बच्चों के साथ थोड़ा कठोर बनें

पापा हमेशा घर पर नहीं रहते हैं, सुबह निकलते हैं शाम को दफ्तर से घर लौटते हैं। घर लौटकर भी बच्चों को बैठकर पढऩे की सलाह देते हैं। पापा गुस्सैल हों तो बच्चे पापा के ज्यादा करीब जाते ही नहीं। मगर मम्मी के साथ ऐसा नहीं होता। मम्मी बचपन से सीने से लगाकर पालती है, बढ़ा करती है। इस कारण बच्चे मम्मी से चिपके रहते हैं। मगर जैसा-जैसा बच्चा बड़ा होता जाता है वैसा-वैसा उद्दण्ड होता चला जाता है। यह उद्दण्डता किसी-किसी बच्चे में पन्द्रह साल की उम्र तक रहती है।


पांच वर्ष तक के बच्चे मम्मी से चिपके रह सकते हैं मगर पांच वर्ष के पूरे होते ही मम्मी को बच्चे के प्रति थोड़ा कठोर हो जाना चाहिए। अन्यथा मम्मी का लाड़-प्यार बच्चे को बिगाड़ सकता है। पांच साल का बच्चा यह समझने लगता है कि रुपए देने से सामान मिलते हैं। कुसंग में पड़कर यह भी समझने लगता है कि जुएं में दो रुपए लगाकर, चार रुपए बनाए जा सकते हैं। वीडियो गेम, कंचे, ताश आदि के खेल उसे भाने लगते है। मम्मी लाड़-प्यार वश बच्चे को पैसे देती चली जाती है। बच्चा बारह साल का होते-होते नशे के चंगुल में भी फंस सकता है। जब पन्द्रह साल के करीब पहुंचता है तो उसे होश आता है, साथ ही साथ होश उड़ भी जाते है। एक भयंकर जाल में फंसकर बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। मम्मी हाथ मलते रह जाती है और पापा-मम्मी को कोसते रह जाते हैं।


मम्मी के लिए जरूरी यह है कि वह समय निकालकर, थोड़ी मेहनत कर बच्चे को स्कूल छोड़े और ले आए। यदि यह संभव नहीं हो तो पहुंचाने, लेने के लिए बस अड्डे तक जरूर जाए। बढ़ते बच्चे की संगत पर खास ध्यान रखे और बच्चे से मीठा बोलकर राज उगलवाएं कि उसके मित्र कैसे हैं और क्या-क्या बोलते हैं। मम्मी को चाहिए कि वह बच्चे से कहे कि शैतान बच्चों से दोस्ती न करे। हमउम्र के बच्चों से दोस्ती करे। पढ़ाई में मन लगाए और अड्डा बाजी न करे, स्कूल में हो या स्कूल से बाहर। मम्मी को चाहिए कि वह बच्चे को घर से डिब्बा ले जाने के लिए प्रेरित करें व जेब खर्च कम से कम दें। यह ब्यौरा मांगें कि पैसों को किस मद में खर्च किया। बच्चे को समझाने के लिए जरूरत पडऩे पर यह भी कहें कि पापा जी कितनी मेहनत कर पैसा लाते हैं, उसको यों ही नहीं उड़ाना चाहिए। बच्चा मम्मी की बातें न माने या शैतानी पर उतर आए तो मम्मी को चाहिए कि वह बच्चे को अपने कमांड में ले ले, भले ही बच्चे की पिटाई करनी पड़े। उद्दण्डता और एक तरह की भी हो सकती है। मम्मी का बहुत ज्यादा लाड़-प्यार पाकर बच्चे सामान्य व्यवहार को ताक पर रख देते हैं, अनजाने में ही, वे मम्मी के दोस्तों व सहेलियों के बीच भी उद्दण्डता दिखलाने लगते हैं। मम्मी से चिपक जाते हैं, उस की चुन्नी या आंचल खींचने लगते हैं, उसके कंधे पर चढ़ जाते हैं, मम्मी के डांटने पर उलटा मम्मी को ही डांट देते हैं, मम्मी को मार भी देते हैं। मेहमानों के सामने तमाशा बनने की जगह चुप रहना ही मम्मी को भाने लगता है। बच्चे अक्सर अनुशासन सीख जाते हैं। इसलिए जरूरत पडऩे पर थोड़ा कठोर हुआ जा सकता है। बच्चे को सिखायें कि किसी के कुछ देने पर धन्यवाद या थैंकयू कहा जाता है। कितना बुरा लगता है जब बच्चा मेहमानों के चाकलेट वगैरह देने पर बिना धन्यवाद कहे दावत उड़ाने लगता है। बच्चे को अच्छी-अच्छी कविताएं- गाना सिखाना आदि मम्मी के जिम्मे ही आते हैं। मम्मी बच्चे की सबसे बड़ी गुरु या शिक्षिका होती है। बच्चे पर उसके संस्कारों का जितना प्रभाव पड़ता है, किसी और के संस्कार का नहीं। देश प्रेमियों, शहीदों आदि पर मां के व्यक्तित्व का प्रभाव ही देखा गया है। शिवाजी आदि महापुरुषों का निर्माण उनकी माताओं के द्वारा ही हुआ था।