भारत में वर्णित चार आश्रमों में गृहस्थ आश्रम को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। यह सभी आश्रमों का आधार है। यह सभी आश्रमों का संचालन करता है। उनका परिपालन करता है। गृहस्थ आश्रम की नींव रखने में विवाह संस्कार की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है इसीलिए इस संस्कार को अनेकों औपचारिकताओं के साथ तय कर पूर्ण किया जाता है।
विवाह संस्कार के लिए अनेक परंपराएं निभाई जाती हैं। धर्म, जाति, कुल, गोत्रा, जन्म कुंडली, गुण-दोष आदि का मिलान कर विवाह तय किया जाता है। इसमें आजकल एक नई परंपरा जुड़ रही है। अब वैज्ञानिक पद्धति से प्राप्त मेडिकल रिपोर्टों का मिलान किया जाने लगा है।
विवाह के लिए इस मेडिकल मिलान करने का बहुत लाभ मिलता है। इससे भावी दांपत्य जीवन एवं भावी पीढ़ी सेहतमंद व सुखी रहती है। मेडिकल मिलान के महत्त्व एवं उससे मिलने वाले लाभ को बड़े बुजुर्ग भी समझ गए हैं इसीलिए वे इसकी स्वीकृति देने एवं इसे पूर्ण करने को कहने लगे हैं।
कौन-कौन सी मेडिकल जांच की जाती हैं
मेडिकल रिपोर्टों के मिलान को सेहत कुंडली मिलान कहा जाना उचित होगा। इसमें आजकल व्याप्त प्रमुख बीमारियों के बारे में वर-वधू की मेडिकल रिपोर्टों पर गौर किया जाता है। उनमें ये रोग कहीं है तो नहीं, यह देखा जाता है। जैसे बीपी, टीबी, शुगर, अस्थमा, अनीमिया, सिकलसेल, थैलीसीमिया, एच आई वी, एड्स, हेमोफिलिया, अस्थिभंगुरता, मोटापा, थायरायड, हृदयरोग, किडनी रोग आदि सबका मिलान किया जाता है। इनमें से अधिकतर की स्थिति का पता रक्त नमूने की क्लीनिकल एवं पैथोलाजिकल जांच से चल जाता है।
कुछ मेडिकल रिपोर्ट डॉक्टर स्वयं उनकी प्रत्यक्षतः जांच कर के देते हैं। भावी वर वधू की इस समस्त मेडिकल रिपोर्टों को देखकर डॉक्टर उचित राय देते हैं। डॉक्टर देखते हैं कि वर वधू दोनों एक जैसी रोग पूर्ण स्थिति के हैं नहीं। यदि विवाह सूत्रा में बंधने वाले नव जोड़ों में एक जैसी बीमारी या स्थिति है तब भावी दांपत्य जीवन कष्टकर हो सकता है एवं भावी पीढ़ी के भी इससे ग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऐसे में कौन सा परिवार यह नहीं चाहेगा कि नव जोड़ों का भावी दांपत्य जीवन सुखद हो एवं आगामी पीढ़ी सेहतमंद हो। मेडिकल मिलान इसी सुखद भविष्य पर ही तो अपनी मुहर लगाता है इसीलिए परिवार के बुजुर्ग इस बात की स्वीकृति देते हैं और मेडिकल मिलान करने को कहते हैं।
विरोधी भी सुखद व सेहतमंद भविष्य तो सभी चाहते हैं किंतु हमारे बीच पुरानी व नई पीढ़ी के कुछ ऐसे लोग मिल जाते हैं तो इसका विरोध व प्रतिवाद करते हैं। वे यह तर्क देते हैं कि व्यक्ति सामने स्वस्थ मौजूद है तो मेडिकल जांच कराने की क्या जरूरत है जबकि वास्तव में ऐसा होता नहीं है। सामने जो अच्छा भला स्वस्थ खड़ा है वह भीतर से बीमार व जर्जर भी हो सकता है। वैज्ञानिक ढंग से मेडिकल जांच ही सही रिपोर्ट दे सकती है।
अच्छे भविष्य को नजरअंदाज कर पुरातनपंथी, दकियानूसी एवं कट्टर रूप दिखाना मूर्खता की पहचान कही जा सकती है। इन मूढ़ मगजों के सामने सिर न पटकें पर उन्हें समझाएं अवश्य। इससे परिणाम सार्थक निकलेगा। धर्म व परंपरा के साथ विज्ञान को लेकर चलने में दिक्कत या कोई बुराई नहीं है।
लकीर पीटना फायदेमंद नहीं है। एक जैसी बीमारी से ग्रस्त वर-वधू का विवाह न होने दें अन्यथा भावी संतान भी इससे पीड़ित होगी या उसके पीड़ित होने की संभावना अधिक रहेगी। आनुवंशिक बीमारियों को रोकें। कदापि न बढ़ाएं।