चाय पीने की प्रथा दुनियां के हर कोने में प्रचलित है, फिर भी विभिन्न क्षेत्रों में इसके अलग अलग स्वरूप हैं। जापान में चाय पीने का ‘चानोयू’ नामक एक त्योहार भी मनाया जाता है। चीन में यह अफीम के नशे के प्रतिकार के रूप में प्रचलित है तथा ब्रिटेन में यह एक आम पेय पदार्थ है। अमेरिका में लोग चाय पीने को किसी विषय पर विचार-विमर्श करने का आधार मानते हैं। कनाडा में किसी शुभ कार्य में जाने से पहले चाय पी जाती है। रूस में वोदका की प्रतिस्थानी है चाय लेकिन भारत में तो हर अमीर-गरीब का आम पेय है। चीन, जापान, ब्रिटेन और भारत में ही चाय पीने का रिवाज सर्वाधिक प्रचलित है।
चाय पीने की कला की जानकारी के पूर्व इसके आविष्कार और पैदावार की चर्चा करना ज्ञानवर्धक ही नहीं, रोचक भी होगा। ऐसा कहा जाता है कि 2737 ई.पू. में चेन-नांग नामक चीन के राजा ने अनायास ही इसका आविष्कार किया था। वह पर्यावरण प्रेमी प्रायः जंगलों की सैर किया करता था और वनस्पतियों तथा पशु पक्षियों का उसे अच्छा ज्ञान था। एक दिन अपने कर्मचारियों के साथ वह जब जंगल प्रवास के समय अपने पीने के लिए पानी उबाल रहा था तो अचानक पास ही के किसी पौधे से कुछ पत्तियां उसके उबलते पानी के पतीले में आग गिरी और पानी का रंग तथा स्वाद दोनों बदल गया। राजा को उसका स्वाद बहुत भा गया। कैमेलिया साइनेंनिस नामक पौधे को अपने बाग में ले गया और नित्य प्रतिदिन उसका सेवन करने लगा। इन पत्तियों के सेवन करने से उसे स्फूर्ति और ताजगी मिलती थी। तबसे चाय पीने की प्रथा चीन में और उसके बाद पूरे विश्व में छा गई।
चाय के बारे में एक अन्य कथा एक चीनी चिकित्सक के बारे में कही जाती है। चौथी शताब्दी में वह चीनी चिकित्सक जब जंगल में वनस्पतियों और औषधियों को तलाशता हुआ घूम रहा था कि अचानक उनका कैमेलिया साइनेंसिस’ नामक पौधे की तरफ ध्यान गया। वह उस पौधे की पत्तियों की गुणवत्ता को देखकर मुग्ध हो गया। वह उस पत्ती को अपने साथ ले गया तथा उससे चिकित्सा करनी शुरू कर दी। इस चाय की पत्तियों से वह जहां भी रोगियों का उपचार करता, लोग उस पत्ती के स्वाद के दीवाने होते गए और चाय औषधि से अधिक एक आदत बनती गई।
चाय की खेती वस्तुतः समुद्र की सतह से प्रायः 6000 फीट की ऊंचाई पर सफलता पूर्वक की जाती है। ऊंचाई के आधार पर अति ऊंची, मध्यम और निचली घाटी की चाय का वर्गीकरण भी किया जाता है। संप्रति लगभग 3500 छोटे बड़े चाय के बगान भारत में हैं जिनमें 1200 बड़े बगान हैं।
भारतीय चाय की पत्तियों से कुछ बड़ा होता है। स्वाद में भारतीय चाय सर्वोत्तम मानी जाती है। दार्जिलिंग और असम की चाय की खुशबू की विशेषता है तथा पीलगिरि की चाय में रंग की। चाय में विटामिन बी और निकोटिन भी होता है। इनके अलावा इसमें डेकोस्ट्रन, फास्फेट आफ पोटाशियम, थियेन, टैनिन और कैफिन भी होती है।
जापान के एक धनी व्यापारी ‘सेन-नो-रिक्यू’ ने चाय पीने की कला को एक संस्कृति रूप में सृजित किया जिसे वे लोग चानोयू’ कहा करते हैं। हमारे देश में जैसे मकर-संक्रांति, बैसाखी, सतुआनी या पोंगल को समायिक त्योहार के रूप में मनाते हैं, उसी प्रकार जापान के निवासा चानोयू’ का चाय-पान श्रद्धापूर्वक और उल्लाह से मनाते हैं। यह त्योहार सप्ताह भर चलता है। इस त्योहार में गृहणियां अपने घरों को सजाती हैं और रंग बिरंगे परिधान धारण करती हैं। फिर प्रत्येक परिवार अपने पड़ोसी परिवारों को सादर इस त्योहार में सम्मिलित होने का आमंत्राण देता है। घर की किसी बड़ी जगह पर से मेहमान एकत्रित होते हैं। अतिथियों की उपस्थिति में घर की गृहणियां बड़े से पतीले में चाय बनाना आरंभ करती हैं। जब चाय बनकर तैयार हो जाती है, तब सभी अतिथियों को एक कटोरे में चाय बारी-बारी से प्रेमपूर्वक पेश की जाती है। चाय की प्रथम चुस्की लेते ही लोग औपचारिकता वश प्रशंसात्मक अभिव्यक्ति आरंभ कर देते हैं। फिर वही क्रम दूसरे पड़ोसियों के घर भी त्योहार के अंत तक चलता रहता है।
चाय पीने के विभिन्न स्वरूप हैं। अलग-अलग देशों में अलग-अलग तरीकों से चाय पी जाती है। चीन और जापान में बिना दूध और बिना चीनी के बिलकुल सादी चाय पीते हैं। यूरोप और रूस में हल्की लीकर की काली चाय पी जाती है। तिब्बत में नमक को चाय में मिलाकर लकड़ी की प्याली में चाय पी जाती है। कश्मीर में भी नमकीन चाय ही पी जाती है। भारत में चाय की लीकर में चीनी तथा दूध मिलाकर सफेद चाय पी जाती हे। भारत में चाय पीने की आदत अंग्रेजों की देन है।
चाय वस्तुतः अत्यंत ही नाजुक के पेय है। यहां चाय पीने के साथ साथ चाय बनाने की कला भी उतनी ही विशिष्ट है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में चाय बनाने के भिन्न भिन्न तरीके प्रचलित हैं। पंजाबी चाय में बहुत उबाला हुआ गाझ़ा दूध व्यवहार में लाया जाता है और वह भी अधिक मात्रा में। इसके अतिरिक्त थोड़ी मलाई मार कर चाय को लस्सीनुमा बना दिया जाता है कि चाय बिलकुल लाल दिखाई देती है।
इसके विपरीत बंगाली चाय में चीनी अधिक होती है जो रसगुल्ले की याद दिलाती है। राजस्थानी चाय को लौंग, इलायची, तेजपत्ता, अदरक आदि मसाले डालकर, जायकेदार बना दिया जाता है। कश्मीरी चाय में चीनी और दूध का अभाव होता है। यहां की चाय नमकीन होती है। इन सबसे परे बिहारी चाय होती है। यहां समय और आर्थिक बचत के दृष्टिकोण से चाय की पत्ती, दूध, चीनी, पानी एक बार में रखकर आग पर चढ़ा दिया जाता है। गांवों में चीनी के स्थान पर गुड़ इस्तेमाल में लाया जाता है। नींबू की चाय या काली बिहार में पसंद नहीं की जाती।
भारत में चाय पीने का एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है। परीक्षा के दिनों में विद्यार्थियों के लिए चाय का महत्त्व गढ़ जाता है। उनकी आधी-अधूरी पढ़ाई जल्दी जल्दी पूरी करने में यह उन्हें सारी रात जगाकर एक अदभुत करिश्मा दिखाती है। बूढ़ों के लिए चाय नींद लाने का जरिया है। कुछ लोगों को चाय कब्ज से बचाती है तो कुछ लोग को यह कब्ज बढ़ाती है। कुछ लोग प्रायः चाय बिस्तर पर ही पीना पसंद करते हैं तो कुछ लोग रात में खाने के बाद या सोने जाते समय चाय पीते हैं। गरीबों और मजदूरों के लिए तो चाय आधुनिक अमृत है। भारत में अनेक प्रकार के पेय पदार्थ हैं परंतु उन सभी में चाय को ही भारत का सुलभ पेय माना गया है। चाय ने आज धीरे धीरे सभी के दिलों पर अपना एकछत्रा राज्य करना प्रारंभ कर दिया है।