नोटों के बंडल, सोना-चांदी… मतलब कुछ भी दान देना उस समय व्यर्थ लगता है जब सामने वाला भूखे पेट बिलख रहा हो तथा बिना पानी तड़प रहा हो। ऐसे व्यक्तियों की भूख तथा प्यास मिटाना ही महादान मानिए। आप किसी भी व्यक्ति को दस, बीस, सौ, हजार दे दो, और यदि वह भूखा होगा तो सबसे पहले वह अपनी उदर पूर्ति की सोचेगा, बाद में उस रुपये को अन्यत्र प्रयोग करने की। आप यदि किसी के पेट की भूख शांत कर देते हैं, प्यासे को पानी पिलाकर तृप्त कर देते हैं तो समझ लीजिए आपने महादान कर दिया। भूख मिटाने से भी उत्तम है किसी की प्यास बुझाना। ऐसे व्यक्ति को बिना पानी सारा संसार नीरस लगता है। यह पानी ही तो था जिसे लेने पांडव भाई एक के बाद एक जाते रहे और यक्ष के प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाने पर मृत होते रहे। सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देने में सफल हुए। बिना पानी मृत्यु को प्राप्त भाइयों को भी वह जीवित करवा सके। भले ही वहां पानी का भण्डार था, मगर पानी लेने की शर्तें भी थीं। यदि आप बिना शर्त किसी को पानी लेने देते हैं, पीने देते हैं तो यह उस प्यासे पर बड़ा उपकार होगा।