लखनऊ, 11 अगस्त (भाषा) उत्तर प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने प्रदेश में मदरसों की मान्यता की नयी व्यवस्था शुरू किए जाने की तैयारी के संकेत देते हुए कहा कि दो विश्वविद्यालय खोलकर मदरसों को उनसे संबद्ध किया जाएगा।
हालांकि, देश में मुसलमानों के सबसे बड़े सामाजिक संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद का कहना है कि सरकार ऐसा कोई भी कदम उठाने से पहले सभी पक्षकारों से बातचीत करे और यह सुनिश्चित करे कि इससे अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन नहीं होगा।
राजभर ने ‘पीटीआई-वीडियो’ से कहा, “राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से जो पत्र आया है, उसमें कहा गया है कि ऐसे मदरसे जो बच्चों को पढ़ा तो रहे हैं, लेकिन उनके पास बच्चों को शैक्षणिक प्रमाणपत्र देने की मान्यता नहीं है, उनमें पढ़ने वाले बच्चों को निकालकर सरकारी परिषदीय स्कूलों में दाखिल कराया जाए। (पत्र में) बस इतना ही है।”
गौरतलब है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इसी साल सात जून को राज्य सरकार को एक पत्र लिखा था। प्रदेश के तत्कालीन मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने पिछली 26 जून को आयोग के इस पत्र का हवाला देते हुए एक आदेश जारी किया था, जिसमें प्रदेश के सरकारी अनुदान प्राप्त मदरसों में पढ़ने वाले गैर-मुस्लिम बच्चों और गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के सभी बच्चों को निकालकर परिषदीय स्कूलों में दाखिल कराने के निर्देश दिए गए थे। हालांकि, यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा था, जिसने इन आदेशों पर फिलहाल रोक लगा दी थी।
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री राजभर ने प्रदेश के मदरसों की मान्यता की नयी व्यवस्था शुरू किए जाने की तैयारी की तरफ इशारा करते हुए कहा, “हमारा प्रयास है कि हम दो विश्वविद्यालय खोलें। हम राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड को विश्वविद्यालय से संबद्ध करना चाहते हैं और वहीं (विश्वविद्यालय से) सभी मदरसों को मान्यता दे दी जाएगी, ताकि भविष्य में कोई विवाद न हो।”
राजभर ने उदाहरण देते हुए कहा, “लखनऊ विश्वविद्यालय, पूर्वांचल विश्वविद्यालय, शकुंतला विश्वविद्यालय आपके सामने हैं, जहां से तमाम विद्यालय संचालित होते हैं। इस तरह विश्वविद्यालय से अगर मदरसे संचालित होते, तो आज यह दुर्गति न होती। इस काम को न तो सपा कर पाई, न कांग्रेस कर पाई और न ही बसपा।”
मालूम हो कि वर्तमान व्यवस्था में प्रदेश के मदरसों को उत्तर प्रदेश राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड ही मान्यता देता है।
इस बीच, जमीयत उलमा-ए-हिंद के कानूनी सलाहकार मौलाना काब रशीदी ने कहा कि सरकार अगर मदरसों को मान्यता देने की व्यवस्था में बदलाव करने जा रही है, तो इस पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उससे पहले उसे जमीयत उलमा-ए-हिंद, नदवतुल उलमा और दारुल उलूम देवबंद समेत सभी पक्षों से बात करनी चाहिए।
रशीदी ने यह भी कहा, ”संविधान में अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थाओं की स्थापना करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार दिया गया है। राज्य सरकार मदरसों की मान्यता के सिलसिले में जो व्यवस्था करने जा रही है, उसमें इस बात का खास ख्याल रखा जाना चाहिए कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की हर हाल में रक्षा हो।”
उधर, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद ने कहा, ”राज्य सरकार मदरसों के बारे में इतना बड़ा कदम उठाने जा रही है मगर इस बारे में बोर्ड को कोई जानकारी ही नहीं है। किसी शिक्षा परिषद को विश्वविद्यालय से संबद्ध किया जाएगा, ऐसी बात पहले कभी देखी-सुनी नहीं गई है।”
हालांकि, जावेद ने कहा कि सरकार के पास शक्तियां हैं कि वह व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव कर सकती है, लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के बच्चों को परिषदीय स्कूलों में दाखिल करने का आदेश जारी करने से पहले ऐसे मदरसों को बोर्ड से मान्यता देने पर विचार किया जाना चाहिए था।
उत्तर प्रदेश में लगभग 25,000 मदरसे संचालित हो रहे हैं। उनमें से करीब 16,500 मदरसे बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं, जबकि लगभग 8,500 मदरसे बोर्ड से मान्यता प्राप्त नहीं हैं। मान्यता प्राप्त मदरसों में से 560 को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है।