने की परंपरा नहीं है। जिसके कारण विवाह पश्चात इस प्रकार के रोगियों को दुष्परिणाम भोगना पड़ता है। आजकल भारत में यह भी नहीं देखा जाता है कि स्त्री और पुरूष में प्रजनन की क्षमता है कि नहीं और शादी बंधन में बांध दिया जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप पति-पत्नी में आपसी सामंजस्य तथा समुचित प्रेम नहीं रहता है। आपस में लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं और दूसरी शादी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए शादी से पहले प्रजनन क्षमता की जांच करवा लें। आधुनिक युग में भी प्रेम विवाह को समुचित मान्यता नहीं मिल पाई है परंतु प्रेम-विवाह की तरफ युवाओं की रूचि बढ़ रही है।
प्रणय विवाह में जीवन साथी अपने अनुकूल चुनने का मौका मिलता है क्योंकि युगल एक-दूसरे की आदतों, व्यवहार, रहन-सहन से परिचित रहते हैं। जिससे इनमें आपसी वैमनस्य पैदा नहीं होता है तथा जीवन की गाड़ी सुखमय तरीके से चलती रहती है।
माता-पिता शादी के समय लड़के तथा लड़कियों की योग्यताओं तथा काबलियत पर ध्यान दिये बिना एक दूसरे की शादी कर देते हैं। जिसके परिणाम स्वरूप इनमें आपसी तालमेल नहीं हो पाता है तथा विवाह संबंध दु:खदायी होने लगता है। विपरीत प्रकृतियां होने के कारण घर में कलह के वातावरण का निर्माण होता है। अत: एक दूसरे को जांच परख कर ही विवाह करें, जिससे जीवन सुखमय बीते।