उत्तर प्रदेश उप चुनाव में होगी योगी व अखिलेश दोनों की कड़ी परीक्षा !

उत्तरप्रदेश में लोकसभा चुनाव जीतने वाले विधायकों से खाली हुई सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत के लिए प्रदेश के  मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। मुख्यमंत्री  योगी ने बैठक कर सरकार के मंत्रियों की ‘स्पेशल टीम’ को एक-एक विधानसभा में उतार दिया है। यह सभी इसी हफ्ते से उपचुनाव वाले विधानसभा क्षेत्रों में मोर्चा संभाल लिया है । चुनाव आयोग ने अभी उपचुनाव की तारीख घोषित नहीं की है पर सभी दलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है।

ज्ञात हो कि लोकसभा चुनाव के बाद अब प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की बारी है। लोकसभा चुनाव नतीजों से उत्साहित समाजवादी पार्टी  और इसके प्रमुख अखिलेश यादव का ध्यान पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक  के फॉर्मूले को आगे बढ़ाने पर है। वहीं सूबे की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी  के सामने उपचुनावों में जीत के साथ साख बचाने की चुनौती होगी। इन उपचुनावों में दलित मतदाता की फैक्टर साबित हो सकते हैं। भाजपा  और सपा, दोनों ही दल दलित मतदाताओं को अपने पाले में करने की कोशिश में जुटे हैं तो वहीं उपचुनावों से दूरी बनाए रखने वाली मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी  भी इस बार उम्मीदवार उतारने की तैयारी में है।

प्रदेश की जिन 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं  इनमें कन्नौज से सांसद निर्वाचित होने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव के इस्तीफे से रिक्त हुई मैनपुरी जिले की करहल और फैजाबाद के सांसद अवधेश प्रसाद के इस्तीफे से रिक्त हुई मिल्कीपुर के साथ ही कटेहरी, कुंदरकी, गाजियाबाद, खैर विधानसभा सीट भी शामिल हैं। फूलपुर, मीरापुर, मझवा और सीसामऊ विधानसभा सीट के लिए भी उपचुनाव होने हैं। जिन 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से पांच सीटों पर 2022 के चुनाव में सपा के उम्मीदवार जीते थे। भाजपा  के पास तीन, निषाद पार्टी के पास एक और जयंत चौधरी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय लोक दल के पास एक सीट थी।

विकास और स्थानीय समस्याओं के साथ ही उपचुनावों में संविधान और आरक्षण का मुद्दा भी छाए रहने की संभावना है। लोकसभा चुनाव में 2019 की 62 सीटों के मुकाबले पार्टी के 29 सीटों के नुकसान के साथ 33 पर आने के पीछे भाजपा  के नेता भी संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर विपक्ष की ओर से गढ़े गए नैरेटिव को मुख्य वजह मान रहे हैं। जब चुनाव नतीजों की समीक्षा करने लखनऊ पहुंचे संगठन महासचिव बीएल संतोष के साथ मीटिंग में भी दलित और ओबीसी वर्ग से आने वाले नेताओं ने ये मुद्दा उठाया था ।

भाजपा  नेताओं ने बीएल संतोष को ये बताया था कि आउटसोर्सिंग में आरक्षण का न होना लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के पीछे बड़ी वजह रहा  है। दलित समाज इसे आरक्षण खत्म किए जाने की दिशा में पहला कदम मान बैठा है। विपक्ष संविधान को लेकर भी भाजपा  के खिलाफ नैरेटिव सेट करने में सफल रहा है , पार्टी के नेता ये भी मान रहे हैं। भाजपा  के सामने संविधान और आरक्षण के मोर्चे पर विपक्ष के नैरेटिव से निपटने की चुनौती भी होगी।

वहीं, मैनपुरी जिले के करहल विधानसभा क्षेत्र में यादव आबादी की बहुलता है। गाजियाबाद की सीट शहरी है और इसे भाजपा  के लिए अपेक्षाकृत आसान बताया जा रहा है।  फूलपुर में पटेल मतदाता अधिक हैं तो वहीं मुजफ्फरनगर के मीरापुर विधानसभा क्षेत्र में जाट-गुर्जर के साथ मुस्लिम मतदाता नतीजे तय करते हैं।

प्रदेश में भाजपा  की सीटें कम होने को लेकर उंगलियां मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ की ओर भी उठती रही है और अब उनके लिए इस चुनाव में करो या मरो की स्थिति हो गई है क्योकि  योगी सरकार के कामकाज के तरीके पर सवाल उठे तो ये भी कहा गया कि ब्रांड योगी की वैल्यू कम हुई है। हालांकि, लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार चयन में मुख्यमंत्री  योगी की सीधी भूमिका नहीं थी। मुख्यमंत्री  योगी के पास उपचुनाव में अपनी सीटें बचाए रखने हुए विपक्ष की जीती सीट हासिल कर यह साबित करने का मौका है कि प्रदेश के जनमन पर उनकी छाप मद्धम नहीं पड़ी है। उपचुनाव में भाजपा  का प्रदर्शन अगर कमजोर रहा तो पार्टी के भीतर विरोध के स्वर और तेज हो सकते हैं, मुख्यमंत्री  योगी को भी इस बात का अंदाजा हो गया  है इस कारण वे   खुद मोर्चा संभाल रहे है ।

प्रदेश में दलित वर्ग मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी  का कोर वोटर माना जाता रहा है। सूबे में करीब 20 फीसदी आबादी दलित वर्ग की है और बसपा का वोट शेयर भी 19 फीसदी के आसपास रहता रहा है। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में, कुछ चुनावों में तस्वीर बदली है। हाल के लोकसभा चुनाव की ही बात करें तो बसपा का वोट शेयर 19 फीसदी से गिरकर 10 फीसदी से भी नीचे चला गया। बसपा को लोकसभा चुनाव में नौ फीसदी वोट मिले थे और पार्टी वोट शेयर के लिहाज से कांग्रेस के भी पीछे रही। बसपा का खाता भी नहीं खुला था।

इसके उलट, आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद नगीना सीट से जीतकर संसद पहुंचने में सफल रहे। अब कहा यह जा रहा है कि दलितों का मोह मायावती की पार्टी से भंग हुआ है। नगीना में जहां दलित नेतृत्व का विकल्प था, दलित मतदाताओं ने वहां उसे चुना और बाकी जगह भी मायावती से छिटका यह वोटबैंक सपा और भाजपा  में बंट गया। भाजपा  के नेताओं ने खुद समीक्षा बैठक में यह कहा कि दलितों ने पार्टी को वोट करने से परहेज किया। ऐसे में देखना होगा कि दलित मतदाताओं का रुख उपचुनाव में किधर रहता है।

लोकसभा चुनाव से पहले पहले भाजपा  सबका साथ, सबका विकास के साथ सबका विश्वास की बात करती थी। चुनाव नतीजों के बाद पार्टी के नेताओं के बयानों से सबका विश्वास नदारद नजर आ रहा है। राम मंदिर और अयोध्या के जिक्र से भी पार्टी के नेता परहेज कर रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि क्या उपचुनाव में पार्टी फिर से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के अपने कोर मुद्दे पर लौटेगी? वरिष्ठ पत्रकार बताते है  कि उपचुनाव में वैसे भी सत्ताधारी दल को एज रहता है। ये उपचुनाव प्रदेश से जुड़े हैं जहां सरकार की कमान पहले से ही हिंदुत्व के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ के हाथ में है। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद भी भाजपा  की चुनावी रणनीति का हिस्सा होंगे लेकिन पार्टी का जोर संविधान और आरक्षण को लेकर विपक्ष के नैरेटिव की काट करने पर अधिक होगा।  

मिल्कीपुर विधानसभा सीट अवधेश प्रसाद पासी के इस्तीफे से रिक्त हुई है। अवधेश प्रसाद फैजाबाद सीट से संसद पहुंच चुके हैं और इसी सीट में अयोध्या भी है। भाजपा  के पास उपचुनाव में मिल्कीपुर सीट जीतकर लोकसभा चुनाव में फैजाबाद सीट पर मिली हार का बदला लेने का भी मौका होगा। प्रदेश में दूसरे नंबर पर पहुंचने से ज्यादा भाजपा  को अयोध्या की हार सता  रही है। ऐसे में माना जा रहा है कि भाजपा  की कोशिश मिल्कीपुर उपचुनाव जीतकर लोकसभा चुनाव में अयोध्या की हार के जख्म पर मरहम लगाने की होगी। मिल्कीपुर उपचुनाव में नौ बार विधायक रह चुके अवधेश पासी के बेटे अजित प्रसाद के सपा से चुनाव मैदान में उतरने की अटकलें हैं। इसी कारण शायद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिल्कीपुर विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर खुद इंटरेस्ट ले रहे है । हाल ही में उन्होंने  चुनाव प्रभारियों, पार्टी पदाधिकारियों के साथ सर्किट हाउस में समीक्षा की। चुनाव को लेकर उन्होंने बूथ प्रबंधन पर विशेष जोर दिया। बूथ प्रबंधन के विभिन्न विषयों पर उन्होंने विस्तार से पदाधिकारियों को जानकारी दी। मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ ने “हर घर तिरंगा (13 से 15 अगस्त)” अभियान को लेकर पार्टी पदाधिकारियों को प्रत्येक परिवार से सम्पर्क स्थापित करने के लिए निर्देशित किया।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यकर्ताओं में जोश भरा। बोले कि सरकार हर वर्ग के लिए विकास योजनाएं चला रही हैं। इसका लाभ भी आमजन को मिल रहा है। हमारे कार्यकर्ता हर हाल में आमजन से जुड़कर विकास के मुद्दे लोगों तक पहुंचाएं। मुख्यमंत्री  ने कार्यकर्ताओं से कहा कि विपक्ष की गुमराह करने की राजनीति का जवाब दें। इसके लिए पदाधिकारियों को सक्रिय रहना होगा। लोकसभा चुनाव में विपक्षियों ने जनता से छलावा किया है। मुख्यमंत्री  ने कहा कि संविधान की रक्षा भाजपा सरकारों के समय ही की गई। कांग्रेस के समय में अनेक चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त किया गया। मुख्यमंत्री  ने कार्यकर्ताओं से कहा कि विपक्षियों के दोहरे रवैये की पोल जनता के सामने खोंले।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ‘बूथ जीतो चुनाव जीतो’ अभियान को गति देने के लिए सभी की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिए भी अपने कार्यकर्ताओं को कहा है । सभी बूथ समितियों को सक्रिय करने के साथ लाभार्थियों से लगातार संपर्क स्थापित करते रहने का निर्देश भी मुख्यमंत्री  ने दे रखा है । चुनाव को लेकर उन्होंने बूथ प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जा रहा है । बूथ प्रबंधन के विभिन्न विषयों पर उन्होंने विस्तार से पदाधिकारियों को जानकारी दी जा रही है ।

प्रदेश की 10 सीटों का उपचुनाव कांग्रेस के नजरिए से भी अहम है। उपचुनावों को सपा-कांग्रेस गठबंधन के भविष्य के लिहाज से भी अहम माना जा रहा है। कांग्रेस के किसी सीट से उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं कम ही हैं लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी की कोशिश होगी कि उपचुनावों के बहाने ‘प्रदेश के दो लड़कों की जोड़ी’ और मजबूत हो, इंडिया ब्लॉक के वोट बेस का और विस्तार हो। 2019 के लोकसभा चुनाव में महज एक सीट ही जीत सकी कांग्रेस हाल के चुनाव में छह सीटें जीतकर उत्साह से लबरेज है।