रायबरेली से नेहरू-गांधी परिवार की विरासत प्रियंका को सौंपने की तैयारी

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हालांकि,सत्रहवीं लोकसभा की अंतिम बैठक हो चुकी है।लेकिन सत्रहवीं लोकसभा को आधिकारिक रूप से भंग किया जाना अभी शेष है।इस बीच 14 फरवरी,2024 को रायबरेली की सांसद सोनिया गांधी ने राज्यसभा के लिए अपनी उम्मीदवारी का पर्चा दाखिल कर दिया है।अब,यह बात स्पष्ट ही थी कि वह 18वीं लोकसभा के लिए रायबरेली सीट से आमचुनाव नहीं लड़ेंगी।तथापि,15 फरवरी,2024 को सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के नाम भावुक कर देने वाला पत्र लिखा है।जिससे यह भी ध्वनित होता है कि वे रायबरेली की राजनीतिक विरासत प्रियंका को सौंपने की तैयारी कर चुकी हैं।सबसे पहले तो सोनिया ने रायबरेली के लोगों को ‘स्नेही परिवारजन’कहकर संबोधित किया है।
 
पत्र  की शुरुआत में वह कहती हैं-‘मेरा परिवार दिल्ली में अधूरा है।यह रायबरेली आकर-आप लोगों से मिलकर पूरा होता है।’इन शब्दों से वह अपने परिवार में रायबरेली के तमाम लोगों को जोड़ लेती हैं या यों कहें कि रायबरेली के तमाम लोगों के साथ अपने परिवार को एकाकार कर लेती हैं।इसके आगे वह कहतीं हैं-‘यह नेह-नाता बहुत पुराना है और अपने ससुराल से मुझे सौभाग्य की तरह मिला है।’रायबरेली के लोगों के स्नेहिल रिश्तों का श्रेय वह अपने ससुराल के लोगों यानि कि सास-ससुर(पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी)को देती हैं,जिन्होंने  संसद में भी रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया था और खुद को सास-ससुर की विरासत को आगे बढ़ाने वाली बताया है।
 
आगे वह याद दिलाती हैं कि उनके श्वसुर फिरोज गांधी और सास इंदिरा गांधी ने भी रायबरेली का प्रतिनिधित्व किया था,तब से अब तक यह सिलसिला जिंदगी के उतार-चढ़ाव और मुश्किल भरी राह पर प्यार और जोश के साथ आगे बढ़ता गया और इस पर हमारी आस्था मजबूत होती गई।
 
इस पत्र के तीसरे पैराग्राफ के पहले वाक्य में सोनिया गांधी कहती हैं-‘इसी रोशन रास्ते पर आपने मुझे भी चलने की जगह दी।’कहने का अभिप्राय यह कि इन शब्दों से सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों के साथ अपने आत्मीय रिश्तों का श्रेय खुद को नहीं रायबरेली के लोगों को दे रही हैं।अगले वाक्य में वह कहती हैं-‘सास और जीवनसाथी को हमेशा के लिए खोकर मैं आपके पास आई और आपने अपना आंचल मेरे लिए फैला दिया।’यह किसी भी महिला द्वारा दिया जाने वाला ऐसा वक्तव्य है,जो किसी को भी भावुक कर देगा।साथ ही,वह उस ऐतिहासिकता को भी दुहराता है कि महज 7साल के अंतराल पर इस देश के अतिविशिष्ट परिवार की दो पीढ़ियों-इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने अपने सार्वजनिक मूल्यों के लिए अपने प्राणों की आहुतियां दी हैं।इस तीसरे पैराग्राफ में ही सोनिया गांधी आगे कहतीं हैं-‘पिछले दो चुनावों में विषम परिस्थितियों में भी आप एक चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहे,मैं यह कभी भूल नहीं सकती।यह कहते हुए मुझे गर्व है कि आज मैं जो कुछ भी हूं,आपकी बदौलत हूं और मैंने इस भरोसे को हरदम निभाने की कोशिश की है।’यह किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा अपनी जनता के प्रति एक श्रेष्ठ आभार संदेश है।
 
इस पत्र  में आगे सोनिया गांधी उन मजबूरियों का जिक्र करती हैं,जिसके चलते वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़कर राज्यसभा जाने का निर्णय लेने को बाध्य हुईं।वह कहती हैं-‘अब स्वास्थ्य और बढ़ती उम्र के चलते मैं अगला लोकसभा चुनाव नहीं लड़ूंगी।’वह आगे कहतीं हैं-इस निर्णय के बाद मुझे आपकी सीधी सेवा का अवसर नहीं मिलेगा, लेकिन यह तय है कि मेरा मन-प्राण हमेशा आपके पास रहेगा।मुझे पता है कि आप भी हर मुश्किल में मुझे और मेरे परिवार को वैसे ही संभाल लेंगे,जैसे अब तक संभालते आए हैं।
 
किसी पारिवारिक आत्मीय स्वजन की तरह सोनिया गांधी ने पत्र के अंतिम पैराग्राफ में’बड़ों को प्रणाम,छोटों को स्नेह’ प्रेषित किया है।साथ ही जल्द मिलने का वादा करना नहीं भूलीं।
 
भारत का संसदीय इतिहास कोई 72 वर्ष का हो चला है।इन 72 वर्षों में रायबरेली ने 17 आमचुनाव और 3 उपचुनाव देखें हैं।इसमें सिर्फ 4 जनप्रतिनिधि ऐसे रहे,जिन्होंने कुल 12 वर्षों के लिए रायबरेली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और जो या तो नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के थे अथवा उन्हें नेहरू गांधी परिवार की व्यक्तिगत पारिवारिक शुभकामनाएं अप्राप्त थीं।
 
नेहरू-गांधी परिवार और रायबरेली के आम मतदाताओं के बीच आत्मीय और भावुक रिश्ते की शुरुआत भारत में संसदीय इतिहास के शुरूआत से ही हो गई थी।1952के पहले आमचुनाव में इस संसदीय सीट से कांग्रेस के टिकट पर भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के इकलौते दामाद फिरोज गांधी ने चुनाव लड़ा और जीता।फिरोज गांधी नेहरू के इकलौते दामाद तो थे ही,स्वयं भी स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार के रूप में उनकी स्वतंत्र पहचान थी।निजी बीमा कंपनियों द्वारा गड़बड़ झाले को उन्होंने सार्वजनिक पटल पर रखा और अगर 1956में बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर भारतीय जीवन बीमा निगम की स्थापना की गई,तो उसके पीछे फिरोज गांधी जैसे लोगों का सद्प्रयास था।1957में भी वही जीते।भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी नैसर्गिकता के कारण मूंदड़ा कांड को भी उन्होंने उजागर किया और जिसके कारण टीटी कृष्णमाचारी जैसे केंद्रीय मंत्री को भी इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था।1959में केरल में इ एम एस नंबूदरीपाद की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू किए जाने के फैसले से भी फिरोज गांधी इत्तफाक नहीं रखते थे।8 सितम्बर,1960 को फिरोज गांधी के असामयिक निधन से यह सीट खाली हो गई और उपचुनाव में नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के आरपी सिंह सांसद चुने गए।(हालांकि,वह कांग्रेसी ही थे।) 1962के आम चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गई,सो एक अन्य कांग्रेसी बैजनाथ कुरील ने रायबरेली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और वह 1967तक सांसद रहे।इस प्रकार,1960-67के 7 वर्षों में नेहरू-गांधी परिवार के बाहर के दो कांग्रेसियों ने रायबरेली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
 
पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और इंदिराजी को उन्होंने अपने कैबिनेट में जगह दी।उन्हें राज्यसभा का सदस्य भी बनाया गया।जनवरी,1966 में लाल बहादुर शास्त्री के असामयिक निधन के बाद इंदिराजी प्रधानमंत्री बनीं। इंदिराजी के कार्यकाल में पहले आमचुनाव 1967में हुए थे।1967में रायबरेली सीट अनारक्षित हो गई।इंदिराजी ने अपने संसदीय क्षेत्र के रूप में पति फिरोज गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली को ही चुना।1971में भी इंदिराजी रायबरेली से ही चुनी गईं।1971के आम चुनाव में इंदिराजी की तरफ से कुछ तकनीकी वैधानिक भूलें हो गईं।पराजित उम्मीदवार राजनारायणजी ने उन तकनीकी वैधानिक भूलों को आधार बनाकर इंदिराजी के चुनाव को न्यायालय में चुनौती दी।12 जून,1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने अपने फैसले से इंदिराजी के चुनाव को रद्द कर दिया। इंदिराजी ने इमरजेंसी लगाकर आम चुनाव एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिए।1971के बाद आम चुनाव 1976में नहीं 1977में हुए थे।इंदिरा विरोधी अभियान का नेतृत्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने किया।प.बंगाल,उड़ीसा, अविभाजित बिहार,अविभाजित उत्तर प्रदेश,अविभाजित मध्यप्रदेश,राजस्थान,दिल्ली,हरियाणा,पंजाब,चंडीगढ़,हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के पांव पूरी तरह उखड़ गए,इन राज्यों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली।इंदिराजी भी रायबरेली सीट पर राजनारायण के हाथों पराजित हुईं।अगले आम चुनाव 1980तक राजनारायणजी ही रायबरेली के सांसद बने रहे।इस प्रकार,राजनारायण नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के तीसरे सांसद रहे,जिन्होंने रायबरेली क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया।
 
1980के आम चुनाव में इंदिराजी ने रायबरेली से चुनाव तो लड़ा ही,लेकिन एहतियातन आंध्रप्रदेश आंध्रप्रदेश के मेदक से भी चुनाव लड़ा और जीता।वह दोनों जगहों से निर्वाचित हुईं।जब एक सीट छोड़ने की बात आई, तो उन्होंने रायबरेली सीट छोड़ दी और मेदक सीट अपने पास रखी।
 
ऐसी परिस्थिति में,रायबरेली में दूसरा उपचुनाव हुआ।रायबरेली सीट के लिए इस उपचुनाव के लिए इंदिराजी ने अपने भतीजे अरूण नेहरू को तैयार किया।अरूण नेहरू तब तक एक अराजनीतिक शख्सियत थे और वह एक कंपनी जॉनसन एंड निकल्सन के चीफ एक्जीक्यूटिव थे। चुनाव हुए और अरूण नेहरू जीत गए।रायबरेली के लिए इंदिराजी  नेहरू-गांधी परिवार से ही एक अराजनीतिक शख्सियत अरूण नेहरू को राजनीति में खींच लाईं थी। अरूण नेहरू 1984के चुनाव में भी रायबरेली से निर्वाचित हुए।31अक्तूबर, 1984 को इंदिराजी की हत्या के बाद राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने,लेकिन अरूण नेहरू के साथ उनकी व्यापक सैद्धांतिक असहमतियां थीं।अरूण नेहरू वीपी सिंह कैंप में चले गये।इसलिए,1989में अरूण नेहरू के विकल्प की तलाश हुई और इंदिराजी की मामी शीला कौल के रूप में यह खोज पूरी हुई।शीला कौल  सिर्फ 1989में ही नहीं बल्कि 1991में भी रायबरेली से सांसद निर्वाचित हुईं।अगले
 
आमचुनाव,1996 के पहले शीला कौल को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया।
 
1996 और 1998 के आम चुनावों में नेहरू-गांधी परिवार का कोई आदमी रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ा और भाजपा के एक स्थानीय कार्यकर्ता अरूण सिंह रायबरेली से सांसद निर्वाचित हुए।अरूण सिंह आरपी सिंह,बैजनाथ कुरील, राजनारायण के बाद चौथी शख्सियत थे,जो रायबरेली से सांसद निर्वाचित हुए,लेकिन वह नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य नहीं थे।इतिहास के इस दौर में सोनिया राजनीति में आने को लेकर उत्सुक नहीं थीं और राहुल-प्रियंका पर्याप्त परिपक्व नहीं थे।
 
1991में राजीव गांधी की हत्या के बाद अमेठी में उनकी विरासत उनके परम मित्र कैप्टन सतीश शर्मा संभाल रहे थे।वह 1991और 1996में अमेठी से सांसद निर्वाचित भी हुए थे।लेकिन,1998में वह संजय सिंह के हाथों अमेठी में पराजित भी हो चुके थे।1999के आमचुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा रायबरेली से सांसद निर्वाचित हुए। कैप्टन सतीश शर्मा अरूण सिंह के बाद वह पांचवीं शख्सियत थे,जो रायबरेली से सांसद निर्वाचित हुए,लेकिन वह नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य नहीं थे।पर आरपी सिंह,बैजनाथ कुरील, राजनारायण और अरूण सिंह से इन संदर्भों में अलग थे कि उनको नेहरू-गांधी परिवार का पूर्ण समर्थन हासिल था।यहां तक कि उनके चुनाव प्रचार में कम से कम प्रियंका गांधी ने खुलकर भाग लिया था।
 
14 मार्च,1998को सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कुर्सी संभाल ली थी।जब उन्होंने चुनावी राजनीति में प्रवेश का मन बनाया,तो कैप्टन सतीश शर्मा ने रायबरेली सीट उनके लिए छोड़ दी थी।2004से 2024तक सोनिया गांधी लगातार रायबरेली की सांसद बनी हुई हैं।
 
15फरवरी,2024 को रायबरेली के लोगों को भावुक कर देने वाला मार्मिक और आत्मीय पत्र लिखकर सोनिया गांधी ने स्पष्ट कर दिया है कि बढ़ती उम्र और गिरते स्वास्थ के कारण रायबरेली का प्रतिनिधित्व उनके लिए कठिन अवश्य है, लेकिन रायबरेली के लोगों से मिली आत्मीयता यह परिवार भूल नहीं पाएगा।ऐसे में,राजनीतिक हलकों में यह सहज अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी आमचुनाव में शायद प्रियंका गांधी  रायबरेली से चुनाव लड़ेगीं और रायबरेली की राजनीतिक विरासत नेहरू-गांधी परिवार के पास ही बनी रहेगी।