डिजिटल युवा पीढ़ी ‘जनरेशन जेड’ की बदलती मनोवृत्ति से प्रभावित होने लगे हैं, इंफ्लुएंसर्स की बढ़ी पूछ

देशदुनिया में डिजिटल डिवाइस के साथ बड़ी होने वाली पहली पीढ़ी को अब जनरेशन जेड (जेन जेडकहा जाने लगा है। दरअसल वर्ष 1997 से 2012 के बीच जन्मे या फिर उसके बाद के भी बच्चे इसके हिस्सा समझे जाते हैं। चूंकि इस दौर की पीढ़ी अब आत्मनिर्भर हो चुकी है और उसकी सोचसमझ से हमारा सामाजिकराजनीतिकआर्थिक और सांस्कृतिक व्यवहार भी प्रभावित होने लगा हैइसलिए इनकी सामूहिक मनोवृत्ति पर तरहतरह के शोध सामने आ रहे हैं। इन विषयों पर हमलोग बाद में चर्चा करेंगे क्योंकि जेन जेड में अंग्रेजी भाषी लोगों की बहुतायत है।

हालांकि अब हिंदी व क्षेत्रीय भाषाभाषी भी इनके बीच सम्मानजनक जगह बनाते प्रतीत हो रहे हैंइस पर भी हमलोग फिर कभी चर्चा करेंगे। आज की चर्चा में जेन जेड के आर्थिक या बाजारू व्यवहार को मैंने इसलिए शामिल किया है क्योंकि इस बाबत एक रिपोर्ट भी सामने आई है। यह हमलोगों के बीच उत्सुकता भी जगाती है और सावधान भी करती है।

बताया जाता है कि डिजिटल युग में जन्मे और बड़े होने के कारण आज की युवा पीढ़ी सट्टा लगानेजोखिम का आकलन करने और बजट बनाने के लिए तकनीक पर निर्भर करती है। वहींहालिया एक रिपोर्ट के अनुसारये भी बात सामने आई है कि वे मोबाइल ऐप के माध्यम से अपना निवेश करते हैं।

सवाल है कि जहां पुरानी पीढ़ी के लोग अपनी पसंद की चीजें खरीदने के लिए डिपार्टमेंटल स्टोर या शॉपिंग मॉल के चक्कर काटते थेवहीं नई पीढ़ी इंफ्लूएंसर और ऑनलाइन सर्च पर अधिक जोर देती है। यह बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि ऐसा खुलासा हालिया एक अध्ययन में हुआ हैजिसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि एशियापैसिफिक की जेन जेड की पसंद इंफ्लूएंसर से प्रभावित होती है। इससे उनकी यानी इंफ्लुएंसर्स कि चांदी हो गई है। अब तो इंफ्लूएंसर की सलाह पर वे उसकी तरह के कपड़ेहेयर स्टाइल आदि की भी नकल करते हैं।

मसलनकेपीएमजी की नई रिपोर्ट में बताया गया है कि इस तरह का चलन इंस्टाग्राम जैसे सोशल कॉमर्स प्लेटफॉर्म के आने से बढ़ा हैजहां इंफ्लूएंसर की सलाह युवाओं के मत यानी विचार निर्धारित करने अहम भूमिका निभाती है। दरअसलविभिन्न देशों के 14 बाजारों पर किये गए सर्वे के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की गईजिसके तहत 7000 से अधिक यूजर का सर्वे किया गया। सर्वे के निष्कर्ष के मुताबिकजापान के सर्वाधिक 45 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैंवहीं चीन में सबसे कम मात्र 12 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैं।

जहां तक भारत का सवाल है तो यहां स्टोर में खरीदारी करने वाली नई पीढ़ी महज 19 प्रतिशत हैजिसके तेजी से बढ़ने के आसार हैं। इसी प्रकार ऑस्ट्रेलिया में 38 प्रतिशतन्यूजीलैंड में 34 प्रतिशतताइवान में 30 प्रतिशतमलेशिया में 27 प्रतिशतथाईलैंड में 24 प्रतिशतफिलीपीन में 22 प्रतिशतसिंगापुर और दक्षिण कोरिया में 21 प्रतिशतवियतनाम में 15 प्रतिशत और इंडोनेशिया में 13 प्रतिशत युवक स्टोर में खरीदारी करते हैं। भले ही इस रिपोर्ट में अमेरिकाइंग्लैंडफ्रांसजर्मनीरूससऊदी अरबईरान के युवाओं की बात नहीं की गई हैजिससे यह पता नहीं चल पा रहा कि वहां की क्या स्थिति है?

स्वाभाविक है कि इंटरनेटडिजिटल डिवाइस के साथ बड़ी हो रही पीढ़ी पर खरीदारी का असर पड़ रहा हैक्योंकि वो ऑनलाइन ट्रेंड को देखकर खरीदारी करते हैं। इसके इजाफे से भारत में भी कारोबारी असंतुलन बढ़ेगाक्योंकि जैसे जैसे डिजिटल कारोबार बढ़ेगाभारतीय बाजार यानी हाट व मंडी ही नहींबल्कि पाश्चात्य संस्कृति के अनुरूप विकसित आधुनिक मॉल्स भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेंगे। इससे एक ओर जहां डिजिटल कामों में इजाफा होगा और डिलीवरी बॉय की नौकरी बढ़ेगीवहीं दूसरी ओर हाटबाजार बंद होने से या उनकी निरन्तर बिक्री घटने सेजैसी की आए दिन खबरें मिलती रहती हैंपुराने जमेजमाये कारोबार और उसमें रोजगार रत लोगों के समक्ष आजीविका का संकट खड़ा हो जाएगा।

इसलिए अब युवाओं को भी देश व समाज के समग्र नजरिये से सोचने की जरूरत हैताकि सबका भला हो सके। उन्हें यह भी समझना होगा कि उनके बदलते आर्थिक व्यवहार से पुराने बाजार ही नहीं बल्कि समाज और संस्कृति भी अछूती नहीं बचेगीजिन्हें संरक्षित रखते हुए अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करने की जिम्मेदारी उनकी भी है। वैसे तो पिछले ढाईतीन दशक में कम्प्यूटर और मोबाइल ने राजनीतिकसामाजिकधार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को बहुत ज्यादा प्रभावित किया है।

लेकिन इसके प्रशासनिक सदुपयोग और बाजारू सहूलियत से न केवल आम जनजीवन सरल व सुविधा संपन्न हुआ है बल्कि जो बाजारू क्रांति दिखाई पड़ रही हैउससे डिजिटल ब्राह्मणवाद” का आसन्न संकट भी मंडराता दिख रहा है। क्योंकि इस आधुनिक रेस में पिछड़े लोग निकट भविष्य में यही आरोप लगाएंगेजैसी कि आशंका है। यहां के इंफ्लुएंसर्स भी इसी ताक में बैठे हैं।

खासकर 2014 का चुनाव परिणाम और 2024 का चुनाव परिणाम समाज के ऐसे ही छुपे हुए रुस्तमों को पहचानने और तदनुरूप नई नीति बनाने को उत्प्रेरित करता है। इसलिए पूरे समाज को शिक्षित बनानाउनको डिजिटल रूप में प्रशिक्षित करना अब सरकार की जिम्मेदारी है। यदि वह इससे बचेगी तो नादान लोग कुछ भी कर सकते हैं या उनसे करवाया जा सकता है। विदेशी खिलाड़ी तो बस इसी मौके की तलाश में हैं। जैसे देश के बाहर बैठकर वह भारतीय उद्यमियों को चुना लगा रहे हैंवही हाल जीवन के हर क्षेत्र में हो जाये तो कोई हैरत की बात नहीं होगी।