जब आपके बच्चों के मित्र घर साथ-साथ पढऩे आयें…

आइये बहनजी, आइये! श्रीमती मंजीत ने अपने घर आईं श्रीमती देशपांडे से बैठने को कहा तो वे पूछ बैठीं, ‘मेरा बेटा रवि आपके बेटे के साथ रोज पढऩे आपके घर आता है, कहिये कैसा कर रहे हैं दोनों मिलकर।‘


‘यह पूछने पर श्रीमती मंजीत उन्हें अपने घर के ऊपर वाले कमरे में, जहां उनका बेटा बंटी पढ़ता है, ले गयी।


देखते ही श्रीमती देशपांडे अपने बेटे को डांटने लगीं कि तू यहां पढऩे आया है या खेलने। देखते ही देखते बंटी ढेर सारे कॉमिक्स, फिल्मी हीरो-हीरोइन की तस्वीरें, ताश, लूडो व कई प्रकार का सामान बटोरने लगा। श्रीमती मंजीत भी अवाक् रह गईं कि ये दोनों यहां कमरे में पढ़ते हैं या फिर खेलते ही रहते हैं।


श्रीमती देशपांडे रवि को धमकाते हुए घर ले गईं, ‘आइंदा फिर यहां पढऩे आया तो खैर नहींÓ श्रीमती मंजीत श्रीमती देशपांडे का मूड भांपकर उस समय तो चुप रह गईं, लेकिन बाद में बंटी की भी अच्छी-खासी खबर ली।


उधर हफ्ते भर बाद कुछ दिनों पूर्व हुए टेस्टों का जब रिजल्ट आया तो बंटी व रवि दोनों फेल हुए। उस दिन के बाद उन दोनों का मिलना-जुलना तक बंद हो गया।


यह समस्या श्रीमती मंजीत व श्रीमती देशपांडे के बच्चों की ही नहीं है, अपितु हर जगह पढऩे वाले बच्चों का यही हाल है। हालांकि बच्चों की पढ़ाई कोई मजाक नहीं है, लेकिन बच्चों की लापरवाही व माता-पिता का उनके प्रति बेखबर होना और भी बेतुका है।


प्राय: यह देखने में आता है कि आजकल बच्चे ‘सेल्फ स्टडी’ करने से कतराते हैं।
चाहे वे बड़े हों या छोटे, अपने मित्र, सहपाठी के साथ बैठकर पढऩा पसंद करते हैं। यूं भी आजकल का नया पाठ्यक्रम इतना पेंचीदा है कि पुराने समय के पढ़े-लिखे माता-पिता को भी आसानी से समझ में नहीं आता। अत: या तो वे ट्यूटर रख देते हैं या फिर बच्चे को उसकी जिद के आगे झुककर उसके मित्र के घर पढऩे भेज देते हैं।


ये बच्चे पढऩे की बजाय खेलने व इधर-उधर की बातें करने में ज्यादा ही समय व्यतीत करते हैं। यह बात छोटे बच्चे के साथ ही नहीं जुड़ी है अपितु बड़ों के साथ भी यही हाल देखने को मिलता है।


बच्चे लापरवाह तो होते ही हैं। इसमें कोई शक नहीं, लेकिन इससे भी ज्यादा बेतुकी बात तो उन पेरेन्ट्स की है, जिनके घर में उनके बच्चे के साथी पढऩे के लिए आते हैं, लेकिन वे कमरे में बैठे दो-तीन घंटे क्या करते हैं, उन्हें झांककर नहीं देखा जाता। शायद इसलिए कि वे डिस्टर्ब होंगे।


इसी लापरवाही का पूरा फायदा बच्चे आसानी से उठाते हैं। माता-पिता सोचते हैं कि वे पढ़ रहे हैं, लेकिन पढ़ाई के नाम पर कोरा धोखा व हंसी-मजाक तथा इधर-उधर की फालतू बातों में ही बच्चे समय बर्बाद कर डालते हैं। कई बार तो बड़े बच्चे साइकिल लेकर दोस्त के घर पढऩे जाने का बहाना करते हैं, लेकिन पहुंचते कहीं और ही हैं?


आज के समय में ऐसा नहीं है कि बच्चा केवल अपने बूते व मेहनत से पढ़ाई में अव्वल रह सकता है, बल्कि उसके साथ-साथ उसके माता-पिता का भी गंभीर होना बहुत जरूरी है।
छोटे बच्चों की तो बात छोडिय़े, बड़े बच्चे अकेले कमरे में बैठे अपने मित्रों के साथ कई बार अश्लील पत्र-पत्रिकाएं तक पढ़ते हुए पाये जाते हैं। कई बार अपनी प्रेमिकाओं व क्लास की छात्रा मित्र को भी लेटर लिखते देखे गये हैं।  वह तो दोषी हैं ही, लेकिन अभिभावक क्यों इन पर इतना विश्वास कर लेते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे हैं? बस यही विश्वास दोनों के लिए धोखा साबित होता है।


जहां तक हो सके, अपने बच्चों को अकेला बिना मित्र के व अपनी आंखों के सामने ही पढऩे को कहना चाहिए, ताकि घूमते-काम करते वक्त उन पर नजर पड़ती रहे। समय पर उसका बैग व किताबें भी चैक करें व कमरे में पढऩे की सामग्री के अलावा कुछ भी दूसरी ऐसी पुस्तकें व खेल का सामान न हो, जिससे उसका ध्यान पढ़ाई से हटता रहे। बच्चा कमजोर है तो ट्यूशन लगा दें।


यदि ट्यूटर घर नहीं आता है व बच्चे को जाना पड़ता है तो आप बीच-बीच में जाकर यह पूछते रहें कि बच्चा बराबर आता है या नहीं, साथ ही उसकी प्रगति भी पूछें। समय निकालकर स्कूल भी जायें तथा उसके ऐसे मित्रों पर ध्यान दें, जिनकी संगति व आचरण अच्छा नहीं है, फिर आप पायेंगे कि आपका बच्चा कितनी अच्छी तरह से पढ़ता है। बस, आप व बच्चा लापरवाह न होने पाएं।