कामकाजी महिलाएं तथा पति

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मेरी समझ में ही नहीं आता, कि मुझे क्या हो गया है? अजीब सा स्वभाव बन गया है. बेचैनी सी महसूस होती है। चिड़चिड़ापन आता जा रहा है? यह शिकायत मेरी एक परिचित मिसेज सिन्हा की है। जो एक ऑफिस में काम करती है और घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों से भी बंधी हुई है। अत्यंत व्यस्त होने के कारण उन्हें जितना आराम व सुखद घरेलू वातावरण मिलना चाहिए, नहीं मिल पाता है। जिससे उनका स्वास्थ्य भी तेजी से गिरता जा रहा है और दाम्पत्य जीवन भी सुखमय नहीं है। मैंने उनसे जब बातचीत की तो उन्होंने थके शब्दों में कहा- क्या करूं? नौकरी की थी, घर के सुखचैन के लिए, बच्चों के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए। पर अब सोचती हूं कि नौकरी करके मैंने अपना सारा सुख-चैन गिरवी रख दिया है। बच्चे तो नासमझ है ही, पर पति जरा भी अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं। रात को 9-10 बजे से पहले घूम कर नहीं आते है। मेरा जरा सा भी काम नहीं कराते है। घर गृहस्थी का सारा काम मुझे अकेले को ही करना पड़ता है। क्या घर का जरा सा काम करने पर कोई जोरू का गुलाम होजाता है? मुझे उनकी बात सुनकर बड़ा तरस आया। दोहरी जिम्मेदारी से बंधकर जीना कोई आसान काम नहीं है।
आइए, अब जरा मिसेज कपूर से मिले। मिसेज कपूर एक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ाती है। सुबह स्कूल के लिए निकल जाती है और फिर दोपहर को वापस लौटकर आती हैं, तब तक उनके पति जा चुके होते हैं। पर उसके बावजूद भी चेहरे पर बहुत रौनक है। शाम के समय प्राय: अपने पति और बच्चों के साथ घूमने जाती है। एक दिन उनसे पूछा कि- आप भी दोहरी जिंदगी से बंधी है, पर उसके बाद भी शाम को  घूमने कैसे जा पाती हैं? क्या शाम को खाने का झंझट नहीं करती? मेरी यह बात सुनकर बोली, रोज-रोज कोई होटल में नहीं खा सकते। मेरी गृहस्थी बड़े आराम से चलती है। मेरे पति घर के छोटे-छोटे कामों में मेरी बड़ी मदद करते हैं। सब्जी काट देते हैं, सलाद बना लेते हैं, सुबह का नाश्ता बच्चों को वे ही देते हैं। मैं सुबह का खाना बनाती हूं और अपने जाने की तैयारी करती हूं। इसलिए मुझे अपनी नौकरी खलती नहीं है। पतिदेव को घर के कामों में मदद करते देखकर मेरे पड़ौसी मेरे पति को कोई उपनामों से संबोधित करते हैं. पर हमें इसकी परवाह नहीं है। वे कहते हैं कि तुम नौकरी करके मुझे आर्थिक सहायता देती हो, तो फिर मेरा भी कुछ फर्ज है। मिसेज कपूर की यह बात सुनकर मुझे लगा कि कितने पति इस प्रकार से सोचते है और व्यवहार करते है? इसीलिए दोहरी जिम्मेदारी में रहने वाली महिलाएं चिड़चिड़ी हो जाती है और उनका स्वास्थ्य भी कमजोर ही जाता है। सर्विस करने वाली पत्नियों के पति अगर अपना व्यवहार उदारतापूर्ण और सहानुभूतिपूर्ण बना लें तो फिर घर गृहस्थी बड़े ही आराम से चल सकती है। महंगाई में एक की आमदनी से खर्चा चलाना बड़ा ही मुश्किल है। अत: पति को आर्थिक सहयोग देने के लिए और घर का खर्चा सुचारू रूप सेचलाने के लिए महिलाएं नौकरी करने लगी है।
 बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ सके, टी.वी., फ्रीज, स्कूटर आ सके। जीवन स्तर ऊंचा हो सके, यह सब एक की कमाई से हो पाना संभव नहीं है। पर एक कामकाजी महिला के पति होने के नाते आपका व्यवहार कैसा है? कहने को तो पत्नी को समान अधिकार है। पर व्यवहार में क्या होता है? शायद सभी अच्छी तरह से जानते हैं।
संयुक्त परिवार अब बहुत ही कम है। पर जहां पर सास-ननदें रहती हैं वहां यदि लड़का शाम को ऑफिस से आता है तो मां बड़े ही प्यार से उसे चाय बनाकर नाश्ता देती है। पर नौकरी कर रही बहू को भी क्या चाय-नाश्ता बनाकर देती है बहू बेचारी कपड़े बदलकर स्वयं ही अपने लिए तथा पूरे परिवार के लिए चाय-नाश्ता बनाती है। इस समय उसकी शारीरिक व मानसिक थकान को कोई नहीं समझता है। प्राय: उस अकेली को सुबह-शाम का खाना भी अकेले ही बनाना पड़ता है। सास-ननदें सोचती है कि वे क्यों बनाएं? बहूरानी किसलिए है? नौकरी करने, घर-गृहस्थी का काम करने के बाद भी उसे ताने ही सुनने को मिलते हैं। नौकरी करते हैं तो कोई रानी-महारानी नहीं हो गई है। घर का काम तो करना ही पड़ेगा। इस प्रकार के उपेक्षित व्यवहार से वह चिड़चिड़ी हो जाती है।
ऐसे में यदि पतिदेव से कुछ आशा करें तो वे कहने से नहीं चूकते हैं- देवीजी नौकरी करती है तो क्या मुझ पर रौब जमाएंगी? मैं कोई तुम्हारा नौकर नहीं हूं, जो तुम्हारे साथ घर का काम करूं। घर का काम करना तो तुम्हारा फर्ज है। पति महोदय की दो टूक बात सुनकर बेचारी खून के आंसू पीकर रह जाती है। यही उसकी नियति है।
पर, जरा मानवतावादी दृष्टिकोण से सोचिए। क्या आपने कभी अपनी सर्विस कर रही पत्नी के सुख-दु:ख जानने-समझने का प्रयास किया है? वह सर्विस कर रही है और हर महीने वह आपको तनख्वाह लाकर दे रही है। पत्नी ने अपनी इच्छा से तो नौकरी की नहीं है। वह तो पत्नी बनकर आई है, घर में रहकर सारा काम समेटने के लिए। लेकिन आपने आर्थिक मदद और जीवन स्तर ऊंचा उठाने के लिए उसे नौकरी पर लगवा दिया। उसके नौकरी करने से आपका मासिक खर्च पहले से कहीं अच्छी प्रकार से चलने लगा है।