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बुखार यानि कि शरीर के तापमान का बढऩा इस बात का परिचायक है कि शरीर को किसी संक्रमण या बाहरी तत्वों से लडऩा पड़ रहा है। सामान्य तापमान 98.4 डिग्री फैरनहीट या 37 डिग्री सेल्सियस होता है। इससे अधिक शरीर के तापमान को बुखार कहते हैं।
बच्चे का तापमान कैसे नापें?
इसे नापने के लिये थर्मामीटर का उपयोग किया जाता है, इसके एक और पारे से भरा बल्ब होता है और दूसरी ओर कांच की नली जुड़ी होती है। पारा गर्म होकर कांच की नली में चढ़ता है जिस पर तापमान की मात्रा के निशान बने होते हैं। जहां तक पारा चढ़ता है उतना तापमान होता है। थर्मामीटर को छोटे बच्चों के मुंह में कभी न रखें, वह इसे चबा सकता है या दांतों से तोड़ सकता है। या तो उसे बच्चे की बगल में रखें या फिर जांघों के मध्य में। थर्मामीटर को लगाने से पहले झटक लें ताकि पारा नली से नीचे उतर आये। उसके पश्चात उसे सही स्थान पर करीब दो मिनट रखें। तापमान नापने के बाद थर्मामीटर को ठंडे पानी से धोकर रखें ताकि उसका इस्तेमाल कोई और करना चाहे तो किया जा सके । तापमान को शारीरिक श्रम या गर्म पेय के सेवन के तुरंत पश्चात नहीं नापें, क्योंकि ऐसे में तापमान में अनावश्यक वृद्घि दिखाई दे सकती है।
किन कारणों से आता है बुखार?
बुखार का सबसे आम कारण है, संक्रमण या इन्फेक्शन। विशेषकर गले और सांस प्रणाली के ऊपरी भाग का संक्रमण आम तौर पर इसके लिये कारणीभूत है। ऐसी दशा में सामान्य दिखाई देने वाला बच्चा अचानक बुखार से ग्रस्त होता है और उसकी गतिविधियां शांत हो जाती हैं। दूसरा आम संक्रमण है मूत्र मार्ग का जो अधिकतर लड़कियों में होता है। इसमें बुखार के साथ-साथ पेट में दर्द, पेशाब में जलन व चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण भी मौजूद होते हैं। बुखार के अन्य कारण है अत्यधिक गर्म जलवायु, तेज धूप में ज्यादा समय बिताना और शरीर में पानी की कमी। उसी तरह बच्चों को अत्यधिक गर्म कमरे में सुलाना या उसे ढेर सारे गर्म कपड़ों और कंबलों में लपेटना भी हानिकारक हो सकता है। वैसे बुखार के कुछ अन्य कारण भी है, मगर अपेक्षाकृत कम समय में ही देखने में आते हैं, अत: यह जरूरी है कि यदि बुखार दो दिन से ज्यादा लगातार आता रहे तो चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिये। बुखार की अधिकता में मस्तिष्क पर असर हो कर बच्चों को झटके आ सकते हैं। उसी तरह शरीर में पानी की कमी उत्पन्न हो सकती है।
मूत्र संक्रमण
मूत्र मार्ग या मूत्र पिडों का संक्रमण एक दुखदायी और गंभीर समस्या है जो यदि वक्त पर सुलझायी न जाये तो जानलेवा भी सिद्घ हो सकती है। मूत्र में संक्रमण बाह्य मार्ग जैसे मूत्र नलिका या योनि मार्ग से मूत्र पिंड़ों में पहुंच सकता है या शरीर के किसी अन्य भाग का संक्रमण खून के द्वारा गुर्दो तक पहुंच सकता है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियांं इस रोग से अधिक पीडि़त होती है। इसका कारण लड़कियों की मूत्र नली का छोटा होना, योनि और मूत्र छिद्र व गुदा द्वार के एक दूसरे के काफी नजदीक होना है जिसके फलस्वरूप संक्रमण एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से पहुंच सकता है। लड़कों में मूत्र संक्रमण बहुत कम होता है अत: उनमें ऐसे लक्षण दिखाई दें तो विशेष सतर्कता बरतनी चाहिये।
मूत्र संक्रमण के लक्षण
थकावट महसूस होना, चिड़चिड़ापन, भूख न लगना जैसे लक्षण इसमें आम होते हैं। उसी तरह हलका बुखार, पेट में दर्द और उल्टी जैसी तकलीफें भी पेश आ सकती हैं। पेशाब में जलन होना, बारबार पेशाब आना, पेशाब रोक न पाना, बिस्तर गीला कर देना जैसे लक्षण भी दिखाई देते हैं।
रोग निदान
उपरोक्त लक्षणों के दिखाई देते ही चिकित्सक से परामर्श करें। पेशाब की जांच करवाना इसमें प्रथम महत्व रखता है। इसके अलावा लड़कों में एक्स-रे द्वारा तथा अन्य जांच के द्वारा रोग के कारण का पता लगाया जा सकता है।
उपचार
इसमें मुख्यत: प्रतिजैविक औषधियों का उपयोग किया जाता है। इसके अलावा जरूरत पडऩे पर शल्यक्रिया भी आवश्यक हो जाती है।