बालों को खूबसूरत बना देती है पर्मिंग

पर्मिंग केश विन्यास की एक कला है जिसके माध्यम से बालों के आंतरिक ढांचे को बदलकर बालों को घुंघराला बना दिया जाता है। घुंघरालापन प्राकृतिक भी हो सकता है और कृत्रिम भी। कृत्रिम रूप से बनायी गयी लहरें पर्मिंग कहलाती हैं। बालों का घुंघरालापन न केवल स्त्रा के चेहरे की सुन्दरता में ही चार-चांद लगाता है वरन् आज के समय में पुरूष भी अपनी सुन्दरता बढ़ाने के लिए बालों को घुंघराला बनाने लगे हैं।


वर्तमान समय में पर्मिंग का चलन बढ़ गया है। खासतौर पर रसायनों के इस्तेमाल से स्थायी और विभिन्न किस्म के कर्लरों के प्रसार से अस्थायी घुंघराले बाल केश-विन्यास के असंख्य रूप लेकर फैशन की दुनिया में हाजिर हैं।


 पर्मिंग से पहले बालों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए क्योंकि इससे बालों के छोटे-छोटे क्यूटिकल्स पर जो परतें जमी होती हैं, वे पानी के साथ धुल जाती हैं जिससे पर्मिंग लोशन को बालों के भीतरी ढांचे में प्रवेश करने में सहूलियत होती है। पर्मिंग लोशन बालों के केराटिन में तब्दीली लाता है और उसके सल्फर बांड को तोड़ता है। इसके बाद वह बालों के रेशों की कोशिकाओं से सीधा संबंध बनाकर प्रत्येक बाल की भीतरी सतह तक पहुंचता है और बालों के रेशों को ढीला करता है।


जब रेशे ढीले पड़ जाते हैं तो ये पर्मिंग रॉड (रोलर) के शेप के अनुसार मुड़ जाते हैं। एक बार कर्लर या रोलर लगाकर कुछ और लोशन लगा दिया जाता है तथा इसे सेट होने के लिए छोड़ दिया जाता है। बालों के घुंघराला होने में लगने वाला समय बालों की प्रकृति पर निर्भर करता है।


जब बाल नये ढंग से बदल जाते हैं, तब इस पर ’न्यूट्रिलाइजर‘ लोशन को लगाया जाता है। इस लोशन में आक्सीडाइजिंग एजेंट होता है। यह बालों के रेशों के खुले सूत्रों को अच्छी तरह बंद करने या घूंघर या लहरों को स्थायी बनाने का काम करता है। बाल किस हद तक घुंघराले बनेंगे, यह बालों के आकार, प्रकार, कर्लरों के आकार-प्रकार तथा पर्मिंग लोशन की प्रकृति पर निर्भर करता है। पतले और मजबूती से बांधने वाले कर्लर छोटे घूंघर बनाते हैं जबकि मध्यम आकार के ढीले बंधे कर्लर ढीले घूंघर या लहरें बनाते हैंं। लहरें बालों की किस्म पर भी निर्भर करती हैं। अच्छे किस्म के मजबूत बालों की पर्मिंग ज्यादा अच्छी हो पाती है। अगर बालों की किस्म अच्छी नहीं होगी तो पर्मिंग भी अच्छी नहीं होगी।
पर्मिंग के बाद करीब 48 घंटे केरोटिन को प्राकृतिक रूप से कठोर होने में लगते हैं। इस दौरान बालों के और घूंघर के टूटने की संभावना अधिक रहती है। इस समय बालों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। शैम्पू का इस्तेमाल या कठोरता से खींच कर ब्रशिंग करने से इस समय बचना चाहिए।


एक बार पर्म हो जाने के बाद कुछ हफ्तों तक बाल बिल्कुल नहीं बदलते लेकिन नई वृद्धि, पुराने बालों जैसी ही होती है। धीरे-धीरे कर्ल ढीले पड़ने लगते हैं। खासतौर पर लंबे बालों के घूंघर जल्दी ढीले पड़ते हैं। चूंकि स्थायी पर्मिंग में रसायनों का प्रयोग होता है अतः इसे हमेशा प्रोफेशनल हेयर ड्रेसर से ही करवाना चाहिए।


पर्मिंग की विभिन्न तकनीकें हैं। इनमें से एक प्रचलित तकनीक है ’बाडी पर्म‘। बाडी पर्म के तहत बड़ी लहरें बनायी जाती हैं जिसमें बड़े कर्लर या रोलर का इस्तेमाल किया जाता है। इससे बाल कर्ल होने के बजाय लहरदार और घने दिखाई देते हैं। ’रूट-पर्म‘ छोटे बालों के लिए अधिक उचित होता है। इसमें बालों की जड़ों के आस-पास पर्मिंग की जाती है। इससे कम घने बाल भी भरे-भरे दिखाई देते हैं।


पिनकर्ल पर्मिंग भी हल्की लहरें और घूंघर बनाने के लिए की जाती है। इसमें पहले से घुंघराले बालों के एक हिस्से को विशेष आकार दिया जाता है। ’स्टेक पर्म‘ तकनीक में एक बराबर कटे बालों को कई प्रकार के कर्लरों की सहायता से विन्यासित किया जाता है। इसके अन्तर्गत बालों के ऊपरी हिस्से को छोड़कर मध्य और नीचे के बालों में कर्लर का प्रयोग किया जाता है। ’स्पाटल पर्म‘ एक रोमांटिक घूंघर बनाता है। इसमें ढेर सारे कर्लरों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे कम घने बाल भी खूब फैले-फैले दिखाई देते हैं।


’स्पाट पर्म‘ तकनीक के अन्तर्गत बालों के खास हिस्से की पर्मिंग की जाती है। किसी खास हिस्से के बालों को लहरों में डालने के लिए उसी हिस्से के बालों को घुंघराला बना दिया जाता है। ’तिवपर्म‘ तकनीक सीधे और घुंघराले बालों की मिश्रित तकनीक है।


पर्म करने से पहले यह देख लेना आवश्यक है कि सिर की त्वचा अधिक संवेदनशील तो नहीं है। अगर खोपड़ी की त्वचा एक्जिमा आदि से ग्रस्त हो तो पर्म के रसायन को न लगायें। पर्म करने से पहले सिर के बालों को अच्छी तरह झाड़कर सुलझा लें। फिर अच्छी तरह धोकर सुखाने के बाद पर्म करें।