पति- पत्नी के बीच प्रेम दर्शाने का पर्व है करवा चौथ

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। करवा चौथ पति और पत्नी के बीच के प्रेम को दर्शाने वाला बेहद निष्ठापूर्ण व श्रद्धा भाव से उपवास रखने का पावन त्योहार है। प्राचीनकाल से महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करती चली आ रही हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती है और ईश्वर से आशीर्वाद प्राप्त करती है। करवा चौथ को मनाने के पीछे बहुत सी कथायें व मान्यतायें है।

वर्तमान दौर में इस त्यौहार का बदला स्वरूप देखने को मिल रहा है। करवा चौथ के नाम पर सोशल मीडिया व अन्य माध्यमों से तरह-तरह के मजाक बनाना इस पावन त्यौहार की गरिमा को कम करता है। पति-पत्नी के प्रेम का प्रतीक यह पर्व गिफ्ट व दिखावे तक सिमटता नजर आ रहा है जबकि इस पर्व की विशिष्टता की भारत की प्रत्येक महिला को जानकारी होना जरूरी है। यह पर्व ही है जो हमें समाज, देश व परिवार के साथ एकसूत्रता से जोड़ने का काम करते है। इस बार करवा चौथ का यह पावन पर्व 1 नवम्बर को देश भर में मनाया जायेगा।

ऐसा माना जाता है कि कार्तिक महीने के दौरान देवी पार्वती और भगवान विष्णु अपने भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। साथ ही देवी महिलाओं की मनोकामना भी पूरी करती हैं। महिलाये अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं मान्यता है कि देवी प्रसन्न होकर, जो महिलाएं व्रत रखती हैं उनको मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देती है।


पौराणिक मान्यता के अनुसार पतिव्रता सती सावित्री के पति सत्यवान को लेने जब यमराज धरती पर आए तो सत्यवान की पत्नी ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगने की प्रार्थना की। उसने यमराज से कहा कि वह उसके सुहाग को वापस लौटा दें मगर यमराज ने उसकी बात नहीं मानी। इस पर सावित्री अन्न जल त्यागकर अपने पति के मृत शरीर के पास बैठकर विलाप करने लगी। काफी समय तक सावित्री के हठ को देखकर यमराज को उस पर दया आ गई। यमराज ने उससे वर मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने कई बच्चों की मां बनने का वर मांग लिया। सावित्री पतिव्रता नारी थी और अपने पति के अलावा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकती थी तो यमराज को भी उसके आगे झुकना पड़ा और सत्यवान को जीवित कर दिया। तभी से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए महिलाएं सावित्री का अनुसरण करते हुए करवा चैथ पर निर्जला व्रत करती हैं।


करवा चौथ का व्रत उत्तर भारत में हिंदू महिलाओं के बीच बेहद लोकप्रिय त्यौहार है। इस दिन महिलाओं द्वारा निर्जल व्रत रखकर पति के लम्बे जीवन की कामना की जाती है। इस दिन महिलाएं नए कपड़े पहनकर सोलह श्रृंगार कर चांद की पूजा करती है। चांद के पूजन और दर्शन के बाद पति के हाथों से जल पीकर अपना व्रत तोड़ती है। घर के सभी बड़े-बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेती हैं।


इस व्रत का पालन उत्तरी क्षेत्र से शुरू हुआ। देश भर में महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखना शुरू कर दिया। पहले पुरुष मुगलों के खिलाफ युद्ध के लिए बाहर जाते थे और महिलाएं बच्चों के साथ घरों में अकेली रहती थीं। इसलिए, पति की जीत और भलाई के लिए प्रार्थना करने के लिए, पत्नी भगवान की पूजा करती थीं और निर्जला व्रत रखती थीं। प्राचीन काल में लोग समय की गणना चन्द्रमा और सूर्य के परिभ्रमण से करते थे। इसलिए, अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के चैथे दिन, महिलाएं युद्ध से अपने पति के आने की प्रतीक्षा करती थीं और अपना व्रत खोलती थीं। आज के दौर की महिलाओं व नवयुवतियों को इस पर्व की महत्ता को समझने की परम आवश्यकता है।