देश भर के सिंचित क्षेत्रों में धान की खेती बहुतायत तौर पर की जाती है। इसके लिए रोपाई विधि इस्तेमाल में लाई जाती है। अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए धान की रोपाई मध्य जून से जुलाई तक करनी चाहिए परन्तु वर्तमान में धान की रोपाई मध्य जुलाई तक की जाती है जिसमें विलम्ब से रोपाई होने का मुख्य कारण समय पर श्रमिकों का उपलब्ध न होना एवं सिंचाई हेतु पानी की पर्याप्त मात्रा में अनुपलब्धता है। बासमती धान की काश्त मशीन द्वारा सीधी बिजाई (डीएसआर) से सफलतापूर्वक की जा सकती है। धान की सीधी बुआई एक संसाधन संरक्षण तकनीक है। इस तकनीक में बिजाई का समय, बीज की मात्रा, बीज की गहराई, बीजोपचार एवं खरपतवार नियंत्रण व अन्य कृषि तकनीकों की तरफ ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है। जिनका विवरण इस प्रकार है –
खेत की तैयारी : बीज के अच्छे जमाव तथा खाद व पानी के समुचित उपयोग हेतु खेत को भूमि समतलीकरण करना बहुत ही जरूरी है।
बिजाई का तरीका : बासमती धान की बिजाई उल्टे टी प्रकार के फाले एवं तिरछी प्लेट युक्त दो बक्से वाली बीज व उर्वरक जीरोटिल ड्रिल मशीन द्वारा बिना कद्दू किये निम्नलिखित विधियों द्वारा कर सकते हैं।
बतर खेत में बिजाई : बतर आने पर 2-3 जुताईयां करके खेत को सुहागा लगाकर तैयार करें तथा तुरन्त बिजाई मशीन से बिजाई करें। ध्यान रखें कि बीज को 3-5 से.मी. की गहराई पर डालें। बिजाई उपरान्त तुरन्त सुहागा लगायें। खेत की तैयारी एवं बिजाई सायंकाल के समय ही करें ताकि नमी न उड़े तथा बीज व मिट्टी का पूरा सम्पर्क बना रहे।
सूखे खेत में बिजाई : दो तीन जुताईयां करके खेत को तैयार करें व सुहागा न लगाएं। ड्रिल से केवल 2-3 से.मी. की गहराई पर बिजाई करें तथा सुहागा न लगाएं। बिजाई के तुरन्त बाद सिंचाई करें।
बिजाई का समय : बासमती धान की किस्मों- तरावड़ी बासमती, सीएसआर 30, पूसा बासमती-1 व पूसा बासमती-1121 में से ही चुनें। फसल का जमाव मानसून आने से पहले हो जाए, इसके लिए सीधी-बिजाई जून के दूसरे सप्ताह व तीसरे सप्ताह में कर देनी चाहिए।
बीज की मात्रा व उपचार – बीज की मात्रा 8 कि.ग्रा. प्रति एकड़ पर्याप्त रहती है। बीज उपचार के लिए 10 कि.ग्रा. बीज हेतु 10 ग्राम एमिसान या 10 ग्राम कार्बोन्डाजिम व एक ग्राम स्ट्रैप्टोसाहक्लिन या 25 ग्राम पौसामाहसिन को 10 लीटर पानी में घोल बनाकर बीज को 24 घंटे तक डुबोकर रखें। इसके बाद बीज को 1-2 घंटे तक सुखाएं ताकि अतिरिक्त नमी खत्म हो जाए।
समन्वित खरपतवार नियंत्रण : सीधी बुआई द्वारा लगाए गए धान में खरपतवारों की सघनता अत्यधिक रहती है जिनका यदि उचित तौर तरीकों के साथ-साथ समयानुसार नियंत्रण न किया जाए तो उत्पादन पर काफी असर पड़ता है।
बतर अवस्था में पैंडीमिथालिन स्टोम्प 30 प्रतिशत (ईसी) का 13 लीटर प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर बिजाई के तुरन्त बाद स्प्रे करें। स्प्रे नम भूमि में करें। बिजाई के 15-25 दिन बाद खरपतवारों की 2-4 पत्ती वाली (अवस्था) बिस्पाइरी बैक सोडियम नोमिनी गोल्ड 10 प्रतिशत एससी) का 100 मि.ली. एकड़ की दर से 120 लीटर पानी से स्प्रे करें।
2. सूखी अवस्था जिसमें बिजाई के तुरन्त बाद सिंचाई की गई है उसमें ओक्साडयर्जिल टोप स्टार 80 प्रतिशत का 50 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में घोल बनाकर नम मिट्टी में बिजाई के 3 दिन बाद स्प्रे करें तथा बिजाई के 15-25 दिन बाद बिस्पाईरीबैक सोडियम नोमिनी गोल्ड 10 प्रतिशत एससी का 100 मिली. प्रति एकड़ की दर से 120 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें।
स्टेल बैंड तकनीक : इस तकनीक द्वारा गत वर्ष धान के गिरे हुए बीज से उगे हुए पौधों व अन्य उगे हुए खरपतवारों के लिए खेत में पानी लगाकर या वर्षा से उगने पर जुताई करके या शाकानाशियों के प्रयोग से खरपतवारों का समाधान किया जा सकता है।
सिंचाई प्रबंधन
बतर खेत में : प्रथम सिंचाई मौसम के अनुरूप 7-15 दिन बाद करें।
सूखे खेत में : प्रथम सिंचाई बिजाई के तुरन्त बाद करें तथा दूसरी सिंचाई 4-5 दिन बाद करें ताकि बीज का जमाव एकसार हो जाए व पौध न नष्ट हो। इसके बाद की सिंचाईयां जरूरत के अनुसार करें। फसल की संवेदनशील अवस्थाओं बालियां निकलने व दाना बनने पर नमी की कमी न आने दें।
खाद प्रबंधन – सीधी-बिजित धान में बिजाई के समय 25 कि.ग्रा. डीएपी व 10 कि.ग्रा., जिंक सल्फेट प्रति एकड़ डालें। बिजाई के 15 व 50 दिन बाद 28 कि.ग्रा. यूरिया प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़कें। इस तकनीक से बिजाई करने पर कभी कभी लोहे की कमी के लक्षण आ सकते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए कि.ग्रा. फैरस सल्फेट को 100 लीटर पानी में प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें। जरूरत पड़े तो एक सप्ताह के अन्तराल के बाद इसी छिड़काव को दोहरायें।
कीट व बीमारी प्रबंधन : सीधी-बिजित बासमती धान में बकानी रोग का प्रकोप कम पाया जाता है। पदगलन व बकानी की रोकथाम के लिए बीज उपचार अत्यन्त जरूरी है क्योंकि बाद में इसकी रोकथाम का कोई उपाय नहीं है। दीमक व भूरे धब्बे के रोग के प्रति थोड़ा सचेत रहने की आवश्यकता है। धान की सीधी-बुआई तकनीक से उत्पादन लागत घटने के साथ-साथ जल की मात्रा में 20-25 प्रतिशत तक बचत की जा सकती है।