यदि बच्चा खर्राटे ले तो माता.पिता इसे मामूली न समझें। इस ओर ध्यान देना जरूरी है। बच्चा बड़ा होकर मुश्किल में फंस सकता है। इसका भी उपचार सुझाते हैं। डॉण् जीन बीबे का कहना है. ्ययादा समय तक बच्चों को माँ का दूध पिलाकर तेज खर्राटों की समस्या को रोका जा सकता हैए है न सम्भव तथा सरल इलाज।
हिमानी दीवान कहती हैं! दो तीन साल के किसी बच्चे को नींद में खर्राटे लेते देखकर सचेत हो जाएं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी में सिन्सनेटी में न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट डॉण् जीन बीबे बच्चों के खर्राटे लेने की आदत और उनके व्यवहार पर काफी समय तक रिसर्च करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे हैं। इस रिसर्च के बाद डॉण् जीन ने यह निष्कर्ष निकाला कि तेज आवाज में खर्राटे लेने वाले बच्चों में आगे चलकर व्यवहारों से जुड़ी कई परेशानियां सामने आती हैं। इस रिसर्च को दिल्ली के मौलाना आजाद अस्पताल के डॉण् जुगल किशोर भी बिल्कुल सही मानते हैं।
डॉण् किशोर के मुताबिक खर्राटे लेने की आदत से व्यक्ति की सामाजिक और निजी जिंदगी दोनों पर असर पड़ता हैए जिससे व्यक्ति तनावग्रस्त और चिड़चिड़ा हो जाता है। इसलिए बचपन में ही इस समस्या पर ध्यान देना जरूरी है।
मेडिकल जनरल पिडयाट्रिक्स में प्रकाशित इस रिसर्च के लिए तकरीबन 250 बच्चों की माताओं से उनके सोने के तरीकों और व्यवहार के बारे में सवाल किया गया। नतीजे में सामने आया कि लगातार तेज आवाज में खर्राटे लेने की आदत दस में से सिर्फ एक बच्चे को होती है। लेकिन जो बच्चे दो.तीन साल की उम्र में हफ्ते में दो से ्ययादा बार रात को सोते वक्त खर्राटे लेते हैं उनके व्यवहार में कई तरह की समस्याएं होती हैं। इसमें लापरवाही और चिड़चिड़ापन शामिल हैं।