विभिन्न अंगों में होने वाले कैंसर के लक्षण

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स्तन कैंसर

महिलाओं में प्रायः रजस्राव होने के बाद 40-50 वर्ष की आयु में स्तन कैंसर होने की अधिक संभावना रहती है। अधिक प्रसव व जिन्होंने बालक को स्तनपान न कराया हो, उन्हें स्तन कैंसर होने की संभावना अधिक रहती है। डिंबग्रथि (ओवरी) से उत्सर्जित हार्मोन भी इस रोग को उत्पन्न कर सकते हैं।

सर्वप्रथम स्तन में छोटी, अचल गांठ आती है। प्रायः प्रारंभ में वेदना नहीं होती किंतु बाद में कभी-कभी पीड़ा हो भी सकती है। प्रारंभ में बगल की रसग्रंथियां (गिल्टियां) नहीं बढ़ती किंतु कुछ दिनों के बाद बगल की रस ग्रंथियां फूल जाती हैं। चुचुक से स्राव भी होता है।
जिस ओर के स्तन में कैंसर की गांठ होती है, उस ओर का चुचुक ऊपर की ओर उठा हुआ दिखाई देता है। चुचुक के चारों ओर का स्तनमंडल भी प्रायः पूर्व की अपेक्षा छोटा दिखाई देता है व स्तन मंडल की त्वचा नारंगी रंग के छिलके की भांति अनियमित ऊबड़ खाबड़ व स्पर्श में कठोर हो जाती है।


गर्भाशय का कैंसर

छोटी उम्र में विवाह, अधिक प्रसव, संसर्गजन्य रोग, रजस्राव के समय मैले-अस्वच्छ वस्त्रों का प्रयोग, प्रसव के दौरान गर्भाशय ग्रीवा में यदि किसी तरह का व्रण हो गया हो और वह ठीक होने से पहले ही यदि पुनः गर्भधारण हो जाए तो ऐसी महिलाओं को 40 वर्ष की आयु के बाद गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर होने की संभावना होती है।


रजोनिवृत्ति के बाद मासिक स्राव बंद होने के पश्चात् पुनः योनि से रक्तस्राव होने लगता है, साथ ही गंभीर अवस्था में पूय स्राव भी बहता है और स्राव से दुर्गंध आने लगती है। पैरों व कमर में भी निरंतर वेदना बनी रहती है।


रक्त कैंसर (ल्यूकेमिआ)

एक्सरे और विकिरण प्रणाली से किरणें यदि शरीर के अंदर गहन प्रवेश कर जाएं तो अस्थियों को प्रभावित करती हैं जिससे उसके अंदर रक्त के कोषाणु भी प्रभावित होते हैं। मुख से रक्तस्राव, जोड़ों व पसलियों में वेदना, ज्वर का निरंतर बहुत दिनों तक बने रहना, आंतों के स्वाभाविक कार्यों में फेरबदल होना (मलबद्धता अथवा अतिसार होना), प्लीहा व लसिका ग्रंथियों के आकार में वृद्धि होना, श्वासकष्ट होना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं।


मुख का कैंसर

तंबाकू सेवन मुख व गले के कैंसर का मुख्य कारण है। भारत देश में मुख के कैंसर के रूग्ण अधिक मिलते हैं। मुख के भीतर कोई गांठ, घाव या व्रण बन जाना, मुख के भीतरी किसी स्थान पर कोई सफेद चिन्ह बन जाना, मुख से लार टपकना व दुर्गंध आना, मुंह खोलने में कठिनाई होना, बोलने व निगलने में कठिनाई का अनुभव होना आदि लक्षण होते हैं।


फुफ्फुस कैंसर

सतत खांसी रहना, खांसी के साथ खून आना, आवाज में बदलाव आना, श्वासकष्ट होना आदि लक्षण होते हैं।


पाचनतंत्रा का कैंसर

आमाशय का कैंसर प्रायः पुरूषों में 40 वर्ष की आयु के बाद होता है। रोगी को पेट में वेदना होती है, कैंसर की कोशिकाओं से आमाशय घिरा रहने के कारण भूख बहुत कम हो जाती है, कभी-कभी खून की उल्टी भी होता है। दुर्बलता व भोजन न करने के कारण रक्ताल्पता भी होती हैं


इसमें प्रारंभ में कोई लक्षण नहीं होता, बाद में आंतों के कैंसर में ज्वर, अजीर्ण व पतले दस्त होते हैं। पेट में असहनीय पीड़ा होती है। कभी-कभी मलद्वार से केवल रक्त या मल के साथ मिलकर रक्त भी आता है। कभी-कभी आतों में गांठ की वजह से मलबद्धता भी हो सकती है।


यकृत का कैंसर

यकृत व पित्ताशय के कैंसर में पेट के दांईं ओर असहनीय पीड़ा, रक्ताल्पता, अपचन व पेट के दाईं ओर गांठ का अनुभव होना इसके लक्षण हैं। यकृत में कैंसर स्वयं कम ही होता है। प्रायः अन्य अंगों के द्वारा लसिका संस्थान व रक्त के द्वारा ही विक्षेपित होता है। अतः यकृत के कैंसर में अन्य संबंधित अंगों का परीक्षण भी अवश्य करवा लेना चाहिए। यकृत के कैंसर में जलोदर व पीलिया के लक्षण भी होते हैं।


मूत्राशय व वृक्क का कैंसर

कोयले की खानों में कार्यरत श्रमिकों व रंग के कारखाने में कार्य करने वाले कर्मचारियों को मूत्राशय का कैंसर होने की अधिक संभावना रहती है। पथरी भी यदि अधिक दिनों तक रहे तो वहां व्रण होकर कैंसर की कोशिकाएं पनपने लगती हैं। जो लक्षण मूत्राशय कैंसर के हैं अधिकतर वही लक्षण वृक्क के कैंसर में भी होते हैं। कभी-कभी मूत्रा के साथ रक्त आता है। पेट के निचले हिस्से में पीड़ा होती है। मूत्राशय में गांठ की अनुभूति अपेक्षाकृत कम होती है।


शिश्न कैंसर

यह उन पुरूषों में अधिक होता है जो अपने शिश्न की स्वच्छता की ओर उचित ध्यान नहीं देते। परस्त्रागमन व उपदंश के कारण भी शिश्न कैंसर होने की संभावना बए़ती है। प्रारंभ में शिश्न पर एक छोटी सी गांठ आती है, धीरे-धीरे उसका रूप, आकार और परिधि बदलती जाती है। पश्चात वहां से रक्त और पीप भी निकलता है। बायोप्सी द्वारा जांच करने पर निदान संभव हो सकता है।


वृषण कैंसर

वृषण कैंसर प्रायः बहुत कम पाया जाता है। गर्भावस्था में वृषण यदि पेट में ही पड़े रहे तो वहां पर ये विकृत होकर कैंसर का रूप धारण कर सकते हैं। वृषण में बाहरी चोट लगना अथवा हार्मोन्स के असंतुलन के कारण भी वृषण कैंसर हो सकता है। प्रारंभ में केवल वृषण पर सूजन आती है। ज्वर प्रायः नहीं रहता है। रूग्ण कभी-कभी इसे हाइड्रोसिल समझकर निश्चित हो जाता है किंतु इस ओर सावधान रहना चाहिए क्योंकि वृषण का कैंसर शरीर में बहुत जल्दी प्रसारित होता है।


प्रोस्टेट कैंसर

प्रायः वृद्धावस्था में जब प्रोस्टेट ग्रंथि अपने सामान्य आकार से कुछ बढ़ने लगती है तो अन्य अवयवों के साथ इसकी रगड़ होकर व्रण तैयार होकर कैंसर की गांठ बनने की संभावना रहती है। प्रारंभ में मूत्रात्याग में बाधा होती है। कभी-कभी मूत्रा भीतर रूकने से पेट फूल जाता है व मूत्रा त्याग के समय वेदना भी होती है।


ब्रेन कैंसर

(मस्तिष्क कैंसर) इसमें मस्तिष्क या स्पाइनल कॉर्ड में ट्यूमर (गांठ) होता है जिससे चक्कर आना, उल्टी होना, स्मृतिनाश होना, अचानक ससंबद्ध गतियां करना, ज्ञानेन्द्रियों के कार्य विकृत होना, श्वासकष्टता होना आदि लक्षण होते हैं।