हिन्दू धर्म के संस्थापक कौन…

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कहा जाता है कि हिन्दू धर्म का कोई संस्थापक नहीं। इस धर्म की शुरुआत का कुछ अता पता नहीं। हालांकि धर्म के जानकारों अनुसार वर्तमान में जारी इस धर्म की शुरुआत प्रथम मनु स्वायम्भुव मनु के मन्वन्तर से हुई थी। ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा ने इस धर्म की स्थापना की।

 
क्रमश: कहे तो विष्णु से ब्रह्मा, ब्रह्मा से ११ रुद्र, ११ प्रजापतियों और स्वायंभुव मनु के माध्यम से इस धर्म की स्थापना हुई। इसके बाद इस धा‍र्मिक ज्ञान की शिव के सात शिष्यों से अलग-अलग शाखाओं का निर्माण हुआ।

 
वेद और मनु सभी धर्मों का मूल है। मनु के बाद कई संदेशवाहक आते गए और इस ज्ञान को अपने अपने तरीके से लोगों तक पहुंचाया। लगभग ९० हजार से भी अधिक वर्षों की परंपरा से यह ज्ञान श्रीकृष्ण और गौतम बुद्ध तक पहुंचा।

 
हिन्दू धर्म का संस्थापक ब्रह्मा है प्रथम और श्रीकृष्ण हैं अंतिम।.

. अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा  यह किसी पदार्थ नहीं ऋषियों के नाम हैं।

 अग्निवायुरविभ्यस्तु त्र्यं ब्रह्म सनातनम। दुदोह यज्ञसिध्यर्थमृगयु : समलक्षणम्॥- मनु स्मृति

 

जिस परमात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न कर अग्नि आदि चारों ऋषियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराए उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा से ऋग, यजुः, साम और अथर्ववेद का ग्रहण किया।- मनु स्मृति  

 

आदि सृष्टि में अवान्तर प्रलय के पश्चात् ब्रह्मा के पुत्र स्वायम्भुव मनु ने धर्म का उपदेश दिया। मनु ने ब्रह्मा से शिक्षा पाकर भृगु, मरीचि आदि ऋषियों को वेद की शिक्षा दी। इस वाचिक परम्परा वर्णन का पर्याप्‍त भाग मनुस्मृति में यथार्थरूप में मिलता है। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार अग्नि, वायु एवं सूर्य ने तपस्या की और ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद को प्राप्त किया।

 
प्राचीनकाल में ऋग्वेद ही था. फिर ऋग्‍वेद के बाद यजुर्वेद व सामवेद की शुरुआत हुई। बहुत काल तक यह तीन वेद ही थे। इन्हें वेदत्रयी कहा जाने लगा। मान्यता अनुसार इन तीनों के ज्ञान का संकलन भगवान राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था। अथर्ववेद के संबंध में मनुस्मृति के अनुसार; इसका ज्ञान सबसे पहले महर्षि अंगिरा को हुआ। बाद में अंगिरा द्वारा सुने गए अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया। इस तरह हिन्दू धर्म दो भागों में बंट गया एक वे जो ऋग्वेद को मानते थे और दूसरे वे जो अथर्ववेद को मानते थे। इस तरह चार किताबों का अवतरण हुआ। कृष्ण के समय महर्षि पराशर के पुत्र कृष्ण द्वैपायन ने वेद को चार प्रभागों में संपादित किया। इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी। उस क्रम में ऋग्वेद; पैल को, यजुर्वेद; वैशम्पायन को, सामवेद; जैमिनि को तथा अथर्ववेद; सुमन्तु को सौंपा गया। कृष्ण द्वैपायन को ही वेद व्यास कहा जाता है।

 

गीता में श्रीकृष्ण के माध्यम से परमेश्वर कहते हैं कि, मैंने इस अविनाशी ज्ञान को आदित्य से कहा, आदित्य ने अपने पुत्र वैवस्वत मनु से कहा और मनु ने अपने पुत्र राजा इक्ष्वाकु से कहा। इस प्रकार परंपरा से प्राप्त इस योग ज्ञान को राजर्षियों ने जाना।

परमेश्वर से प्राप्त यह ज्ञान ब्रह्मा ने 11 प्रजापतियों, 11 रुद्रों और अपने ही स्वरूप स्वयंभुव मनु और शतरूपा को दिया। स्वायम्भुव मनु ने इस ज्ञान को अपने पुत्रों को दिया फिर क्रमश: स्वरोचिष, औत्तमी, तामस मनु, रैवत, चाक्षुष और फिर वैवश्वत मनु को यह ज्ञान परंपरा से मिला।


अंत में यह ज्ञान गीता के रूप में भगवान कृष्ण से मिला। अभी वराह कल्प में सातवें मनु वैवस्वत मनु का मन्वन्तर चल रहा है। ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं। इस तरह वेद सुनने और वेद संभालने वाले ऋषि और मनु ही हिन्दू धर्म के संस्थापक हैं।