क्या मोदी रूपये को डालर के समानांतर वैश्विक मुद्रा बनाने पर कार्यरत हैं?

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कोविड काल को बीते तीन वर्ष पूरे होने जा रहे हैं मगर उसके दुष्प्रभावों से अभी तक विकसित देश तक नहीं उबर पाये हैं। अपने आपको आर्थिक महाशक्ति कहने वाले देश बरबादी के अंतिम कगार पर खड़े हैं। मंहगाई से त्रस्त हैं किन्तु उस समय लिये गये मोदी के दूरदर्शी कदमों के चलते भारत आज तेजी से विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनने के नित नये पायदान चढ़ रहा है। देश आर्थिक क्षेत्रों में आंतरिक और वैश्विक स्तर पर भी नये सोपान बना रहा है।

जहां तक आंतरिक आर्थिक सक्षमता का प्रश्न है, देश के व्यापक आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों और मजबूत वैश्विक रुझानों के चलते बुधवार को सेंसेक्स 72000 के ऐतिहासिक स्तर को भी पार कर चुका है। धात्विक, वस्तु विनिमय, ऑटो एक्सचेंज और बैंकिंग क्षेत्र में तेज खरीदारी के कारण 213.40 अंक बढ़कर एनएसई का मानक सूचकांक निफ्टी 21654.75 के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच चुका है और आगे बढने के सतत प्रयास में है। चतुर्थ कारोबारी सत्र में बुधवार को बीएसई का सेंसेक्स 701.63 अंक या 0.98 प्रतिशत उछलकर 72038.43 के अपने अब तक के उच्च स्तर पर बंद हुआ। इस दिन यह 783.05 अंक या 1.09 प्रतिशत उछलकर अपने अधिकतम मूल्य 72119.85 पर पहुंच गया। निफ्टी भी 234.4 अंक या 1.09% बढ़कर 21675.75 के अपने सर्वकालिक इंट्रा डे (एक ही दिन में स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री को इंट्रा डे ट्रेडिंग के रूप में जाना जाता है) शिखर पर पहुंच गया था। एशियाई बाजारों में सियोल, टोक्यो, शंघाई और हांगकांग भी लाभ के साथ बंद हुए। इसके अतिरिक्त यूरोपीय बाजारों के शेयर भी अधिकतर सकारात्मक क्षेत्र में कारोबार कर रहे थे।

रूपये में कारोबार के भारत सरकार के दावों को फेक न्यूज बताने वाले न्यूज चैनलों को धता बताते हुये रूस के बाद यूएई से हुए रूपये में कारोबार करार ने इन चैनलों के चेहरों पर भी कालिख पोत दी है। स्मरणीय है कि इराक  से भी रूपये में कारोबार करार अंतिम चरण में है। भारत सरकार की नीतियों और सहयोग से उत्साहित भारत की बड़ी कम्पनियां बहुत तेजी से विदेशी कम्पनियों के अधिग्रहण कर रही हैं या फिर बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में बड़ी सहभागिता कर रही हैं। वस्तुतः भारत की शीर्ष कम्पनियां बहुराष्ट्रीय स्वरूप ग्रहण करने के भगीरथ प्रयास कर रही हैं।

वर्तमान में कई भारतीय कंपनियां बहुत तेजी के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों का स्वरूप ग्रहण करती नजर आ रही है। कुछ भारतीय कंपनियां अन्य देशों की कंपनियों में न केवल अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही है बल्कि कुछ कंपनियां तो अन्य देशों की कंपनियों का अधिग्रहण तक कर रही हैं। कुछ दिनों से रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड इजराइल में सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माण करने वाली एक कंपनी ‘टावर सेमीकंडक्टर’ का अधिग्रहण करने का प्रयास कर रही है। सेमीकंडक्टर चिप के उपयोग हेतु भारत में बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध है। इससे इस उत्पाद के लिए अन्य देशों पर भारत की निर्भरता कम हो जायेगी। इसराइल की उपरोक्त कंपनी पूर्व में ही भारी मात्रा में सेमीकंडक्टर चिप का निर्माण कर रही है। पूर्व में अमेरिकी कंपनी इंटेल ने उक्त कंपनी को 540 करोड़ में खरीदने का प्रयास किया था परंतु उसे सफलता नहीं मिल पायी। अब रिलायंस इंडस्ट्रीज इसे खरीदने का प्रयास कर रही है। टावर सेमीकंडक्टर वर्ष 2009 में जो केवल 30 करोड डॉलर का व्यापार करती थी, परंतु 2022 में इसका व्यापार 170 करोड डालर के करीब का हो गया है। इस सन्दर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि यह कंपनी अत्यधिक तेज गति से प्रगति कर रही है। वहीं भारत में दवाइयां का निर्माण करने वाली एक कंपनी ‘सन फार्मा’ ने भी इजरायल की ‘टेरी फार्मा’ नामक एक कंपनी को अपनी सहायक कंपनी बना लिया है। इससे भारतीय सन फार्मा कंपनी का विस्तार इजराइल में भी हुआ है। इससे सन फार्मा को नई तकनीक विकसित करने में भी सहायता मिली है।

इसी प्रकार राहुल गांधी और सोरस के मुख्य निशाने पर रहे ‘अदानी पोर्ट्स एंड लॉजिस्टिक्स’ ने इजरायल के सबसे बड़े पोर्ट ‘हाइफा’ का विस्तार करने का कार्य कठिन प्रतिस्पर्धा से अपने हाथ में लिया है। इसमें 115 करोड डॉलर की राशि खर्च होगी। टाटा समूह की ‘टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज’ भी इजराइल में अपने व्यापार का विस्तार कर रही है। भारत की आईटी कंपनी इन्फोसिस ने इजरायल की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की ‘पनाया’ नामक कंपनी का 20 करोड़ डॉलर में अधिग्रहण कर लिया है। भारत का टाटा समूह इजरायल के एयर स्पेस में कार्य कर रही कंपनियों एवं सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य कर रही कंपनियों में भी अपना निवेश बढ़ा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में इजरायल की कंपनियों के साथ मिलकर कार्य किया जा सके।  इसराइल के पास सुरक्षा उपकरण बनाने की नवीनतम तकनीक उपलब्ध है। भारत एवं इसराइल अब टैंक और रडार के निर्माण का कार्य साथ मिलकर करने जा रहे हैं।

इसी नक्शे कदम पर चल कर भारतीय कंपनियां ब्रिटेन की कंपनियों में भी अपना निवेश बढ़ा रही है। टाटा समूह ने ब्रिटेन की कोरस नामक कंपनी में 217 करोड़ यूरो डालर का पूंजी निवेश किया है। रिलायंस समूह ने बैटरी का निर्माण करने वाली एक ‘फरडियन’ नामक कंपनी में 10 करोड़ यूरो डालर का पूंजी निवेश किया है। टाटा समूह ने ‘टेटली’ नाम की कंपनी में 4 करोड़ से अधिक यूरो डालर का पूंजी निवेश सुनिश्चित कर दिया है। टाटा मोटर्स ने भी ‘जगुआर लैंड रोवर’ नाम की कंपनी का अधिग्रहण कर लिया है। इस कम्पनी में टाटा मोटर्स 400 करोड़ यूरो डालर का अतिरिक्त पूंजी निवेश करने जा रही है। इनका अनुसरण करते हुए इसी प्रकार के पूंजी निवेश, आईटी क्षेत्र की विभिन्न भारतीय कंपनियां यथा विप्रो एवं इंफोसिस आदि भी ब्रिटेन की कंपनियों का अधिग्रहण कर रही हैं या कुछ कम्पनियों में पूंजी निवेश कर रही हैं। टाटा केमिकल्स लिमिटेड भी कुछ अन्य कंपनियों में अपना पूंजी निवेश बढ़ा रही है। कुल मिला कर ब्रिटेन के इस आर्थिक संकट काल में भारत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। स्थिति यह हो चुकी है कि आज भारत की 954 कंपनियां ब्रिटेन में कार्य कर रही हैं।

इसी तरह भारत अन्य यूरोपीय देशों यथा फ्रांस, जर्मनी आदि से अपनी आवश्यकताओं का सामान क्रय कर उन्हें उनके आर्थिक संकट से उबरने का काम तो कर ही रहा है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर भविष्य में रूपये में लेनदेन के करार की भूमिका भी तैयार कर रहा है। कनाडा से वर्तमान में खालिस्तानी आतंकवादियों की हत्याओं के चलते संबंध कुछ खराब जरुर हैं मगर भारत कनाडा में होने वाली दालों का सबसे बड़ा खरीदार है, इसलिए उसे भी रूपये में लेनदेन करार पर मजबूर किया जाना आसान होगा। कई अरब देशों से सऊदी अरब सहित इस सम्बन्ध में बातचीत प्रगति पर है और आशा है कि मोदी के प्रभामंडल के चलते आसानी से उनसे भी करार हो सकता है।

इस प्रकरण पर यूएस की भी पैनी नजर है क्योंकि डालर की स्वीकार्यता के बल पर ही वह पूरी दुनिया पर अपनी चौधराहट चला रहा है। वह शान्ति से मोदी को यह सब करने का समय नहीं देना चाहेगा, शायद इसीलिए उसने पाकिस्तान और उसके बल पर पल रहे आतंकवादियों पर अपनी कृपादृष्टि करदी है। ताकि मोदी को शान्ति से नहीं बैठने दिया जाय। मगर वह यह भूल जाता है कि मोदी आम नेता नहीं है। मोदी को हल्के में लेना अमेरिका को भारी पड़ सकता है।