नयी दिल्ली, 15 अगस्त (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बृहस्पतिवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की पुरजोर वकालत की और राजनीतिक दलों से इस सपने को साकार करने के लिए आगे आने का आग्रह किया।
देश के 78वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस मुद्दे पर देश भर में व्यापक विचार-विमर्श हुआ है और सभी राजनीतिक दलों ने अपने विचार रखे हैं।
उन्होंने कहा कि एक समिति ने एक उत्कृष्ट रिपोर्ट भी प्रस्तुत की है।
मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा, ‘‘बार-बार चुनाव देश के विकास में गतिरोध पैदा कर रहे हैं। किसी भी योजना या पहल को चुनाव से जोड़ना आसान हो गया है। हर तीन से छह महीने में कहीं न कहीं चुनाव होते हैं। हर काम चुनाव से जोड़ दिया जाता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए देश को आगे आना होगा। मैं लाल किले से देश के राजनीतिक दलों से आग्रह करता हूं, देश के संविधान को समझने वाले लोगों से आग्रह करता हूं कि भारत की प्रगति के लिए, भारत के संसाधनों का सर्वाधिक उपयोग सुनिश्चित करने के उद्देश्य से, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ के सपने को साकार करने के लिए आगे आएं।’’
ज्ञात हो कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में किए गए प्रमुख वादों में से एक है।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति ने इस साल मार्च में पहले चरण के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने और उसके बाद 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की थी।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एक साथ चुनाव कराने से संसाधन बचेंगे, विकास एवं सामाजिक सामंजस्य में तेजी आएगी, लोकतांत्रिक आधार की नींव मजबूत होगी और ‘इंडिया दैट इज भारत’ की आकांक्षाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा विधि आयोग सरकार के तीनों स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों मसलन नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव 2029 से एक साथ कराने और त्रिशंकु सदन या अविश्वास प्रस्ताव जैसे मामलों में एकता सरकार के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है।
कोविंद समिति ने एक साथ चुनाव कराने की कोई अवधि नहीं बताई है।
इसने समिति की सिफारिशों के निष्पादन को देखने के लिए एक ‘कार्यान्वयन समूह’ बनाने का प्रस्ताव दिया है।
समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित करने की आवश्यकता नहीं होगी। इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की जरूरत होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित करने की आवश्यकता होगी।