अथर्ववेद जीवन को सरलता से जीने तथा उसमें आने वाली बाधाओं को दूर करने के सूत्र अपनी ऋचाओं में संजोये हुए हैं। भैषज, अमृत तथा ब्रह्मï इसके प्रमुख प्रतिपाद्य विषय हैं। ज्योतिष एवं आयुर्वेद का अथर्ववेद से गहरा संबंध है तथा दोनों शास्त्र मानव स्वास्थ्य पर अथर्ववेद के विचारों को अपने तरीके से व्यक्त करते हैं।
भारतीय ज्योतिष की रहस्यमय श्रेष्ठïता यह है कि यह विज्ञान जीवन के आंतरिक एवं बाह्यï जगत के सत्य उद्घाटित करता है। भारतीय शास्त्रों की मान्यता है कि शरीर पंच महाभूतों पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि एवं आकाश से निर्मित हुआ है। वात, कफ तथा पित्त तीन धातुएं स्वास्थ्य का निर्धारण करती हैं। इनका संतुलन ही स्वास्थ्य है तथा त्रिदोष है जो रोग के रूप में परिलक्षित होता है। चिकित्सा विज्ञान रोग के कारण व निदान में बाह्यï जगत से आगे नहीं बढ़ा है। असाध्य रोगों के मामले में जहां चिकित्सा विज्ञान समाप्त होता है वहीं से ज्योतिष प्रारंभ होता है क्योंकि ज्योतिष आंतरिक जगत की हलचलों को भी जानता है। दुनिया की सभी चिकित्सा प्रणालियां रोगों को मोटे तौर पर चार भागों में बांटती है- विषाणुजन्य, शारीरिक असंतुलन से उत्पन्न रोग, सिंड्रोम तथा फोबिया। शारीरिक असंतुलन के रोगों में निदान नहीं किया जाता केवल खान-पान पर नियंत्रण किया जाता है। सिंड्रोम तथा फोबिया का उपचार चिकित्सा विज्ञान में नहीं है। इस मामले में मंत्र चिकित्सा कारगर है जो ज्योतिष के उपचारात्मक पक्ष का एक भाग है।
भारतीय ज्योतिष इस तथ्य को विनम्रतापूर्वक स्वीकार करता है कि मानव शरीर समग्र ब्रह्मïाण्ड का छोटा स्वरूप है। ब्रह्मïाण्ड और शरीर दोनों ही पंच महाभूतों के एकीकरण का परिणाम है। नवग्रह पंचमहाभूतों के तत्वों का प्रतिनिधित्व कर मानव शरीर को प्रभावित करते हैं। रवि व मंगल अग्नि, चंद्र एवं शुक्र जल, बुध एवं बृहस्पति आकाश तथा शनि, राहू एवं केतु वायु के पोषक हैं। ज्योतिष की बारह राशियां चार तत्वों में प्रतिनिधित्व करती हैं। मेष, सिंह व धनु अग्नि तत्व, वृषभ, कन्या व मकर पृथ्वी तत्व, मिथुन, तुला व कुंभ वायु तत्व तथा कर्क, वृश्चिक व मीन जल तत्व राशियां हैं। आकाश तत्व सभी राशियों में अष्टम के अनुमाप में होता है। राशियों को विभिन्न शारीरिक अंगों का प्रतिनिधित्व भी प्राप्त है- मेष सिर, वृषभ मुख, मिथुन दोनों भुजाएं (वक्षस्थल), कर्क हृदय, सिंह पेट, कन्या कमर, तुला बस्ती, वृश्चिक गुप्तांग, धनु जांघ, मकर घुटने, कुंभ पीठ व घुटने का निचला हिस्सा तथा मीन पैरों की प्रतिनिधि है। इसी तरह नक्षत्रों को भी शरीर के विभिन्न भागों का प्रतिनिधित्व दिया गया है। ग्रहों व राशियों के तत्वों का उपर्युक्त तालमेल ही मानव स्वास्थ्य की आंतरिक कुंजी है। जन्म पत्रिका में रवि-मंगल बलवान हो तो हड्डिïयां मजबूत होती हैं तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। बृहस्पति शरीर को तथा बुध मस्तिष्क को पुष्ट करता है। शुक्र काम जीवन तथा वीर्य, चंद्रमा रक्त संचार को शक्तिशाली बनाता है। शनि स्नायुमंडल, राहु चैतन्यता तथा केतु की अनुकूलता श्रम शक्ति बढ़ाती है। रवि की प्रतिकूलता पित्त दोषन, चन्द्रमा कफ एवं वात दोष, बुध त्रिदोष, बृहस्पति कफ तथा शनि, राहु एवं केतु की प्रतिकूलता वायुदोष उत्पन्न करती है। जन्म पत्रिका का प्रथम भाव लग्न कहलाता है। यह जातक के स्वास्थ्य व व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न व लग्न का स्वामी बलवान हो तो जातक स्वस्थ जीवन का आनंद प्राप्त करता है। तीसरा एवं आठवां भाव आयु का अर्थात् जीवन की लंबाई का द्वितीय व सप्तम मृत्यु का है इन्हें मारक भाव भी कहा जाता है। ग्रहों के योग से आयु तथा गोचर व महादशाओं से मृत्यु का समय कुशल ज्योतिषी तय करते हैं। छठा, आठवां एवं बारहवां भाव स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालने वाली स्थितियों के ज्ञान का भाव है। इन भावों का स्वामी ग्रह अपने भाव में मित्र व समभाव रखने वाले तत्वों की राशियों में स्थित हो तो जातक स्वस्थ रहता है। पृथ्वी से वायु, वायु से जल, अग्नि से पृथ्वी तथा जल से अग्नि तत्व में शत्रुता रहती है। आकाश तत्व अजात शत्रु है। स्वास्थ्य एक सकारात्मक अवधारण है। ग्रहों एवं राशियों के तत्वों का उचित तालमेल ही स्वास्थ्य का आधार है। दुनिया की सभी चिकित्सा पद्धतियां स्वास्थ्य पक्ष के उपचार व पहचान को बल देती है। इस अर्थ में वह बाह्यï जगत से संबंधित है। भारतीय ज्योर्तिविज्ञान स्वास्थ्य पक्ष पर भी विचार करता है जो आंतरिक जगत से संबंधित है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ज्योतिष एवं स्वास्थ्य में घनिष्ट संबंध है।