मोदी ने इन चुनावों में भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है । जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, वैसे-वैसे भाजपा अपने लक्ष्य को पाने की कोशिश तेज करती जा रही है । वो अपने समीकरण बैठाने में बड़ी शिद्दत से लगी हुई है और अपने गठबंधन में नए साथियों को जोड़ने की कोशिश कर रही है । मोदी जानते हैं कि उनका लक्ष्य बहुत मुश्किल है, इसलिए उन्होंने अभी से अपने लक्ष्य को पाने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है । भाजपा ने उत्तर और पश्चिम भारत में अपनी चरम अवस्था प्राप्त कर ली है । उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी भाजपा और सीटों के जुड़ने की ज्यादा उम्मीद नहीं कर सकती । पश्चिम बंगाल से उसकी उम्मीद बढ़ गई है क्योंकि संदेशखाली की घटना के बाद ममता बनर्जी बैकफुट पर हैं । पंजाब में भाजपा अकाली दल के साथ गठबंधन करने की कोशिश कर रही है क्योंकि अकेले उसे दो से ज्यादा सीटें मिलती दिखाई नहीं दे रही हैं । बेशक भाजपा कितने ही आत्मविश्वास से भरी हो लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि अगर किसी वजह से भाजपा को उत्तर पश्चिम भारत में कुछ सीटों का नुकसान हो जाए तो वो बहुमत से दूर भी हो सकती हैं हालांकि अभी इसकी कोई संभावना दिखाई नहीं दे रही है । जनता के मन में क्या है, निश्चित रूप से तो कुछ नहीं कहा जा सकता । मोदी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं इसलिए वो 2019 में अपने कार्यकाल के शुरू होने के बाद से ही दक्षिण भारत पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं । मोदी अच्छी तरह से जानते हैं कि बिना दक्षिण विजय के 400 सीटें जीतना संभव नहीं है । ऐसा करना सिर्फ चार सौ सीट जीतने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जरूरी नहीं है बल्कि उत्तर और पश्चिम भारत में संभावित नुकसान की भरपाई के लिए भी जरूरी है ।
भारतीय राजनीति में कभी दक्षिण भारत कांग्रेस का मजबूत गढ़ था, आपातकाल के बाद हुए चुनावों में भी दक्षिण भारत से कांग्रेस को सम्मानजनक सीटें मिली थी । 2019 के चुनावों में भी कांग्रेस को अपनी अधिकांश सीटें दक्षिण भारत से ही मिली थी । भाजपा सिर्फ कर्नाटक में कांग्रेस को पटकनी देते हुए 28 में से 26 सीटें जीतने में कामयाब रही थी । इसके अलावा भाजपा को तेलंगाना से चार सीटें मिली थी । तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में भाजपा के हाथ बिल्कुल खाली रह गए थे । दक्षिण के पांच राज्यों में 130 सीटें दांव पर लगी हुई हैं । 2019 में इसमें से सिर्फ 30 सीटें ही भाजपा जीत सकी थी । पिछले चुनावों में कर्नाटक में भाजपा को 51 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि तमिलनाडु में सिर्फ 3.71 प्रतिशत ही वोट मिले थे । पांचों दक्षिण राज्यों में सिर्फ 20 प्रतिशत वोट ही मिले थे । इस बार कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है । भाजपा ने कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए जेडीएस से हाथ मिला लिया है । आंध्र प्रदेश में भी टीडीपी और जनसेना से गठबंधन लगभग तय हो चुका है । तमिलनाडु में भी अन्नाद्रमुक के एक घटक के साथ गठबंधन की बात चल रही है । भाजपा ने दक्षिण भारत के लिए विशेष रणनीति बनाई है, वो पूरे राज्य में जोर लगाने की जगह कुछ चुनिंदा सीटों पर दांव लगा रही है । भाजपा की कोशिश है कि इन चुनावों में वो दक्षिण के सभी राज्यों में खुद को स्थापित कर ले । इसलिए मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में लगातार दक्षिण भारत के दौरे कर रहे हैं । अपने कार्यक्रमों और नीतियों के माध्यम से वो जनता से संवाद स्थापित करते आ रहे हैं । योजनाबद्ध तरीके से केन्द्रीय मंत्री दौरे करते रहते हैं । इन कोशिशों का नतीजा हमें चुनाव परिणामों में देखने को मिल सकता है । इस साल भाजपा ने देश में 50 प्रतिशत वोट हासिल करने के लक्ष्य रखा है और इसमें दक्षिण भारत बहुत बड़ी बाधा है । इसलिए इन चुनावों में भाजपा दक्षिण में बहुत मेहनत कर रही है ।
भाजपा ने मोदी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से जनता में अपनी पहुंच तो बना ही ली है । मोदी सरकार की योजनाओं की विशेषता यह है कि लाभार्थी को यह एहसास कराया जाता है कि उसका जो फायदा हो रहा है, वो मोदी सरकार की तरफ से हो रहा है । मोदी अपनी योजनाओं में दो बातें निश्चित करके चलते हैं । यह निश्चित किया जाता है कि योजना का फायदा सीधे लाभार्थी तक पहुंचे और उसमें भ्रष्टाचार न हो । दूसरा यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि लाभार्थी को केन्द्र सरकार की भूमिका का पता चल सके । पहले जितनी भी योजनाएं होती थी, वो सभी राज्य सरकारों द्वारा अपनी जनता को प्रदान की जाती थी । केन्द्र सरकार की पहुंच राज्य की जनता तक नहीं हो पाती थी । मोदी की योजनाओं ने राज्यों में जनता तक केन्द्र सरकार की पहुंच बना दी है । ये बहुत बड़ी बात है, इसको समझने की जरूरत है । जब एक मतदाता अपने पक्के घर को देखता है तो उसे मोदी नजर आते हैं, उसे उज्जवला गैस मिलती है तो मोदी नजर आते हैं । करोड़ों लोगों के घरों में जब नल से जल आता है तो उसमें भी मोदी दिखाई देते हैं । ऐसे ही मुफ्त राशन, शौचालय और खाते में पैसा आने से जनता में मोदी अपनी पहचान बना पाते हैं ।
राम मंदिर निर्माण का भी कुछ असर दक्षिण राज्यों में देखने में आ रहा है । राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले मोदी ने एक योजनाबद्ध तरीके से दक्षिण भारत के राज्यों का दौरा किया था । उन्होंने दक्षिण के कई मंदिरों में पूजा अर्चना की थी । एक तरह से उनकी कोशिश थी कि दक्षिण भारत भी राम मंदिर से जुड़ जाए । कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राम मंदिर का असर दक्षिण भारत में पड़ने वाला नहीं है लेकिन मेरा मानना है कि उत्तर भारत जितना नहीं लेकिन कुछ असर जरूर होने वाला है । दक्षिण भारत की डेमोग्राफी को देखते हुए इस बार भाजपा लव जेहाद, हिजाब-हलाला और यूसीसी जैसे मुद्दों पर बोलने से बच रही है । भाजपा हिंदुत्व पर नरमी बरत रही है ।
2019 में भाजपा केरल में दस प्रतिशत से ज्यादा मत पाने में सफल रही थी लेकिन उसे सीटें नहीं मिली थी । इस बार भाजपा अपनी विशेष रणनीति के तहत कुछ सीटों को अपनी झोली में डालने की तैयारी कर रही है । पिछले चुनावों में वो जहां दूसरे या तीसरे नम्बर पर थी, वहां भाजपा मेहनत कर रही है ताकि कुछ सीटों के साथ अपना खाता खोला जा सके । कुछ केन्द्रीय मंत्रियों को भी केरल से उतारा जा सकता है । माकपा और कांग्रेस का बंगाल में गठबंधन है और केरल में ये दोनों एक दूसरे के सामने खड़े हैं । भाजपा एक नया विमर्श खड़ा करके केरल में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है । केरल में मतदाता लोकसभा और विधानसभा को अलग-अलग करके देखते हैं । केन्द्र में वो माकपा से ज्यादा कांग्रेस को महत्व देते हैं । भाजपा कांग्रेस की जगह लेने की कोशिश कर रही है ।
आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री वाईएस जगन रेड्डी की बहन शर्मिला रेड्डी ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में कर दिया है । उनके कांग्रेस प्रमुख बनने के बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश बढ़ गया है । इस बार प्रदेश में तिकोना मुकाबला हो सकता है । भाजपा का आंध्र प्रदेश में जनाधार कम है लेकिन टीडीपी और जनसेना के साथ गठबंधन के बाद उसकी ताकत बढ़ गई है । भाजपा को कितनी सीटें मिलती है, कहा नहीं जा सकता लेकिन गठबंधन बड़ी जीत दर्ज कर सकता है । इससे भाजपा को अपने 400 सीट जीतने के लक्ष्य को पाने में आसानी हो सकती है । पिछले चुनावों में भाजपा को आंध्र प्रदेश में लगभग 1.70 प्रतिशत वोट मिले थे, इन चुनावों में गठबंधन के कारण इसमें बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है ।
तमिलनाडु में मोदी और प्रदेश भाजपा प्रमुख अन्नामलाई का करिश्मा कुछ बड़ा होने की उम्मीद जगा रहा है । बेशक राजनीतिक विश्लेषक कुछ भी कहें लेकिन भाजपा को तमिलनाडु में एक करिश्माई नेता मिल चुका है । उनकी रैलियों और यात्राओं में जुटने वाली भीड़ बता रही है कि जनता उनके साथ जुड़ रही है । अन्नाद्रमुक के गुटों में आपसी कलह के कारण तमिलनाडु की राजनीति में विपक्ष की नजर से एक शून्य पैदा हो गया है । भाजपा उस शून्य को भरने की कोशिश करती दिखाई दे रही है । अन्नाद्रमुक का एक गुट भाजपा के साथ गठबंधन में आ सकता है, इससे भी भाजपा को मदद मिल सकती है । डीएमके की राजनीति भी बता रही है कि वो अन्नाद्रमुक से ज्यादा भाजपा को महत्व दे रही है । देखा जाये तो आज डीएमके के सामने विपक्षी नेता के रूप में अन्नामलाई का चेहरा ही दिखाई दे रहा है । दक्षिण भारत की राजनीति में चेहरे का बहुत महत्व है । भाजपा के पास दो चेहरे हैं और इसका असर आने वाले चुनावों में दिखाई दे सकता है । ऐसा लगता है कि इन चुनावों में भाजपा दक्षिण भारत में कांग्रेस से बड़ी ताकत बनने वाली है । भाजपा का दक्षिण विजय अभियान क्या रंग दिखाता हैं, आने वाला वक्त बतायेगा ।
राजेश कुमार पासी