अब तक उत्तर भारत विशेषकर हिन्दीभाषी प्रदेशो के लोग यह समझते और सोचते चले आ रहे थे कि दक्षिण में हिंदी का कोई भविष्य नहीं है। जब से भाजपा अपने पूरे लाव लश्कर के साथ पिछले लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में क्या उतरी, पूरे तेलंगाना का माहौल ही बदल चुका है। इस 2019 के चुनाव में निन्नानवे प्रतिशत भाजपा प्रत्याशियों की चुनाव सभाओं में हिन्दीभाषी वक्ता को अपने साथ एक अनुवादक रखना पड़ता था जो वक्ता की बात को तेलुगु में अनुवाद करता चलता था मगर इस बार 2023 के चुनाव में स्थिति इससे भिन्न नजर आ रही है। अधिकाँश वक्ता सीधे जनता से हिंदी में सम्पर्क करते नजर आ रहे हैं।
तेलंगाना की जनसंख्या में 84 प्रतिशत हिन्दू, 12.4 प्रतिशत मुस्लिम और 3.2 प्रतिशत सिक्ख, ईसाई और अन्य धर्म के अनुयायी हैं। तेलंगाना के 76 प्रतिशत लोग तेलुगु बोलते हैं। 12 प्रतिशत लोग उर्दू तथा 12 प्रतिशत लोग अन्य भाषाएं बोलते हैं। तेलंगाना, धुर दक्षिणी भारत में स्थित राज्यों में से एक है। जून 2014 में आंध्र प्रदेश, संयुक्त राज्य के उत्तर-पश्चिमी भाग से, भारत में सबसे छोटे राज्य के रूप में गठित तेलंगाना क्षेत्र 112,077 वर्ग किलोमीटर (43,273 वर्ग मील), और 35,193,978 (2011 जनगणना) की आबादी वाला क्षेत्र है जिसमें प्रमुख शहर हैदराबाद, वारंगल, खम्मम, करीमनगर और निजामाबाद शामिल हैं।
तेलंगाना हैदराबाद के निज़ाम के निरंकुश राजसी राज्य के तेलुगू-भाषी क्षेत्र के रूप में जाना जाने वाला राज्य है। 1948 में भारतीय संघ में शामिल हो कर 1956 में हैदराबाद राज्य समाप्ति के उपरान्त भाषायी आधार पर पुनर्गठन के बाद राज्य और तेलंगाना का हिस्सा पूर्व आंध्र प्रदेश के साथ विलय हो गया। विभाजन के लिए चले आंदोलन के बाद, तेलंगाना 2 जून 2014 को अलग राज्य का दर्जा पाकर देश के नक्शे पर उभरा। हैदराबाद नगर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए दस साल के लिए संयुक्त राजधानी के रूप में निश्चित किया गया।
सम्पूर्ण भारत से अलग तेलंगाना में शहरों के मुकाबले चुनावी रंग गांवों में ज्यादा है मगर निजामशाही का केंद्र रहे हैदराबाद का रंग पूरे राज्य से कुछ अलग है। राजधानी मुख्यालय होने के कारण पूरे प्रदेश में राजनीति का अखाड़ा भी यही नगर है। शहर में दबदबा रखने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम क्षेत्र की 24 सीटों में से 9 पर लड़ रही है। पिछले चुनाव में यहां 7 सीटों पर ओवैसी की पार्टी, तो 16 पर बीआरएस ने बाजी मारी थी। प्रदेश भाजपा ने प्रदेश में यही की सीट गोशामहल से विधान सभा में उपस्थिति दर्ज करायी थी। कांग्रेस को यहां कोई सीट नहीं मिली थी। ओवैसी का प्रभुत्व अगर कहीं दिखाई देता है तो सिर्फ यहीं की मुस्लिम बहुल सीटों पर, बाकी सीटों पर वे बीआरएस का साथ देने का ऐलान कर चुके हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की चार सीटों में से एआईएमआईएम के ओबैसी सिकंदराबाद से और भाजपा के जी किशन रेड्डी ने बाजी मारी थी। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी यहां के मल्काजगीरी से सांसद हैं और चिवडला में बीआरएस के रंजीत रेड्डी जीते थे। इन्हीं परिणामों ने अब सभी दलों के मन में उम्मीद बढ़ा दी है। कांग्रेस को लगता है कि वह इस बार यहां खाता खोलकर चमत्कार करेगी तो भाजपा अपनी संख्या को गोशामहल से आगे बढ़ना चाहती है। कहा तो यह भी जा रहा है कि ओवैसी अपनी परंपरागत 7 सीटों पर ही प्रमुखता से लड़ते हैं। ओवैसी के समर्थकों की माने तो उनकी सातों सीटों पर कोई टक्कर में नहीं है जबकि स्थानीय राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार कोई एक या दो क्षेत्र हाथ से जा भी सकते हैं।
तेलंगाना में हिंदी में दिए गये भाषणों, बयानों एवं नेताओं के आरोप प्रत्यारोप वाले संवादों को देखकर लग ही नहीं रहा है कि यह दक्षिण के किसी राज्य का चुनाव है। पहली बार राष्ट्रभाषा हिंदी का इतना व्यापक प्रसार और प्रचार देखा जा रहा है। राष्ट्रीय दलों के प्रमुख नेता तो हिंदी में बोल ही रहे हैं। क्षेत्रीय दलों के बड़े नेता भी वोटरों से सीधे संवाद के लिए हिंदी को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। बातचीत में हिंदी को बेहिचक प्रयोग किया जा रहा है। हैदराबाद के साथ आसपास के उप नगरों और कस्बों सहित तेलंगाना के कुछ बड़े शहरों की दीवारों एवं खम्भों पर पोस्टर, बैनर के माध्यम से हिंदी का भविष्य भी जगमगा रहा है।
देश के दक्षिणी राज्यों में हिंदी की स्वीकार्यता स्थापित करने के लिए महात्मा गांधी ने 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा का गठन किया था लेकिन 105 वर्ष बाद असर अब दिखायी दे रहा है। चुनाव प्रचार के दौरान दलों और प्रत्याशियों पर सार्वजनिक और व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप भी हिंदी में ही लगाए जा रहे हैं। हिंदी में ही छींटाकशी भी की जा रही है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी ने भी बीआरएस का नया नाम रखा है भाजपा रिश्तेदार समिति जबकि तेलुगु में ना तो रिश्तेदार शब्द है और ना ही समिति। पूरा नाम ही हिंदी शब्दों से बनाया गया है। इस प्रकार की शब्दावली और धडल्ले से हिंदी के प्रयोग से प्रदेश के हिंदी भाषी लोग बहुत प्रसन्न हैं। उनके विश्लेषण के अनुसार पहले ऐसा नहीं था। 2020 में हैदराबाद नगर निगम चुनाव के दौरान हिंदी ने जो रफ्तार पकड़ी है वह रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। पहले दक्षिण के नेता तेलुगु में ही भाषण देते थे मगर अब धड़ल्ले से शुद्ध हिंदी बोलते नजर आ रहे हैं।
राजस्थान, हरियाणा, बिहार और उप्र के साथ देश के अन्य भागों के कर्मवीरों एवं व्यवसायियों के माध्यम से पूरे तेलंगाना में हिंदी पांव पसार रही है। हिंदी पूरबिया मजदूरों के जरिए खेत, खलिहान एवं कस्बों तक पहुंच चुकी है। स्थानीय लोगों में हिंदी की स्वीकार्यता अविश्वसनीय रूप से बढ़ी है। तेलंगाना राष्ट्र समिति का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति करने को भी हिंदी मनीषी, हिंदी के प्रसार से जोड़कर देखते हैं। तेलंगाना के लोगों का मानना है कि दक्षिण के नेताओं का प्रभाव तभी व्यापक होगा जब वे संपर्क भाषा के रूप में हिंदी को प्राथमिकता देंगे। ऐसा लगता है टीआरसी के नेताओं ने भी समय रहते कटु सत्य को समझ लिया है।
महाराष्ट्र की सीमा से सटे निर्मल जिले एवं अन्य क्षेत्रों में भी हिंदी में प्रचार सामग्री एवं भाषणों का पूरा जोर शोर है। भाजपा कांग्रेस एवं बीआरएस के प्रत्याशी अपने समर्थकों को हिंदी और मराठी में ही घोषणा पत्र पकड़ा और समझा रहे हैं। कांग्रेस की 6 गारंटी के पर्चे तेलुगू और अंग्रेजी के साथ हिंदी में भी छपवाये गए हैं। यहाँ भोजपुरी फिल्म स्टारों से प्रचार करने का प्रचलन बढ़ा है। दक्षिण के किसी राज्य में पहली बार प्रचार के लिए भोजपुरी फिल्मों के कलाकारों को बुलाया जा रहा है। भाजपा ने रवि किशन से रोड शो कराया तो बीआरएस ने खेसारी लाल यादव, अक्षरा सिंह और पवन सिंह को बुलावाया। इससे ही स्पष्ट हो जाता है कि हिंदी भाषियों को भी अब एक वोट बैंक के रूप में माना जाने लगा है। और प्रदेश की राजनीति में उनके महत्व को भी स्वीकार किया जाने लगा है।
हिंदी भाषियों के महत्व का हाल केवल किसी क्षेत्र विशेष में ही नहीं है। तेलंगाना के सम्पूर्ण क्षेत्र विशेषकर अन्य राज्यों की सीमाओं से लगते भागों में धडल्ले से हिंदी बोली और लिखी जा रही है। ऐसा देखकर लगता है कि बहुत शीघ्र ही तेलंगाना के माध्यम से सुदूर दक्षिणी क्षेत्रों तक हिंदी बोली और समझी जाने लगेगी।