मध्य प्रदेश के टॉप टेन विनर्स, अपने ही बड़े अंतर को बनाए रखना कई विधायकों के लिए बनी चुनौती

मध्य प्रदेश में वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव और उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने पर हुए उपचुनाव में मिलाकर प्रदेश की टॉप 10 जीत दर्ज करने वाले विधायकों और मंत्रियों को अपनी जीत का अंतर इतना ही बरकरार रखने की इस चुनाव में सबसे बड़ी चुनौती होगी। प्रदेश की टॉप 10 जीत में जहां भाजपा के सात विधायक शामिल हैं, वहीं कांग्रेस के सिर्फ तीन ही विधायक हैं। इनमें से अधिकांश के टिकट फिर से तय माने जा रहे हैं। ऐसे में कई विधायक अपनी जीत के इसी अंतर को बरकरार रखने के प्रयास में अभी से जुटे हुए हैं। राजनीतिक गलियारों में भी इनकी इतनी लीड बरकरार रहने को लेकर चर्चा जोरों पर हैं, जनता का ध्यान भी इनकी इस बार की जीत को लेकर रहेगा।


प्रदेश की सबसे बड़ी जीत इंदौर दो के विधायक रमेश मेंदोला के नाम पर है। वे भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। उन्होंने कांग्रेस के एडवोकेट मोहन सिंह सेंगर को 71 हजार 11 वोटों से हराया था।  मेंदोला इससे पूर्व भी  प्रदेश में जीत में नंबर वन रह चुके हैं। इसके बाद दूसरी बड़ी जीत भाजपा के खाते में उपचुनाव में आई थी। तीसरी बड़ी जीत कांग्रेस के नाम पर दर्ज है। कुक्षी विधानसभा से सुरेंद्र सिंह बघेल हनी ने 62 हजार 930 वोटों से जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के टिकट पर लड़े सुरेंद्र सिंह बघेल ने भाजपा के वीरेंद्र सिंह बघेल को हराया था। बघेल को कमलनाथ ने अपने मंत्रिमंडल में भी शामिल किया था। चौथी बड़ी जीत भी भाजपा के खाते में दर्ज हैं। चितरंगी विधानसभा सीट से भाजपा के अमर सिंह ने कांग्रेस की सरस्वती सिंह को 59 हजार 248 वोटों से हराया था।  


पार्टी बदलते ही प्रभु, तुलसी की बंपर वोटों से हुई थी जीत
कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए प्रभुराम चौधरी ने अपनी पिछली सभी जीत के रिकॉर्ड को ध्वस्त कर दिया। दल बदलते ही उन्होंने जीत की रिकॉर्ड तोड़ छलांग लगाई। वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जब वे कांग्रेस के टिकट पर सांची विधानसभा से चुनाव लड़े थे, तब उन्होंने भाजपा के मुदित शेजवार को महज 10 हजार 239 वोटों से हराया था, लेकिन दो साल बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत के अपने ही पिछले सभी रिकॉर्ड तोडते हुए जीत का अंतर 63 हजार 809 कर दिया। उन्होंने कांग्रेस के मदन लाल चौधरी को हराया। प्रदेश की उनकी जीत का अंतर दूसरे नंबर पर है। उपचुनाव में सांवेर से तुलसी सिलावट ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। दल बदल के बाद भाजपा से लड़े सिलावट ने विधानसभा के उपचुनाव में कांग्रेस के प्रेम चंद गुड्डू को 53 हजार 264 मतों से हराया था। उनकी जीत छठवें नंबर की है।  जबकि वर्ष 2018 के चुनाव में जब वे कांग्रेस के टिकट पर सांवेर से चुनाव लड़े थे तब वे महज 2 हजार 945 वोटों से ही जीत सके थे। दोनों ही विधायक कमलनाथ की सरकार में भी मंत्री थे और अभी शिवराज सिंह चौहान की सरकार में भी मंत्री हैं। दोनों ही केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थक हैं।


ये भी टॉप विनर्स
इनके अलावा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी जीत टॉप टेन में शुमार है। उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव को बुदनी से 58 हजार 999 वोटों से हराया था। उनकी जीत प्रदेश में पाचवें नंबर की है। जबकि सातवे नंबर पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह ने राघोगढ़ से दर्ज की थी। उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 46 हजार 697 वोटों से हराया था। इसके बाद की जीत भोपाल के गोविंदपुरा से पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की पुत्रबधू कृष्णा गौर के नाम रही। उन्होंने इस सीट पर 46हजार 359 वोटों से जीत दर्ज की थी। पूर्व मंत्री शाजापुर से हुकुम सिंह कराड़ा ने शाजापुर सीट से 44हजार 979 वोटों से जीत दर्ज की थी। इन सबकी इतनी बड़ी जीत ही अब उनके लिए चुनौती बनी हुई है। इनमें से लगभग सभी की फिर से उम्मीदवारी तय मानी जा रही है। तय उम्मीदवारी के चलते ही प्रदेश की जनता की नजरें भी इस पर टिक गई है कि क्या ये अपने पिछली जीत के अंतर को बरकरार रख पाएंगे।