नए वर्ष 2024 में प्रवेश के साथ ही भाजपा ने ‘अबकी बार,400 पार:तीसरी बार,मोदी सरकार’ का नारा बुलन्द किया,तो फरवरी,2024 के प्रथम सप्ताह में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जबाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा के लक्ष्य को थोड़ा नीचे यानि 370 खिसकाया, लेकिन राजग के लिए 400 सीटों पर अड़े रह गए।हालांकि, संसद का मंच-दलीय प्रचार-प्रसार का तो होता नहीं है।
….अब,मोदीजी ने भाजपा और राजग का लक्ष्य निर्धारित कर दिया,तो गोदी मीडिया का टास्क भारी हो गया।उसे मोदीजी के कथन को सही स्थापित करना था-सबसे आगे आई-टाइम्स नाऊ।उसने अपने तथाकथित सर्वे में भाजपा को मोदीजी के कथन-370-से थोड़ा ही कम यानि 366सीटें दी।इंडिया टुडे-आजतक ने थोड़ा-रियलिस्टिक होने की कोशिश की,तो उसे 303 या 304 पर टिकाया।प्रिंट मीडिया में भी मोदीजी के दावे को सही साबित करने की होड़ लग गई।
बुद्धिजीवियों ने संख्या 370 से मोदीजी के नैसर्गिक आत्मीयता पर वीडियो तैयार किए और यू-ट्यूब पर लोड कर दिया,जिसके तहत मोदीजी ने संविधान की धारा 370 निरस्त की थी।बुद्धिजीवियों का दूसरा खेमा यह विश्लेषण करने में जुटा कि अगर आमचुनाव,2024में भाजपा को 370 सीटें आ ही गईं,तो मोदीजी दो-तिहाई बहुमत से वर्तमान संविधान को कूड़ेदान में फेंक कर एक नया संविधान ही लागू कर देंगे,जो वह अपने दूसरे कार्यकाल में नहीं कर पाए।उससे भी काबिल पत्रकारों-बुद्धिजीवियों का तबका-जो खुद को मोदी विरोधी साबित करके कांग्रेस से कुछ पाने में जुटा रहता है-वह यह स्थापित करने में जुट गया कि मोदीजी का दावा झूठा है,भाजपा को 370सीटें आने से रहीं।वह विपक्ष को यह बताने में सक्षम ही नहीं था कि इस बार भाजपा को बहुमत पाने से रोकने के लिए विपक्ष क्या करें!
थोड़े से बुद्धिजीवियों का विश्लेषण रहा कि मोदीजी बड़बोले हैं-उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा रखने और विपक्ष पर एक मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाए रखने के लिए यह दावा किया जरूर है-लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
….. लेकिन, बुद्धिजीवियों का वर्ग खुलकर विश्लेषण नहीं कर रहा कि मोदीजी अपने किसी भी वादे को पूरा करने में विफल रहे हैं।मंहगाई चरम पर है,बेरोजगारी उच्चतम स्तर पर है,नोटबंदी इस देश के लिए एक भयानक दु:स्वप्न साबित हुआ है,संविधान की धारा 370को समाप्त करने के लिए जो कारण बताए गए,वह कोई पूरे नहीं हुए।’न खाऊंगा,न खाने दूंगा’ और ‘मैं भी चौकीदार’का नारा लगाने वाले मोदी जिस अजीत पवार पर 70000करोड़ के घोटाले का आरोप लगाते हैं,एनसीपी को नैचुरली करप्ट पार्टी घोषित करते हैं, उसी अजीत पवार को महाराष्ट्र का उपमुख्यमंत्री बना देते हैं।इलेक्टोरल बॉण्ड के जरिए भ्रष्टाचार के लिए सांवैधानिक तरीके ढूंढ़े गए,ईडी/सीबीआई/इन्कम टैक्स का डर दिखाकर कर वसूली की गई।चंडीगढ़ में राजनैतिक भ्रष्टाचार की निकृष्टतम मिसाल कायम की गई।मुंबई महानगरपालिका में हार के डर से वहां चुनाव टाले गए।विपक्षी दलों के विधायकों की खरीद-फरोख्त की अनगिनत कहानियां लिखी गईं।विपक्षी दलों की सरकारों को गिराया गया।राजभवनों से राजनीतिक गतिविधियां संचालित की गईं।रीढ़विहीन कार्यपालिका से मनमाने कार्य करवाए गए,विधानसभा/विधानपरिषद/लोकसभा/
प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया राजनैतिक यथार्थ बताने से भी परहेज़ करता रहा है।आमचुनाव,2019में भी 10 राज्य- तमिलनाडु(39),आंध्रप्रदेश(25),
मिजोरम(1),सिक्किम(1),पुडुचेरी(
हिन्दी पट्टी में पूर्व की ओर से पहला प्रदेश बिहार है।बिहार विधानसभा के चुनाव 2020 में हुए थे।अगर,बिहार विधानसभा चुनाव,2020 की बात की जाए,तो चुनाव पश्चात सरकार जरूर राजग गठबंधन की बन गई थी।लेकिन राजग और महागठबंधन में कुल वोटों का अंतर महज 0.03% का अथवा एक लाख से कम वोटों का था।एक ही,विधानसभा के कार्यकाल में तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर नीतीश कुमार ने अपनी राजनैतिक विश्वसनीयता खत्म कर दी है।राजग में होकर भी नीतीश राजनैतिक रूप से शून्य हो चले हैं।बिहार हिन्दी पट्टी का एकमात्र प्रदेश है,जहां कभी भाजपा के नेतृत्व में सरकार नहीं बन सकी।यानि कि भाजपा को बिहार में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का अवसर कभी नहीं मिल पाया। 2मार्च,2024 को नरेन्द्र मोदी ने बिहार के औरंगाबाद और बेगूसराय में दो रैलियां की।इसके ठीक अगले ही दिन 3मार्च,2024 को गांधी मैदान,पटना में इंडिया गठबंधन ने ऐतिहासिक ‘जन विश्वास रैली’ की।’जन विश्वास रैली’के सामने मोदीजी की रैली कहीं नहीं ठहरती। परिवारवाद के मुद्दे पर मोदी के आरोपों का लालू प्रसाद ने जो करारा जवाब दिया है,भाजपा उसका काट नहीं ढूंढ़ पा रही है।यही नहीं,सनातनी परंपरा के विरुद्ध मोदी के आचरण पर जो टिप्पणी लालू प्रसाद ने की,उसने हिन्दू हृदय सम्राट होने के मोदी के दावे की हवा निकाल दी है।आगामी आम चुनाव में इंडिया गठबंधन के मुस्लिम+दलित+ पिछड़ा की गोलबंदी का जबाब राजग के पास है नहीं।राजग और भाजपा अपनी आधी सीटें बचा पाने की स्थिति में नहीं है।बिहार में भाजपा को 10 और राजग को 20 सीटें आती नहीं दिख रहीं।
झारखंड में पहली बार भाजपा की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है।2015-20तक मुख्यमंत्री रहे रघुवर दास अपने ही विधानसभा क्षेत्र में अपनी ही पार्टी में रहे और निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर लड़ रहे सरयू राय से चुनाव हार गए थे।वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से बाहर जाकर झारखंड विकास मोर्चा के नाम से राजनैतिक दल भी बनाया था।पिछले आमचुनाव,2019 में वह कोडरमा संसदीय क्षेत्र में भाजपा की अन्नपूर्णा देवी से लाखों वोट से हार गए थे।वर्षों राजनैतिक वजूद स्थापित करने की कोशिश करते रहे और हारकर भाजपा में लौट आए।मोदीजी ईडी,सीबीआई और इन्कम टैक्स का दुरूपयोग अपने राजनैतिक विरोधियों के लिए करते रहे हैं।झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को जेल में डालकर मोदीजी ने उनको आदिवासी नायक के रूप में उभरने का अवसर दे दिया।आज हेमन्त का राजनीतिक प्रभाव अखिल भारतीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सभी 47 सीटों पर स्पष्ट महसूस किया जा सकता है।हेमन्त सोरेन जेल में रहकर भाजपा/राजग द्वारा आमचुनाव,2019 में जीती गई 12 सीटों में से 5 सीटों की कमी कर देने में पर्याप्त सक्षम हैं।
हिन्दी पट्टी में अगला राज्य उत्तरप्रदेश है।आमचुनाव,2009तक उत्तरप्रदेश में भाजपा का कोई मजबूत जनाधार नहीं था।80 सीटों वाले प्रदेश में भाजपा बमुश्किल 10 सीटें जीत पाई थी,जबकि समाजवादी पार्टी को 23, कांग्रेस को 21 और बसपा को 20 सीटें प्राप्त हुई थी। आमचुनाव,2014 में ‘हिन्दू हृदय सम्राट’की अपनी छवि और आक्रामक प्रचार के भरोसे मोदी ने भाजपा को 71सीटें दिलवाईं थीं।आमचुनाव, 2019 में भाजपा को मिलने वाली सीटों का आंकड़ों में एक गिरावट आई और भाजपा 62 सीटें निकाल पाई।आज की तारीख में भाजपा अपना सबसे मजबूत गढ़ उत्तरप्रदेश और गुजरात को मानती है।उसे लगता है कि सिर्फ इन दो राज्यों-उत्तरप्रदेश(80)और गुजरात(26)-के भरोसे उसे लगभग 100सीटें प्राप्त हो जाएंगी।लेकिन,आमचुनाव,2019 में अल्पसंख्यक वोटों के कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच बंटवारा हो जाने के कारण 25% से ज्यादा वोटरों की संख्या मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद कैराना, मुजफ्फरनगर,रामपुर,मेरठ,बागपत,
देश की राजधानी दिल्ली भी हिन्दी पट्टी में ही आती है और वहां लोकसभा की 7 सीटें आती हैं।कांग्रेस ने आमचुनाव, 2004 में इनमें से छ:सीटें जीतीं थी और 2009में तो उसने सभी 7 सीटें जीती थी।लेकिन,आमचुनाव,2014 और 2019 में भाजपा ने सभी 7 सीटें जीती थी।हालांकि,आमचुनाव, 2014 में आप पार्टी को 33% और कांग्रेस को 15% वोट मिले थे और भाजपा को 47%ही वोट मिले थे,लेकिन विपक्षी वोटों के बंट जाने के कारण भाजपा आगे निकल गई थी।2015 और 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों में आप को जितने वोट मिले थे,उसके सामने भाजपा कहीं नहीं ठहरती।2015में आप को 54% तो भाजपा को महज 32% वोट मिले थे।विधानसभा चुनाव,2020 में आप को 54% तो भाजपा को 39% वोट मिले थे।आगामी आमचुनाव के लिए आप और कांग्रेस में गठबंधन हो गया है।कांग्रेस तीन सीटों-उत्तर पश्चिम,उत्तर पूर्व और चांदनी चौक सीटों पर लड़ेगी। ‘आप’ पूर्वी दिल्ली,पश्चिमी दिल्ली,दक्षिणी दिल्ली और नई दिल्ली सीटों पर लड़ेगी।चांदनी चौक सीट से वर्तमान सांसद डॉ हर्षवर्धन पांच बार विधानसभा और दो बार लोकसभा सीट जीतकर अब तक अपराजेय रहे हैं।विधानसभा चुनाव, 2013 में वह भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे।भाजपा ने इस बार उनका टिकट काट दिया है। टिकट कटने के अपने ट्विटर अकाउंट से डॉ हर्षवर्धन ने भावुक कर देने वाला जो बयान जारी किया है,उसने भाजपा की राजनीतिक संभावनाओं को कम किया है।राजनीतिक अनुमान है कि चांदनी चौक,नई दिल्ली,पूर्वी दिल्ली और उत्तर पूर्व दिल्ली यानि कि 4 सीटों पर भाजपा को शिकस्त मिलेगी।
छत्तीसगढ़ में 11 संसदीय क्षेत्र हैं,जिनमें भाजपा की 9 सीटें हैं।विधानसभा चुनाव,2023 में 3 लोकसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त मिली थी।चुनाव विश्लेषकों की मानें तो इस प्रदेश में भाजपा को कम से कम एक सीट का नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
आमचुनाव,2019 में मध्यप्रदेश में कांग्रेस सिर्फ एक सीट-छिंदवाड़ा-की सीट जीत पाई थी,जहां से कांग्रेस के कमलनाथ के पुत्र नकुल नाथ विजयी हुए थे।मध्यप्रदेश की शेष 28 सीटें भाजपा और उसके सहयोगी को गई थी। विधानसभा चुनाव,2018 में कांग्रेस को सत्ता मिली थी-कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे।लेकिन,वह इतने अपरिपक्व साबित हुए कि भाजपा ने चोर दरवाजे से मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया ली।फिर भी,कांग्रेस का नेतृत्व कमलनाथ के पास ही रहा।इतने नकारा कमलनाथ को दलबदल करवा कर भाजपा में शामिल करने की भाजपा की कवायद से स्पष्ट होता है कि भाजपा हार के अंदेशे से आतंकित है। विधानसभा चुनाव,2023 में 5 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा कांग्रेस से पिछड़ गई थी।अगर,भाजपा 5 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव हारती है,तो मध्यप्रदेश में उसे 4 सीटों का नुक़सान संभावित है।
आमचुनाव,2019में भाजपा ने राजस्थान में सभी 25 सीटें जीत ली थी।विधानसभा चुनाव,2023 में अशोक गहलोत की लोकप्रिय सरकार चुनाव जीत पाने में विफल रही,भाजपा वापस सत्ता में लौटी।लेकिन,11 संसदीय क्षेत्रों में भाजपा पिछड़ती दिखी।बहुत संभव है-आमचुनाव,2024 में भाजपा को राजस्थान में 10 सीटों का नुक़सान हो।
इस प्रकार,हिन्दी पट्टी में मोदी या भाजपा को बिहार में 10,झारखंड में 5,उत्तरप्रदेश में 12,दिल्ली में 4,छत्तीसगढ़ में 1,मध्यप्रदेश में 4,राजस्थान में 10 कुल 46 सीटों का नुक़सान उठाना पड़े।
पंकज कुमार श्रीवास्तव