गर्भावस्था एवं प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है। इस प्रक्रिया से केवल नारी-जाति को ही नहीं, मूक प्राणियों को भी गुज़रना पड़ता है। जिस प्रकार शरीर के विभिन्न तंत्रा अपने-अपने कार्यों का निर्वहन करते हैं, उसी प्रकार प्रजनन तंत्रा भी प्राकृतिक रूप से अपने कार्य संपन्न करता है।
गर्भावस्था को प्रायः स्त्रियां हौवा समझ बैठती हैं किंतु इससे डरने या घबराने की कोई आवश्यकता नहीं होती। प्रायः इस प्राकृतिक क्रिया को अपने ही अनुचित आहार-विहार द्वारा हम स्वयं अप्राकृतिक बना देते हैं।
किसी कारणवश प्राकृतिक मार्ग से प्रसव की क्रिया असंभव होने पर उदर पर चीरा लगाकर प्रसव कराने की क्रिया को सिजेरियन सेक्शन कहा जाता है। आज शायद ही कोई अनजान होगा इस शब्द से।
गर्भावस्था कोई रोग नहीं किंतु विकृतावस्था में यह अवश्य रोग का रूप धारण कर लेता है। आजकल सिजेरियन द्वारा प्रसव का चलन काफी बढ़ रहा है।
अब प्रश्न यह है कि यदि प्रसव एक प्राकृतिक क्रिया है तो सिजेरियन की आवश्यकता क्यों? इसके मूल में कुछ सामाजिक व मेडिकल (शारीरिक) कारण विद्यमान रहते हैं।
सामाजिक कारण
प्रकृति विरूद्ध आचरण (आहार-विहार)
भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त आरामदेह जीवनचर्या।
मशीनी जीवन या फास्ट लाइफ।
खड़े होकर काम करने की प्रवृत्ति।
व्यायाम, परिश्रम की कमी।
कम उम्र में विवाह।
अज्ञानता, अशिक्षा।
गरीबी, कुपोषण, सहनशक्ति का अभाव इत्यादि कुछ प्रमुख कारण हैं जो गर्भिणी को अप्राकृतिक प्रसव की ओर धकेलते हैं।
शारीरिक कारण
किसी कारणवश प्रसव से पूर्व बच्चे की धड़कन का कम या अधिक होना।
प्राकृतिक प्रसव मार्ग का बच्चे के अनुपात में छोटा होना।
प्रसव का प्रक्रिया में अधिक विलम्ब।
बार-बार मृतप्रसव
प्लेसेंटा का गर्भाशय मुख पर स्थित होना।
प्रसवपूर्व अत्यधिक रक्तस्राव ।
गर्भ का गर्भाशय में आड़ा, तिरछा या उल्टा स्थित होना।
डायबिटीज।
उदर में प्रजननांगों से संबंधित रसौली इत्यादि।
अधिक उम्र में गर्भधारण करना।
हृदयरोग से ग्रस्त होना।
गर्भाशय ग्रीवा पर कोई गांठ होना।
पूर्व के दो प्रसव सिजेरियन द्वारा होना।
योनिमार्ग का असामान्य नीचे होना।
इन प्रमुख कारणों के अलावा भी कई गंभीर रोग हो सकते हैं जिनके कारण सिजेरियन द्वारा प्रसव कराना आवश्यक हो जाता है।
उपरोक्त कारणों को हम असामान्य होने के कारण दूर नहीं कर सकते परन्तु हमारे स्वयं के मिथ्या आहार-विहार द्वारा उत्पन्न कारणों को दूर करके अप्राकृतिक प्रसव से बचा जा सकता है।
कहते हैं ‘प्रिवेन्शन इज़ बैटर दैन क्योर‘
गर्भावस्था से पूर्व के उपाय
छोटी उम्र में लड़की का विवाह न करें अर्थात् 21 वर्ष की आयु के बाद ही विवाह करें।
यौवनावस्था अर्थात् प्युबर्टी के प्रारंभ से ही लड़की को शारीरिक रूप से मजबूत बनाएं। शारीरिक व्यायाम, दौड़ एवं खान-पान का विशेष ध्यान रखें। ऐसा न हो कि आपका अत्यधिक लाड़ प्यार शारीरिक व्यायाम के अभाव में आपकी बेटी के लिए अभिशाप बन जाए।
गर्भावस्था के दौरान
गर्भावस्था का भय मन से निकाल दें।
आहार-विहार का खास ख्याल रखें। आहार-2100 कैलोरी प्रतिदिन अवश्य लें जिसमें प्रोटीन 80 ग्राम, वसा 60 ग्रा., कार्बोहाइड्रेट 300 ग्रा., केल्शियम 1.5 ग्रा., फोस्फेट 1.75 ग्रा., लौह 30. ग्रा. विटा-बी-2 ग्रा., विटा-सी 100 ग्रा., निकोटिनिक एसिड 15 ग्रा.।
प्रतिदिन की खुराक
दूध 1 लिटर, 1 से 2 अंडे, मीट, हरी सब्जियां, ताजे फल, मक्खन, घी, तेल, गेहूं, चावल, दाल, इत्यादि।
वर्जित आहार
चाय, कॉफी, उष्ण तीक्ष्ण पदार्थों के सेवन से बचें।
उचित विहार
गर्भावस्था के दौरान घर का सामान्य कामकाज व साधारण हल्का-फुल्का व्यायाम करती रहें।
रात्रि में 9 घंटे की नींद अवश्य लें। पैरों में सूजन की अवस्था में पैर के नीचे तकिया रख कर लेटें।
शुरूआती महीनों में यात्रा से बचें।
8 से 14 सप्ताह व अन्तिम 4 सप्ताह ब्रह्मचर्य का पालन करें।
ऊंची एड़ी के चप्पल या सेंडिल न पहनें।
प्रजननांगों, शरीर व दांतों की विशेष सफाई रखें।
ढीले-ढाले वस्त्रा धारण करें।
पानी अधिक पिएं। यदि कब्ज़ रहता हो तो हल्का विरेचक लें।
स्वच्छ हवा में टहलें।
अत्यधिक परिश्रम, उत्कटासन, विषमासन, कठिनासन या वेग विधारण से बचें।
मन प्रसन्न रखें।
मासिक जांच
हर माह चिकित्सक से नियमित जांच करवाएं। आठवें माह में 15-दिन में व नवें माह में 7 दिन में जांच करवाएं। इस जांच में प्रायः उदर-परीक्षण, गर्भ की धड़कन का परीक्षण, गर्भाशय में गर्भ की स्थिति, रक्तस्राव, तापमान, मूत्रापरीक्षण, रक्तपरीक्षण, ब्लडप्रेशर, वजन, श्रोणि की जांच एवं कोई रोग होने पर उससे संबंधित विशेष जांच का समावेश होता है।
इस नियमित जांच द्वारा किसी भी प्रकार की अनियमितता को समय रहते जांचा व दूर किया जा सकता है।
प्रसवकाल में
प्रसवपीड़ा प्रारंभ होने पर धैर्य से काम लें। फौरन चिकित्सक की सलाह लें। सामान्य अवस्था में धीरे-धीरे टहलें। शीघ्रता न करें। चिकित्सक को अपना काम करने दें। अत्यधिक शोर न मचाएं। उल्टे-सीधे हाथ-पांव न चलाएं। चिकित्सक का कहना मानें।
यदि उपरोक्त बातों का ध्यान स्त्रियां रखेंगी तो निश्चय ही प्राकृतिक प्रसव में सहयोग मिलेगा एवं सिजेरियन से बच पाएंगी।
प्रायः सिजेरियन के लिए डॉक्टर्स को दोषी ठहराया जाता है किंतु कोई भी चिकित्सक अपरिहार्य कारणों के तहत ही सिजेरियन करता है।
गर्भिणी या परिजनों का प्राकृतिक प्रसव के लिए रिस्क न उठाना, मरीज़ का समय पर अस्पताल न पहुंचना, सहनशक्ति का अभाव, किसी रोग का प्रसव के समय ही पता चलना या रिस्क होने पर बात बिगड़ने का डर एवं इस कारण उपभोक्ता फोरम का दबाव एवं बदनामी का डर एवं परिजनों या गर्भिणी का सहयोग न करना कुछ ऐसे कारण हैं जो चिकित्सक को सिजेरियन करने का कठोर निर्णय लेने पर मजबूर करते हैं।
शिक्षित स्त्रियां उपरोक्त जानकारी द्वारा अपने आसपास की अन्य स्त्रियों या अशिक्षित स्त्रियों को अवगत कराकर जागरूकता लाएं एवं समाज के प्रति अपने कर्तव्य का निर्वाह करें।