प्रकृति हमें स्वस्थ रखने के लिए छोटे-मोटे उपाय स्वयं ही किया करती है। यह तो मानव है जो अविवेकपूर्वक उन उपायों को विफल कर अपने लिए हल्के तथा गंभीर रोग मोल ले लेता है। जैसे खांसी हुई नहीं कि हम तेज दवाएं ले बैठते हैं। ज्वर हुआ नहीं कि हम डॉक्टर की दहलीज पर जा खड़े होते हैं। वह भी पैसा बनाने के लालच में दवा देकर वस्तुस्थिति छिपा लेगा। रोग प्रतिकारक शक्ति में बढ़ोतरी करने वाले उपाय करके ही हम रोगों से छुटकारा पा सकते हैं। रोग निवारण करना सरल नहीं। अंग्रेजी दवाएं तो ऐसा करने में पूरी तरह अक्षम हैं। रोगों को मिटाने का काम तो केवल प्राकृतिक उपाय ही कर सकते हैं। नया डॉक्टर अपने द्वारा पढ़ी और सीखी गई दवाओं से इलाज आरंभ कर देता है। वह रोगी को जल्दी से जल्दी ठीक करने के लिए तेज से तेज दवा देने में भी पीछे नहीं रहता। उसे तो बाजार में अच्छा, कामयाब डॉक्टर साबित होना होता है। लोग भी उसके पीछे चल पड़ते हैं। बहुत हानि उठाते हैं। एक तजुर्बेकार, पुराना, सधा हुआ डॉक्टर इन अंग्रेजी दवाओं के कुप्रभावों से इतना परेशान हो चुका होता है कि उसे पैसे की ललक और शोहरत से अधिक लोगों के स्वास्थ्य की चिंता होने लगती है। वह अपने निर्देशों में प्रकृति को अपनाने की बात करता है, ऐसा करने से ही वह हमारी रक्षा कर पाता है। डॉक्टर, चिकित्सक को ही फिजिशयन कहते हैं। यह ग्रीक शब्द फिजिस से बना है। फिजिस का मतलब प्रकृति। पैसा कमाने वाला डॉक्टर जानबूझकर आंखों पर भले ही पट्टी बांध ले, मगर हमें तो अपने स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए प्रकृति की ओर झुकना चाहिए। जब हम कृत्रिम खान-पान व जलवायु को ही तिलांजलि दे देंगे तथा स्वस्थ रहने के लिए खुली हवा, सादा पौष्टिक भोजन, शुद्ध पानी, टेंशन फ्री जीना शुरू कर देंगे तो हम निश्चित ही निरोगता का जीवन जी पाएंगे। हमें तो अपनी प्राकृतिक रोग प्रतिकारक शक्ति में वृद्धि करना है, इसे तेज दवाओं से समाप्त नहीं करना है।