आखिरकार मोदी सरकार ने लाल कृष्ण आडवाणी को 3 फरवरी को भारत रत्न देने की घोषणा कर ही दी. हर्ष का विषय यह कि किसी भी विपक्षी पार्टी ने इस बात का विरोध नहीं किया, उल्टे शरद पवार जैसे राजनीतिज्ञों ने इस कदम का स्वागत भी किया. उम्मीद की जानी चाहिए कि अब कांग्रेस पार्टी और दूसरे दल वाले लोग भी जो कहा करते थे, भाजपा अपने वरिष्ठों का सम्मान नहीं करती, अब चुप हो जाएंगे.
कुल मिलाकर अभी तक तीन भाजपा नेताओं को भारत रत्न मिल चुका है. इसमें राष्ट्र ऋषि नानाजी देशमुख, भारत माता के महान सपूत अटल बिहारी वाजपेई और अब लाल कृष्ण आडवाणी का नाम भी उसमें जुड़ गया है. नानाजी देशमुख, अटल बिहारी वाजपेई को जहां यह सम्मान मरणोपरांत दिया गया, वही लालकृष्ण आडवाणी को यह सम्मान उनके जीवन काल में मिला पर तीनों ही ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्हें भारत रत्न देने में कोई उंगली नहीं उठाई जा सकती. बड़ी बात यह कि उपरोक्त नेताओं को भारत रत्न देने से ऐसा तो नहीं कहा जा सकता कि उनका सम्मान नहीं बढ़ा लेकिन इसके साथ यह भी बड़ी सच्चाई है कि उपरोक्त लोगों को भारत रत्न देने से भारत रत्न का भी सम्मान बढ़ा है.
श्री आडवाणी का जन्म 8 नवंबर 1927 को कराची में एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था. वर्ष 1947 में देश के विभाजन के वक्त दूसरे लाखों हिंदुओं की तरह उन्हें पाकिस्तान छोड़कर भारत आना पड़ा, जहां वह मुंबई में बस गए. उनकी पत्नी का नाम कमला आडवाणी था जिनका निधन हो चुका है. बेटे का नाम जयंत और बेटी का नाम प्रतिभा है. उनका शुरुआती जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्य करते हुए व्यतीत हुआ. उन दिनों संघ का कार्य करना कितना कष्टकारी था, शायद इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती. श्री आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि राजस्थान में संघ कार्य करने के दौरान उन्हें जोक भरे तालाबों तक में नहाना पड़ा.1970 में उन्हें जनसंघ की ओर से राज्यसभा में भेजा गया. वर्ष 1980 में जनता पार्टी में टूट के बाद वह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे.यह भी उपलब्धि उनके नाम पर रही कि वह तीन बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. भाजपा जो 1984 में लोकसभा में सिर्फ दो सीटे तक प्राप्त कर सकी थी, वर्ष 1989 में उनके नेतृत्व में राम जन्मभूमि के लिए सक्रिय आंदोलन चलाने के चलते 86 सीटे प्राप्त कर सकी. इसके बाद सभी को पता है कि क्रमशः भाजपा का ग्राफ बढ़ता गया.
संभवत उस दौर के सबसे लोकप्रिय राजनेता होते हुए भी वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव के पूर्व भाजपा के मुंबई महाधिवेशन में भाजपा की ओर से उन्होंने अटल बिहारी वाजपेई को अध्यक्ष की हैसियत से प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया.यदि वह चाहते तो स्वयं भी प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर सकते थे लेकिन उन्हें पता था कि इस पद के लिए श्री वाजपेई ज्यादा स्वीकार्य उम्मीदवार होंगे. इसीलिए पार्टी हित में उन्होंने ऐसा फैसला किया. वर्ष 1998 में एनडीए के सत्ता पर आने पर वह उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री रहे और बहुत कुछ सरदार पटेल की याद दिलाते रहे. वर्ष 2002 में गुजरात दंगों के दौरान जब नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से हटाने का फैसला करीब करीब हो चुका था, तब श्री आडवाणी ही उस फैसले में दीवार बन गए थे.
अटल बिहारी वाजपेई तो उन्हें एकात्म मानववाद के प्रणेता दूसरा पंडित दीनदयाल उपाध्याय कहते और मानते थे. अपनी आत्मकथा और” मेरा देश मेरा जीवन” जैसी किताबें लिखकर कहीं ना कहीं उन्होंने उस संपूर्ण दौर को जीवंत कर दिया है. 90 के दशक में जब हवाला कांड में उनका नाम आया, तो उन्होंने बगैर मांगे स्वयं लोकसभा से इस्तीफा दे दिया. सिर्फ इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी घोषणा कर दी थी कि जब तक वह निर्दोष साबित नहीं होते, संसद में पैर भी नहीं रखेंगे. श्री आडवाणी ने अपनी इस प्रतिबद्धता को पूरी तरह से निभाया और फिर निर्दोष साबित होने पर ही लोकसभा का चुनाव लड़ा.
लाल लाल कृष्ण आडवाणी का अपने पूरे जीवन में उनका सबसे उल्लेखनीय पक्ष 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से शुरू हुई अयोध्या तक के लिए राम रथ यात्रा थी. अध्यक्ष श्री आडवाणी अयोध्या तक नहीं पहुंच पाए और उन्हें समस्तीपुर में ही लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया पर अधूरी होते हुए भी निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत में यह सर्वाधिक प्रभावी एवं उल्लेखनीय यात्रा थी. इसका देश के जनजीवन और देश के भविष्य पर गहरा प्रभाव पड़ा. जाति पाति में बटा हुआ हिंदू समाज हिंदुत्व की धारा की ओर आप्लावित होने लगा जिसके चलते राम जन्म भूमि में राम मंदिर का निर्माण का रास्ता एक हद तक प्रशस्त हो गया . देश का राष्ट्रीय समाज अपने स्व, अपनी संस्कृति और अपनी पहचान को लेकर जागरूक होने की दिशा में बढ़ चला.
राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा प्रधानमंत्री मोदी ने की पर मंदिर के निर्माण के लिए जिन व्यक्तित्वों का सर्वाधिक योगदान है, श्री आडवाणी उनमें एक है. निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अलख जगाने की दिशा में उनके योगदान को युगों युगों तक् भुलाया नहीं जा सकता.राम मंदिर आंदोलन के माध्यम से देश में छदम धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध उन्होंने जो शंखनाद किया, उसी का नतीजा है कि इस देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादी आज अपने को सिर्फ ज्यादा प्रमाणिक हिंदू ही नहीं कह रहे बल्कि राम मंदिर निर्माण का श्रेय लेने का भी प्रयास कर रहे हैं. निश्चित रूप से श्री आडवाणी को भारत रत्न देना सिर्फ उनका व्यक्तिगत सम्मान नहीं! यह विचारधारा के प्रति समर्पण और निष्ठा का भी सम्मान है.यह छदम धर्मनिरपेक्षता की जगह सच्ची पंथनिरपेक्षता का सम्मान है.यह अपने सांस्कृतिक पुनर्जागरण और गौरव का सम्मान है, जिस रास्ते पर चलकर हमारा देश पुनः एक बार विश्व गुरु बनने की स्थिति में चल पड़ा है.
वीरेंद्र सिंह परिहार