उच्चतम न्यायालय ने बायजू को राहत देने वाले एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगाई

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नयी दिल्ली, 14 अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने वित्तीय संकट से जूझ रही शिक्षा-प्रौद्योगिकी कंपनी बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही शुरू करने के आदेश को निरस्त करने के एनसीएलएटी के फैसले पर बुधवार को रोक लगा दी।

यह मामला भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के साथ बायजू के प्रायोजन सौदे से संबंधित 158.9 करोड़ रुपये के भुगतान में चूक का है।

बायजू का संचालन करने वाली मूल कंपनी थिंक एंड लर्न को राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के दो अगस्त को आए फैसले से बड़ी राहत मिली थी। उसमें कंपनी के संस्थापक बायजू रवींद्रन को फिर से नियंत्रण में ला दिया था।

लेकिन उच्चतम न्यायालय ने एनसीएलएटी के फैसले को प्रथम दृष्टया ‘अविवेकपूर्ण’ करार देते हुए उसके क्रियान्वयन पर स्थगन आदेश दे दिया।

इसके साथ ही न्यायालय ने बायजू के अमेरिका-स्थित कर्जदाता ग्लास ट्रस्ट कंपनी एलएलसी की अपील पर बायजू और अन्य को नोटिस जारी किया है।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘‘हम (एनसीएलएटी के) फैसले पर रोक लगा रहे हैं। यह अविवेकपूर्ण है।’’

शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई को निर्देश दिया कि वह बायजू से समझौते के बाद प्राप्त 158 करोड़ रुपये की राशि को अगले आदेश तक एक अलग एस्क्रो खाते में रखे।

एनसीएलएटी ने बीसीसीआई के साथ 158.9 करोड़ रुपये के बकाया निपटान को मंजूरी देने के साथ बायजू के खिलाफ दिवाला कार्यवाही को रद्द कर दिया था।

बायजू ने 2019 में बीसीसीआई के साथ टीम प्रायोजन का समझौता किया था। उसने 2022 के मध्य तक अपनी देनदारियां पूरी की थीं लेकिन बाद में 158.9 करोड़ रुपये के भुगतान में चूक कर दी थी।

दिवाला कार्यवाही शुरू होने के बाद बायजू ने बीसीसीआई के साथ समझौता किया। इस आधार पर एनसीएलएटी ने बायजू को कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया से बाहर कर दिया और प्रवर्तकों को निदेशक मंडल के नियंत्रण में वापस ला दिया।

इसके पहले राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) की बेंगलुरु पीठ ने 16 जुलाई को बायजू की मूल कंपनी ‘थिंक एंड लर्न’ के खिलाफ दिवाला प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया था।

देश की अग्रणी शिक्षा-प्रौद्योगिकी कंपनियों में शुमार बायजू पिछले दो साल में गहरे वित्तीय संकट में फंसी है और इसकी वजह से उसे अपने कर्जदाताओं के अलावा अन्य भुगतान विवादों का भी सामना करना पड़ रहा है।