बुंदेलखंड के लिए परिवर्तनकारी सिद्ध होगी केन-बेतवा लिंक परियोजना

बुंदेलखंड की दो दशक पुरानी आस अब पूरी हो रही है। 18 साल से लंबित केन-बेतवा लिंक परियोजना का शुभारंभ क्षेत्र की प्यास के बुझने के साथ ही जीवन बदलने का ऐतिहासिक पड़ाव भी है। चार दशक से बुंदेलखंड की जनता को जिस दिन का बेसब्री से इंतजार था,वह दिन  अब आ गया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल जी ने देश में 37 नदियों को आपस में जोड़कर जल संकट को दूर करने का बीड़ा उठाया था, उसमें केन-बेतवा लिंक परियोजना भी थी, उसे अब  मूर्त रूप मिल गया है। यह भारत की पहली नदी जोड़ो परियोजना है।


 इसको अंतर्राज्यीय नदी हस्तांतरण मिशन के लिये एक मॉडल योजना के रूप में माना जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से अटल जी के बाद की यूपीए सरकार ने इसमें रुचि नहीं दिखायी। हालांकि बुन्देलखंड की दुर्दशा पर राजनीतिक रोटियाँ जरुर सेकीं।  अटल जी ने नदियों को जोड़ने की जो परिकल्पना की थी, उनमें से केन-बेतवा पहला लक्ष्य था। देश में जल के संकट से सर्वाधिक प्रभावित बुन्देलखंड का ही क्षेत्र था, जिसका निदान मानवता की माँग थी।


स्वाधीन भारत में सर्वाधिक राजनीतिक रोटियाँ बुंदेलखंड के पिछड़ेपन पर ही सेकी गईं। राजनीतिक पर्यटकों ने इसकी दुर्दशा की तस्वीरों को देश-विदेश में भी खूब प्रचारित किया, लेकिन जिनके हाथों में सात दशक तक इसके तकदीर की चाभी थी, उन्होंने उससे हर बार छल किया और बुंदेलखंड की दशा जस की तस बनी रही। जिस बुंदेलखंड की वीरता की गाथाएँ साहस देती हैं, वही बुंदेलखंड पानी के समर में कई दशकों से मात खाता रहा।


 उजड़ते गाँव और पलायन बुंदेलखंड की त्रासदी का वृतांत बताते हैं। बुंदेलखंड की जनता के जीवन में हर दिन अंधकार और अधिक घना होता गया और सपनों के सौदागर उन्हें सब्जबाग दिखाते रहे। कड़वा सच है कि विगत दशकों में बुन्देलखंड से करोड़ों लोग पलायन कर गये। पशुधन को बचाना, कृषि कार्य करना, जीवन के लिए जरूरी पानी जैसी समस्याएँ बुन्देलखंड की नसीब बन गयीं और जन-जीवन में और अँधेरा छाता चला गया।


लेकिन अब  बुंदेलखंड के इतिहास में  नया सवेरा आने वाला है। जल, वन-भूमि साझाकरण और अधिग्रहण में आने वाली कठिनाईयों से जूझ रही केन-बेतवा लिंक परियोजना अब शुरू हो रही है। इस महान परियोजना की अनेक अड़चनें दूर हुईं और विश्व जल दिवस पर 8 मार्च को प्रधानमंत्री की उपस्थिति में यूपी और एमपी सरकारों ने इसके लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। सारी बाधाओं को पार कर अब मोदी सरकार ने 45 हजार करोड़ वाली केन-बेतवा लिंक जैसी बहुप्रतीक्षित परियोजना को जमीन पर उतार कर यहाँ समाज-जीवन की सरलता के सारे मार्ग प्रशस्त कर दिये हैं। इस परियोजना में 90 प्रतिशत राशि केंद्र सरकार देगी और शेष मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश वहन करेंगे। इसके तहत केन नदी से बेतवा नदी में पानी भेजा जाएगा और 221 किलोमीटर लंबी संपर्क नहर निकाली जाएगी, जो झांसी के निकट बरुआ में बेतवा नदी को जल उपलब्ध कराएगी। केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट से नॉन मानसून सीजन (नवंबर से अप्रैल के बीच) में क्रमशः मध्यप्रदेश को 1834 तथा उत्तर प्रदेश को 750 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिल सकेगा। इसका लाभ मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड के छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़, निवाड़ी, दमोह, सागर और दतिया के साथ-साथ शिवपुरी, विदिशा और रायसेन सहित अन्य जिलों को भी मिलेगा। केन-बेतवा लिंक कार्य के पूरा हो जाने से जहां 8 लाख 11 हजार हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा पहुंचाई जा सकेगी, वहीं 41 लाख लोगों को सहज तौर पर पीने का पानी मिल पाएगा। बुंदेलखंड में आने वाले उत्तर प्रदेश के 2 लाख 52 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाईं और पेयजल की सुविधा भी इससे मिल सकेगी। बाद में 103 मेगा वाट पनबिजली और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा भी पैदा की जा सकेगी।


भले ही देश में जल-संकट पर छिटपुट चर्चाएँ होती रहीं हों परन्तु यह एक अटल सत्य है कि 1999 में एनडीए सरकार बनने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल जी ने ही पहली बार नदी जोड़ो परियोजना पर काम शुरू किया था। उस समय एक टॉस्क फोर्स का गठन करके आधारभूत कार्य किया गया। इस टॉस्क फोर्स ने देश की नदियों का वर्गीकरण करके एक रूपरेखा रखी कि किन नदियों को जोड़कर देश को पानी की समस्या से मुक्ति दिलाई जा सकती है। हालांकि बीच में यह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई लेकिन अब यहां की जनता का जीवन बदलने का रास्ता खुल गया है।


मोदी सरकार ने  केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए राष्ट्रीय जल विकास प्राधिकरण को इसकी कमान सौंपी तथा प्राधिकरण की मॉनिटरिंग का जिम्मा केंद्रीय जल संसाधन मंत्री को दिया । इसके लिए अप्रैल 2015 में एक स्वतंत्र कार्यबल भी गठित किया था। अब  देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना के रूप में केन-बेतवा लिंक प्रारंभ हो रही है और बुंदेलखंड की जनता का भी सपना पूरा हो रहा है।


बुंदेलखंड की जीवन रेखा केन-बेतवा लिंक परियोजना अब यहां युगांतकारी परिवर्तन लाएगी। जल-संकट खत्म होने के साथ ही महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आएगा। उन्हें मीलों सिर पर पानी ढोने से निजात मिलेगी। पानी की उपलब्धता से स्वच्छता बढ़ेगी और उनका स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। इस परियोजना से बुंदेलखंड में सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक स्तर ऊँचा होगा। नहरों का विकास होगा, पनबिजली से सस्ती बिजली मिलेगी तथा वनीकरण भी बढ़ेगा। आर्थिक समृद्धि आने से जीवन बदलेगा और बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति रुझान बढ़ेगा तो पर्यटन उद्योग भी निखरेगा। खाद्य सम्पन्नता और रोजगार के अवसर मिलेंगे तो पलायन पर विराम लगेगा।आज जिस बुंदेलखंड की पहचान अकाल और सूखा की है, वह बुंदेलखंड भविष्य में हरियाली से पहचाना जाएगा। जो बुंदेलखंड गरीबी से जाना जाता है,वह समृद्ध बुंदेलखंड बनेगा और भविष्य में अपने गौरवशाली अस्मिता के साथ सारी दुनिया को आकर्षित करेगा।


(लेखक खजुराहो लोकसभा क्षेत्र से सांसद व मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष हैं)