सन्नी अपनी बड़ी बहन स्वाति के साथ बगीचे में खेल रहा था। अचानक उसने एक कंकड़ उठाया। उसे गुलेल में रखकर, सामने पेड़ के ऊपर निशाना बनाकर जोर से फेंका। पत्तों की सरसराहट के साथ एक गौरेया जमीन पर आ गिरी। गिन्नी दौड़ा-दौड़ा वहां पहुंचा, जहां गौरेया घायल होकर छटपटा रही थी।
उसकी बहन स्वाति भी वहां पहुंची। उसने घायल गौरेया को उठाया। दोनों घर की तरफ लपके। स्वाति घायल गौरेया के जख्म साफ करने लगी। नटखट सन्नी गौरेया के लिए पर छत्ती पर पड़ा पिंजड़ा, बेंच पर चढ़कर उतारने लगा। तभी परछत्ती से एक चूहा कूदा। घबराहट में बेंच पलट गयी। पिंजड़ा सहित सन्नी धम्म से गिर पड़ा। उसके माथे पर चोट लगी। छिल चुके घुटनों से खून रिसने लगा।
सन्नी जोर-जोर से रोने लगा। रोने की आवाज सुनकर उसकी सोयी मां जाग गई। सन्नी की शैतानी देखकर वह क्रोध से भर उठी। मां ने सन्नी की पिटाई कर दी। यह देख स्वाति गौरेया को एक कोने में छोड़कर अपने कमरे में भाग गई। रोता हुआ सन्नी भी अपने कमरे में जाकर सो गया।
शाम को जब उसके पापा घर आए तो सन्नी की हरकत का उन्हें पता चला। उन्होंने सन्नी को पास बैठाकर समझाया कि जब तुम्हें गिरने पर चोट से इतना दर्द हो रहा है तो घायल हुई नन्हीं सी गौरेया को कितना दर्द हुआ होगा? पशु-पक्षी भी हमारी तरह होते हैं, पर अपना दुःख कैसे कहें बेचारे!
सन्नी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसको निर्दोष घायल गौरेया की याद हो आई। बेचारी भूखी-प्यासी होगी। उसे देखने के लिए सन्नी बेचैन हो उठा। गौरेया कहीं भी नहीं दिखी तो उसने स्वाति दीदी से पूछा। दोनों मिलकर गौरेया को घर में खोजने लगे। शो-केस के पास पहुंचा तो स्तब्ध रह गया। उसने देखा कि घायल गौरेया दम तोड़ चुकी थी। उसे अपनी करनी पर बहुत अफसोस हुआ।
उस रात सन्नी ने खाना भी नहीं खाया। स्वाति ने देखा कि वह रात भर सिसकता रहा। इस घटना ने नटखट सनी को एकदम बदल सा डाला। अब वह शरारतें नहीं करता। बगीचे में खेलने तक न जाता। पंछी को मारने वाली गुलेल भी फेंक दी थी।
वह अक्सर पेड़-पौधों और फूल-पत्तियों के सुन्दर-सुन्दर चित्रा बनाता था जिसमें नन्हीं गौरेया खेल रही होती। उसके मित्रावत् व्यवहार और चित्रों ने सबका प्रिय बना डाला था उसे।