मुंबई, बम्बई उच्च न्यायालय ने एक कारोबारी को निशाना बनाने वाले वेब आलेख और वीडियो को हटाने का निर्देश देते हुए एक पत्रकार से कहा है कि प्रेस की स्वतंत्रता का इस्तेमाल किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के ‘अंतर्निहित’ अधिकार का उल्लंघन करने के लिए नहीं किया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि खोजी पत्रकारिता को कोई विशेष संरक्षण प्राप्त नहीं है।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने दो अप्रैल को जारी अपने आदेश में कहा कि स्वतंत्र पत्रकार वाहिद अली खान द्वारा अपलोड किए गए लेख और वीडियो प्रथम दृष्टया मानहानिकारक हैं। आदेश की प्रति बुधवार को उपलब्ध हुई।
दुबई से कारोबार करने वाले स्वर्ण व्यापारी खंजन ठक्कर ने अंतरिम आदेश जारी करने का अदालत से अनुरोध किया था कि खान को उनकी आलोचना करने वाले सभी सोशल मीडिया लेखों और वीडियो को हटा देना चाहिए।
ठक्कर ने उच्च न्यायालय में खान के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर 100 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है।
अर्जी में कहा गया है कि सोना कारोबारी को मुंबई पुलिस ने ऑनलाइन सट्टेबाजी/जुआ घोटाले से संबंधित एक मामले में आरोपी के रूप में नामित किया था और इस प्राथमिकी के आधार पर, खान ने व्यवसायी के खिलाफ आधारहीन और अपमानजनक आरोप लगाते हुए कहानियों और वीडियो की एक शृंखला अपलोड की।
न्यायमूर्ति डांगरे ने आदेश में कहा कि खान अपने आरोपों के समर्थन में कोई भी सामग्री प्रस्तुत करने में विफल रहे।
खान के वकील ने दलील दी कि वह अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का प्रयोग कर रहे थे और एक पत्रकार के रूप में सार्वजनिक हित में जानकारी प्रकाशित/प्रसारित करना उनका मौलिक कर्तव्य भी था।
हालांकि, अदालत ने कहा कि जब किसी की प्रतिष्ठा दांव पर हो तो मीडियाकर्मी इस बचाव पर भरोसा नहीं कर सकते।
आदेश में कहा गया है, ‘‘किसी पत्रकार या रिपोर्टर से अपने भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार की सीमा का उल्लंघन करने की उम्मीद नहीं की जाती है और वह केवल यह कहकर संरक्षण का दावा नहीं कर सकता है कि उसे किसी ने जानकारी प्रदान की थी और उसका खुलासा करना सार्वजनिक हित में है।’’
अदालत ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार के साथ संतुलित करना होगा।