बाल कथा – पिता के लिए

खारून नदी के किनारे एक कस्बा था। वहां हर साल रथयात्रा के पावन अवसर पर बहुत बड़ा मेला लगता था। बच्चे-बूढे़, सभी बड़े उत्साह के साथ रथयात्रा देखने को आते और उस मेले का आनंद लेते थे। दीपू भी हर साल अपनी बहन राधा के साथ रथयात्रा देखने जाता था और देर तक मेले में घूमकर घर लौटता था। वहां की भीड़भाड़ उसे बहुत अच्छी लगती थी।
इस बार भी वह रथ यात्रा के दिन मेला देखने पहुंचा। जिस मैदान में भगवान  जगन्नाथ की रथ यात्रा निकली थी, वहां पर बहुत भीड़ थी। बूढ़े-बच्चे सभी रथयात्रा देखने आए थे। झूले, खिलौने और खान-पान की दुकानें सजी हुई थीं।


दोनों भाई-बहन मेले में घूम रहे थे। तभी किसी ने उन्हें पुकारा, ‘बच्चो, मुखौटे नहीं लोगे?‘
वे आवाज देने वाले की तरफ मुड़े। एक मुखौटे बेचने वाला उन्हें देखकर मुस्कुरा रहा था। दीपू की नजर मुखौटों पर पड़ी। मुखौटे वाले के पास भगवान राम, शंकर, जगन्नाथ, कृष्ण, विष्णु, बालाजी, हनुमान आदि देवताओं के बड़े सुंदर-सुंदर मुखौटे थे।


दीपू ने मचलते हुए राधा से कहा, ‘दीदी, देखो तो कितने सुंदर-सुंदर मुखौटे बिक रहे हैं। दीदी, मुझे रामजी वाला मुखौटा दिलवा दो न।‘


राधा ने झिझकते हुए कहा, ‘दीपू, हमारे पास पैसे नहीं हैं।‘
‘दीदी, पिताजी ने आपको मेले में खर्च करने के लिए पैसे दिए हैंै। फिर आप मुखौटा लेने से मना क्यांे कर रही हो?‘ दीपू ने मासूमियत से पूछा


राधा बोली, ‘दीपू भाई, पिताजी हमें हमेशा बचत करने के लिए कहते हैं। सभी पैसे मेले में खत्म कर देंगे तो बचत कैसे होगी। इसलिए मुखौटे खरीदने की जिद छोड़ो। खाने-पीने की चीजें तो खरीदेंगे ही।‘


दीपू उदास हो गया। बोला, ‘दीदी, देखो तो उन बच्चों को। वो एक-एक नहीं तीन-चार मुखौटे खरीद रहे हैं और साथ में ढेर सारे खिलौने भी। आप मेरे लिए एक मुखौटा नहीं खरीद सकतीं।


राधा ने उसे समझाया, ‘दीपू, उन बच्चों के पिताजी गरीब नहीं हैं। तुम्हें तो मालूम है, हमारे पिताजी कितनी मेहनत से धन कमाते हैं। वैसे भी मेले के लिए पैसा देते समय पिताजी ने कहा था कि फिजूलखर्ची मत करना, काम की चीजें ही खरीदना। पैसे बचे रहेंगे तो तुम दोनों भाई-बहनों की पढ़ाई के काम आएंगे।‘


कुछ सोचकर दीपू ने कहा, ‘दीदी, मेरे पास एक आइडिया है। आप मेरे लिए रामचंद्रजी का मुखौटा खरीद दो। मैंने गुल्लक में कुछ पैसे जमा किए हैं। घर पहुंचते ही मैं गुल्लक को तोड़कर आपको मुखौटे के पैसे दे दूंगा। आप पिताजी को गुल्लक तोड़ने वाली बात मत बताना।‘


‘जब पिताजी मुखौटे को देखेंगे तो जरूर डांटेंगे कि तुम लोगांे ने मुखौटे खरीदकर फिजूलखर्ची क्यों की? और दिए हुए पैसों का हिसाब भी मांगेंगे। तब हम क्या जवाब दंेगे?  राधा ने शंका जाहिर की।


दीपू ने जवाब दिया, ‘दीदी, हम पिताजी से झूठ बोल देंगे। कह देंगे कि मुखौटा किसी और ने दिलवाया है। तब तो पिताजी नाराज नहीं होंगे?‘


‘नहीं भाई, पिताजी से इस तरह झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है। जब हमारा झूठ पकड़ी जाएगा और पिताजी को सच्चाई का पता चल जाएगा, तो उन्हें कितना दुख होगा तुम जानते हो?‘ राधा ने प्यार से अपने भाई को समझाया।  


मुखौटे वाला उनकी सारी बातें सुन रहा था। वह हंसकर बोला, ‘बेटे, रामजी के मुखौटे को खरीदना तुम्हारे लिए व्यर्थ है। रामचंद्रजी के मुखौटे के लिए तुम अपने पिता से झूठ बोलोगे जबकि रामचंद्रजी ने तो अपने पिता के वचन को सच साबित करने के लिए, चैदह वर्ष का कठोर वनवास काटा था। पहले रामचंद्रजी को समझो, फिर मुखौटा खरीदना।‘


मुखौटे वाले की बात सुनकर, दीपू शर्मिंदा हो गया। उसे अपनी गलती पता चल गई। उसने मुखौटे वाले और राधा से माफी मांगी। फिर राधा का हाथ पकड़कर घर की ओर चल पड़ा। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि अब कभी झूठ नहीं बोलेगा।