बैंक में यदि हम अपना पैसा जमा करवाते हैं तभी आवश्यकता पड़ने पर वहाँ से निकाल सकते हैँ। उस पैसे से हम अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। इसी प्रकार अपने पुण्य कर्मो की पूँजी को यदि भाग्य के खाते में जमा कराएँगे तभी अगले जन्म में उसे कैश करवा सकेंगे।
बैंक में जमा करवाए हुआ धन के कारण हम स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं। अपनी दैनन्दिन आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद हम अपने जीवन के आड़े वक्त के लिए धन का संग्रह करने के लिए व्यग्र रहते हैं।
एक भौतिक जीवन को जीने के लिए हम इतने ताम झाम करते हैं परन्तु जन्म-जन्मान्तरों तक हमारे शरीर में रहने वाले जीव को अपनी जीवन यात्रा पूरी करनी होती है, उसके विषय में हम कभी नहीं सोचते जबकि यह विचार मन में अधिक हावी होना चाहिए। पर अफसोस उसे हम अपने मन-मस्तिष्क में कभी आने ही नहीं देते।
एक दिन बैंक हमेशा की तरह पैसे निकालने वालों की भीड़ थी। भीड़ को देखकर एक व्यक्ति रुक गया। उसने वहाँ खड़े एक व्यक्ति से पूछा कि यहाँ भीड़ क्यों हैं? दूसरे आदमी ने जवाब में कहा कि यह भीड़ पैसे लेने वालों की है। वह आगन्तुक बैंक की प्रणाली से अन्जान था। उसने फिर पूछा कि क्या सबको पैसे मिलते हैं? दूसरे व्यक्ति के हाँ, कहने पर वह भी लाइन में खड़ा हो गया।
जब उसकी बारी आई तो बैंक के कैशियर ने उससे पूछा कि उसे कितने पैसे चाहिए, पर्ची भरी है क्या, तुम्हारा खाता बैंक में है?
अपनी अनभिज्ञता प्रदर्शित करते हुए उसने न में सिर हिला दिया और कहा कि तुम सबको पैसे दे रहे थे। मुझे भी पैसे चाहिए थे, इसलिए मैं भी लाइन में खड़ा हो गया। उसका भोला-सा उत्तर सुनकर कैशियर ने उसे समझाया कि यह बैंक है। यहाँ पर लोग पैसे जमा करवाते हैँ। फिर जितने पैसे की जरूरत उनको होती है तब पर्ची भरकर उतने पैसे ले लेते हैं और फिर अपनी पासबुक में एन्ट्री करवा लेते हैं।
कहने का अर्थ यही है कि बैंक में पहले पैसे जमा करवाने होते हैं तभी निकल पाते हैं। पासबुक में केवल तीन एंट्री होती हैं- डिपाजिट यानी धनराशि जमा कराना, विड्राल अर्थात पैसा निकालना और बैलेंस यानी कितना धन शेष बच गया।
बैंकिंग प्रणाली से अन्जान उस व्यक्ति ने जब बैंक में अपना पैसा जमा ही नहीं करवाया था तो फिर उसे आवश्यकता होने पर भी वहाँ से पैसा नहीं मिल सकता था। वह व्यक्ति खाली हाथ ही रह गया।
हम सब लोग जो इस बैंकिंग प्रणाली को भली-भाँति जानते हैं, वे भी भूल जाते हैं कि धन की तरह हमारे भाग्य का भी अपना एक अकाउंट होता है। वहाँ भी जमा, घटा और शेष बची हुई राशि का हिसाब रखा जाता है।
इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि भाग्य एक बैंक है। हमारे पुण्यकर्म और हमारे पापकर्म हमारी जमाराशि हैँ। पुण्य कर्मो के कारण हम अपने इस भौतिक जीवन में सुख-समृद्धि, शान्ति, सफलता, यश और स्वस्थ जीवन आदि का आनन्द ले सकते हैं।
इसके विपरीत पापकर्मों के कारण हमें जीवन में अभाव, परेशानी, रोग, कलह-क्लेश और निराशा आदि भोगने पड़ते हैं। जब जीव अपने पापकर्मों को भोग लेता है तभी उसे उनसे मुक्ति मिलती है। पापकर्मों और पुण्यकर्मो को भोगने के बाद उनमें से जो कर्म शेष बचते हैं, उन्हीं के अनुसार जीव को अगला जन्म मिलता है। चौरासी लाख योनियों में से वह कोई भी शरीर हो सकता है।
अतः अपने पुण्यकर्मो को अपने भाग्य के खाते में जोड़ने के लिए अभी से तैयार हो जाइए। ऐसा न हो कि पापकर्मों की अधिकता से न अगला जन्म अच्छा मिले और न ही जीवन में सुख-सुविधाएँ ही मिल सकें। उस समय सिर धुनकर पश्चाताप करने से अच्छा है कि हम अभी से चेत जाएँ। इसका कारण है कि हमारे इन पुण्यकर्मो और पापकर्मों के लेखे-जोखे के अनुसार ही हमें सब कुछ मिलता है।