नये कानून ने आपराधिक न्याय में परिवर्तनकारी युग की शुरुआत की : दिल्ली उच्च न्यायालय
Focus News 11 July 2024नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की जगह लेने वाले नये कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (भानासुसं) आपराधिक न्याय में एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत करता है और एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देता है जो पारदर्शी, जवाबदेह और मूल रूप से निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है।
अदालत ने यह टिप्पणी स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत दर्ज मादक पदार्थ से जुड़े मामले में एक आरोपी को जमानत देते हुए की।
इसमें कहा गया है कि भानासुसं के तहत फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया गया है, जिसे साक्ष्यों की बेहतर समझ और मूल्यांकन के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं के रूप में सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है।
न्यायमूर्ति अमित महाजन ने कहा, “बदलते समय की जरूरत को समझते हुए संसद ने अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (भानासुसं) पारित कर दी है। अब फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया गया है।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा, “यह विधायी संवर्द्धन जांच में अधिक पारदर्शी और जवाबदेह दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। भानासुसं तकनीकी एकीकरण पर अपने व्यापक जोर के साथ, आपराधिक न्याय में एक परिवर्तनकारी युग की शुरुआत करता है, एक ऐसी प्रणाली को बढ़ावा देता है जो न केवल पारदर्शी और जवाबदेह है, बल्कि निष्पक्षता और न्याय के सिद्धांतों के साथ मौलिक रूप से संरेखित है।”
बीएनएसएस, भारतीय न्याय संहिता (भानासुसं) और भारतीय साक्ष्य संहिता (भासासं) के साथ एक जुलाई से प्रभावी हो गया है।
वर्तमान मामले में, दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को दिसंबर 2019 में सूचना मिली थी कि कथित तौर पर हिमाचल प्रदेश से चरस खरीदकर शहर में इसकी आपूर्ति करने वाला आरोपी बंटू यहां मजनू का टीला के पास किसी व्यक्ति को यह मादक पदार्थ आपूर्ति करने आएगा।
आरोप है कि आरोपी को पकड़ लिया गया और तलाशी के दौरान उसके पास से एक बैग बरामद हुआ जिसमें 1.1 किलोग्राम चरस थी, जिसे 550 ग्राम के दो पैकेटों में छिपाया गया था।
मामले में जमानत की मांग करते हुए बंटू के वकील ने कहा कि हालांकि आवेदक को दिन के समय पकड़ा गया था और वर्तमान मामले में जब्ती गुप्त सूचना के आधार पर की गई थी, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने छापेमारी और उससे प्रतिबंधित सामान की बरामदगी की वीडियोग्राफी की व्यवस्था करने का कोई प्रयास नहीं किया।
उच्च न्यायालय ने कहा कि यद्यपि यह तर्क दिया गया है कि उस समय वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी अनिवार्य नहीं थी, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अदालतों ने बार-बार अभियोजन पक्ष की कहानी को खारिज कर दिया है और स्वतंत्र गवाहों तथा ऑडियोग्राफी और वीडियोग्राफी के रूप में अतिरिक्त साक्ष्य के महत्व पर जोर दिया है। खासकर तब जब प्रौद्योगिकी के विकास के कारण इसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
अदालत ने कहा कि भानासुसं में यह प्रावधान है कि तलाशी और जब्ती की कार्यवाही को किसी भी ऑडियो-वीडियो माध्यम से, अधिमानतः मोबाइल फोन के माध्यम से रिकॉर्ड किया जाएगा। अदालत ने कहा कि इन दिनों मोबाइल फोन लगभग हर किसी के पास आसानी से उपलब्ध है, खासकर दिल्ली जैसे महानगरीय शहर में।
बंटू को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति और मुकदमे में लंबे समय तक देरी के आधार पर जमानत दिए जाने का मामला बनता है और बताया गया है कि उसका पिछला रिकॉर्ड साफ-सुथरा है।