समाज में आज क्या हो रहा है, यह सभी के लिए चिंता का विषय है। बच्चों का एक समूह, जवानों का दूसरा और बुजुर्गों का तीसरा और इन तीन समूहों में कहीं कोई तालमेल नहीं। रिश्ते अब मजाक बनते जा रहे हैं। उन्हें निभाने की कौन कहे, अब तो वे केवल झेले जाते हैं। मम्मी पापा दोनों पैसा कमाने में व्यस्त हैं क्योंकि पैसे से ही हर सुख व ऐशो आराम खरी़दा जा सकता है। फिर महिलाओं की ऊंची डिग्रियां चौके-चूल्हे में गर्क हों, भला यह उन्हें कब मंजूर होगा।
नतीजा? घर में बच्चे अकेले रहते हैं। प्रायः दादा दादी की परछाईं से उन्हें दूर रखा जाता है। अच्छे संस्कार मिलें तो कहां से और कैसे? आज की पीढ़ी का हर युवा यह क्यों भूल जाता है कि बूढ़ा उसे भी होना है। उसकी संतान भी बाद में उसके साथ ऐसा ही बर्ताव करे तो उसे कैसा लगेगा? पर जवाब आता है ‘तुम क्या तब तक बैठे रहोगे।‘
मनुष्य जन्म लिया है तो एक न एक दिन सबको मरना ही होगा। इस सत्य को इस तरह कहना…………. सठिया गए हो………अपने काम से काम रखो………..जाओ पूजा पाठ करो। अगर बुढ़ापे में यह सुनने को मिलता है तो जरूर बूढ़े भी गलती पर होते हैं जब वे बच्चों के जीवन में दखलअंदाजी करने की गलती करते हैं।
लेकिन वे मनुष्य हैं, रोबोट नहीं कि जैसा बच्चे उन्हें इस्तेमाल करना चाहें चलाना चाहें, वे चलेंगे। बात उन्हें समझने की है मगर यह मोटी सी बात नई पीढ़ी के भेजे में आ जाए कि उनसे बढ़कर उनका कोई भला चाहने वाला नहीं तो सारी समस्या ही हल हो जाए। यह अहम नहीं कि आप पूजा पाठ करते हैं, मंदिर जाते हैं या गंगा डुबकी लगाते हैं। अहम बात यह है कि अपने जन्मदाता को जिन्हें आपने देखा है, (भगवान को तो देखा नहीं है) बरसों बरस देखा है, जिनकी अंगुली पकड़कर चलना सीखा, हर सुख दुख में जो आपके साथ थे, कितनी केयर ‘कितना प्यार‘ और समय जिन्होंने आपको दिया, उनसे एहसानफरामोशी न करें। अपनी ही नजरों में गिरकर कभी संभल नहीं पायेंगे।
माता पिता का आशीर्वाद लें। उन्हें चाहे क्षणिक रूप में ही सही, बददुआ देने पर मजबूर न करें।
पुरानी चीजें होती हैं, शरीर होता है लेकिन मां बाप का प्यार नहीं। अपने विगत से आप विमुख कैसे रह सकते हैं जिसकी आप देन हैं? अपनी ज़िन्दगी को भरपूर जिएं। आपको खुश देखकर मां बाप खुश ही होंगे। वे आपकी खुशी में बाधक नहीं बनेंगे।