विदेशी बाजारों में गिरावट, अत्यधिक आयात से तेल-तिलहनों के दाम धराशायी

नयी दिल्ली, 24 जुलाई (भाषा) केन्द्रीय बजट में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने तथा इसके लिए अन्य जरूरी इंतजाम करने की घोषणा के बावजूद विदेशी बाजारों में गिरावट के रुख के बीच अत्यधिक आयात होने की वजह से घरेलू बाजारों में बुधवार को सभी तेल-तिलहनों के दाम धराशायी हो गये तथा सरसों, मूंगफली, सोयाबीन तेल-तिलहन, कच्चा पामतेल (सीपीओ) एवं पामोलीन तथा बिनौला तेल हानि दर्शाते बंद हुए।

शिकॉगो और मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट का रुख था।

बाजार सूत्रों ने कहा कि केवल कांडला बंदरगाह पर 1-20 जुलाई के बीच लगभग 6.75 लाख टन सभी खाद्य तेलों का आयात हुआ है जो हर महीने होने वाले आयात से लगभग 35 प्रतिशत अधिक है। आयातित सूरजमुखी तेल का बंदरगाह पर आयात भाव 83 रुपये लीटर बैठता है और 80.50 रुपये लीटर के भाव पर भी इस तेल के लिवाल मुश्किल से मिल रहे हैं। वहीं देशी सूरजमुखी तेल का भाव लगभग 150 रुपये लीटर बैठता है तो एक सामान्य इंसान भी बता सकता है कि सस्ते आयातित तेल के आगे देशी तेल नहीं खपेगा। ऐसे में तेल-तिलहन उत्पादन बढ़ाने का मंतव्य अच्छा हो सकता है पर परिस्थितियों से बेमेल बैठता है।

राजधानी दिल्ली के एक तेल व्यापारी अर्पित गुप्ता ने कहा, ‘‘छोटे तेल व्यापारियों और तेल मिलों की हालत बदतर हो चली है। तेल संगठनों से उम्मीद थी कि वे तेल-तिलहन बाजार की व्यापक खराब स्थिति के बारे में सरकार को अवगत करायेंगे लेकिन आयातित खाद्य तेलों के सस्ते थोक दाम का कहर अब भी जारी है। देशी तेल मिलों के खाद्य तेल पेराई के बाद और बेपड़ता हो रहे हैं और इसके लिवाल नहीं हैं। इस बात का अगले दो चार सालों में तिलहन उत्पादन पर असर दिख सकता है क्योंकि सस्ते आयात के आगे अपनी उपज नहीं खपने की स्थिति को देखते हुए किसान तिलहन खेती से मुंह भी मोड़ सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वर्ष 2020-22 के बीच तिलहन उत्पादन इसलिए बढ़ा क्योंकि कोविड महामारी के बाद के दौर में विदेशों में बाजार तेज था और हमारी उपज आसानी से बाजार में खप रही थी। अब सस्ते आयातित तेलों से बाजार पटा रहेगा तो इससे अंतत: देश का तिलहन उत्पादन प्रभावित होगा।’’

गुप्ता ने कहा कि वायदा कारोबार नहीं होने की वजह से भी सोयाबीन सहित अन्य तिलहनों की पैदावार में कमी नहीं आई। अगर वायदा कारोबार होता तो किसानों की उपज की सस्ते में लूट हो जाती और इससे भी अंतत: किसानों के तिलहन खेती से कतराने का खतरा रहता।

उन्होंने कहा कि अगर सरकार को खाद्य तेलों में ही महंगाई दिखती है तो इसे राशन की दुकानों से वितरण के जरिये नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन अजीब बिडंबना है कि आयातित सूरजमुखी तेल का दाम पिछले 2022 मई के मुकाबले आज लगभग आधे रहे गये हैं लेकिन खुदरा बाजार में दाम में कोई कमी नहीं आई है। क्या इसे मंहगाई नहीं माना जाना चाहिये? इसकी रोकथाम के क्या उपाय किये गये हैं?

गुप्ता ने कहा कि खाद्य तेलों की पेराई से निकलने वाले मुर्गीदाने में उपयोग होने वाले डी-आयल्ड केक (डीओसी) और पशुआहार में उपयोग होने वाले तेलखल की कमी भी देशी तेल मिलों के नहीं चलने की वजह से हो रही है। सस्ते आयातित तेल की वजह से देशी तेल मिलों का काम ठप है और खल एवं डीओसी की कमी की वजह से दूध, अंडों के दाम बढ़े हैं। क्या तेल के मुकाबले लगभग सात गुना अधिक खपत वाले दूध की महंगाई को महंगाई नहीं मानना चाहिये?

 

तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे:

सरसों तिलहन – 5,925-5,975 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,500-6,775 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 15,625 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,340-2,640 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 11,525 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,880-1,980 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,880-2,005 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 10,250 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 10,050 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,550 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,550 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,600 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,700 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 8,800 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,550-4,570 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,360-4,485 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,125 रुपये प्रति क्विंटल।