भाग्य से अधिक या कम नहीं मिलता

मनुष्य के भाग्य में जो भी लिखा होता है, वही उसे मिलता है। न उससे अधिक और न ही उससे कम। यह भाग्य हमारे पूर्वजन्मकृत कर्मो के अभनुसार बनता है। यदि पूर्वजन्मों में हमारे शुभकर्मों की अधिकता होती है तो इस जन्म में सुख-सुविधा के सभी साधन उपलब्ध होते हैं। इसके विपरीत दुष्कर्मों की यदि अधिकता होती है तब इस जन्म में कष्टों और परेशानियों का सामना करना पड़ता है।


सयाने कहते हैं – ‘पहले बना प्रारब्ध पाछे बना शरीर।‘ इस कथन का सीधा-सा अर्थ यही है कि मनुष्य का भाग्य उसके जन्म लेने से पूर्व ही निर्धारित हो जाता है। इसीलिए वर्तमान जीवन में मनुष्य को उसी के अनुसार समय-समय पर शुभाशुभ फल प्राप्त होता है।
इसी विषय को उदाहरण सहित कवि ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में समझाया है –
पत्रां नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किम्?


नोलूकोऽप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम्?


यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं क क्षमः।
अर्थात् करीर के वृक्ष में यदि पत्ते नहीं लगते तो इसमें वसन्त ऋतु का क्या दोष है? उल्लू यदि दिन में नहीं देख पाता तो इसमें सूर्य का क्या दोष है? चातक पक्षी के मुँह में यदि वर्षा की धारा नहीं पड़ती तो इसमें बादल का क्या दोष? विधाता ने जिसके ललाट पर जो पहले लिख दिया है, उसे मिटाने में कौन समर्थ हो सकता है? अर्थात् उसे ब्रह्माण्ड की कोई ताकत भी नहीं मिटा सकती।


करीर के वृक्ष पर पत्ते न लगने का कारण वसन्त ऋतु नहीं है। पतझड़ में पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं और वसन्त में तो सभी वृक्ष हरे-भरे दिखाई देते हैं। उन पर खिले रंग-बिरंगे फूल प्रकृति के सौन्दर्य को बढ़ाते हैं। चारों ओर हरियाली का साम्राज्य होता है जो बहुत ही मनमोहक होता है।


विश्व के सभी जीव-जन्तु सूर्य की रौशनी में दिन में देखते हैं। रात में उन्हें देखने में कठिनाई होती है परन्तु उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो दिन के उजाले में नहीं देख पाता बल्कि रात के अँधेरे में उसे दिखाई देता है। वह दिन में नहीं देख पाता तो हम इसके लिए सूर्य को दोष नहीं दे सकते।


वर्षा की पहली बूँद चातक पक्षी के मुँह में यदि पड़ती है तो वह अपनी प्यास बुझाता है। यदि वर्षा की पहली बूँद उसके मुँह में न पड़े तो वह प्यासा रह जाता है और फिर वर्षा की पहली बूँद के लिए वह पूरा वर्ष प्रतीक्षा करता है। सभी जीवों की प्यास बुझाने वाली वर्षा का इसमें कोई दोष नहीं होता।


करीर वृक्ष, उल्लू और चातक पक्षी के इन सभी उदाहरणों से यही सिद्ध होता है कि विधाता ने जिसके ललाट पर या मस्तक पर उसके जन्म से पहले ही जो लिख दिया, उसे इस संसार की कोई भी शक्ति नहीं मिटा सकती। न ही उसे बदलने की सामर्थ्य किसी में है।


मनीषियों का यह भी कथन है कि अपने जीवन में मनुष्य जिस भी अंग का अधिक दुरुपयोग करता है, आगामी जीवन में ईश्वर उसे उस अंग से वंचित कर देता है। वर्तमान जीवन में वह एक अपाहिज का जीवन व्यतीत करता है और कष्ट पाता है। वह सबकी सहानुभूति का पात्रा बन जाता है। हम अपने आसपास ऐसे अनेक लोगों से मिलते रहते हैं।


आगामी जन्म में अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलने के लिए बिना समय व्यर्थ गंवाए सत्कर्मो की पूँजी को बढ़ाने के लिए हम सब प्रवृत्त हो जाएँ। इस प्रकार करने से सिर धुनकर रोने और पश्चाताप करने से हम बच सकते हैं।