मूली की मुख्यतः दो किस्में होती हैं, सफेद और छोटी सफेद मूली। इनके अतिरिक्त मूली गोल और लाल रंग में उत्पन्न होती है। कुछ जगहों में यह सभी मौसम में उत्पन्न होती है। विशेषकर यह सर्दियों के मौसम में पैदा होती है। मूली में विटामिन ए, बी और सी पाया जाता है। यह रूचिकारक व खारयुक्त होती है।
छोटी मूली तिक्त, रूचिकारक, पाचक, ज्वर, श्वांस, नाक, कंठ, नेत्रा आदि रोगों को ठीक कर देती है। बड़ी मूली रूक्ष, उष्ण, गरिष्ठ और वात, पित्त और कफ दोष बढ़ाने वाली होती है। कोमल मूली दोषहर होती है। पकी और जरठ मूली त्रिदोष-कारक होती है।
मूली के सेवन से शरीर का रक्त शुद्ध होता है। यह कृमिनाशक व शूलनाशक होती है। मूली के टुकड़े थोड़े प्याज के टुकड़ों के साथ मिलाकर छाछ के साथ सेवन करने से अर्श के सभी कष्ट निवारण हो जाते हैं। कोमल मूली को लेकर काटकर चीनी मिलाकर पीने से अम्लपित्त मिट जाता है। कोमल मूली का काढ़ा बनाकर इसमें पीपर का चूर्ण मिलाकर पीने से अग्नि प्रदीप्त होती है और अपच, उल्टी दस्त को बंद कर देती है।
मूली को भोजन के साथ या बाद में खाना चाहिए। रात में इसका सेवन करना उचित नहीं होता। खाली पेट मूली खाने से छाती में दाह होता है और पित्त बढ़ता है। गठिया के रोगी को तथा जिनकी तिल्ली बढ़ी हुई हो, उनको मूली का सेवन नहीं करना चाहिए। भोजन करने के कुछ देर पश्चात् पेट में गैस या दर्द होता हो तो मूली के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से तुरंत आराम मिल जाता है।